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10वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही, क्या 19 जनवरी को होने वाली बैठक से बनेगी बात?

किसानों को कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन करते हुए 50 दिन से भी ज्यादा हो चुके हैं। आज सरकार और किसान नेताओं की 10वें दौर की बातचीत हुई। लेकिन बात अभी भी वहीं की वहीं अटकी हुई है। पिछली कई वार्ताओं से ये साफ हो चुका है कि सरकार किसी भी कीमत पर ये कानून रद नहीं करेगी और किसान भी अपनी मांगों पर अड़े हुए है जब तक कानून वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में भूपिंदर सिंह मान, अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घनवत समेत चार सदस्यों की कमेटी बनाई गई। लेकिन इस कमेटी से भूपिंदर सिंह ने खुद को अलग कर लिया है। कमेटी को सुझाव पेश करने के लिए दो महीने का वक्त दिया है। इस कमेटी के गठन के बाद जब भूपिंदर सिंह से सवाल किया गया कि किसान कमेटी से बात नहीं करना चाहते हैं? इस पर उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाई है और इस पर किसान संगठनों का सवाल उठाना गलत है। उन्होंने कहा था कि एक किसान होने के नाते मैं निष्पक्ष होकर अपनी बात सरकार के सामने रखूंगा।

अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तो इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी बना दी गई है पर क्या किसानों की समस्या का समाधान इससे निकल पाएगा? कमेटी से एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान अलग हो गए हैं तो अब सुप्रीम कोर्ट और सरकार का अगला कदम क्या होगा?

10वें दौर की वार्ता में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि हमने आपकी कुछ मांगें मानी हैं। क्या आपको आपको भी कुछ नरमी नहीं दिखानी चाहिए? तोमर ने कहा कि कानून वापसी की एक ही मांग पर अड़े रहने की बजाय आपको भी हमारी कुछ बातें माननी चाहिए।

बैठक से पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हम बातचीत से हल निकालना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी के बारे में सवाल करने पर वो बोले- कमेटी ने हमें बुलाया तो हम अपना पक्ष रखने जाएंगे। अब देखना ये है कि 19 जनवरी के कमेटी की पहली बैठक में क्या होगा? औऱ कौन कौन इस कमेटी में अपनी बात रखेगा?

आपको बता दें कि अब तक 60 से भी ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया था कि किसान नेता आंदोलन में आए बच्चे, बूढ़ें और महिलाओं को वापस घर भेज दें लेकिन बिना कानूनों को वापस कराए कोई भी घर जाने को तैयार नहीं। किसानों की ओऱ से कहा गया कि या तो मरेंगे या फिर जितेंगे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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