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यूपी में अपराध की कोई जगह नहीं? एनकाउंटर औऱ हत्याओं के बाद योगी के दावों में कितना दम है?

सांसद और विधायक रह चुका माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर के बाद से मुख्यमंत्री योगी के बयानों पर राजनीति फिर से गरम हो चुकी है। जहां एक तरफ मुख्यमंत्री योगी यह कहते नजर आते है कि , “अब कोई पेशेवर माफिया किसी उद्यमी को फोन से डरा नहीं सकता है। यूपी बेहतरीन कानून व्यवस्था की गारंटी देता है। यूपी में आज कानून का राज है। बहुत सारे जनपद ऐसे थे जहां के नाम से ही लोग डरते थे। किसी जिले से अब डरने की जरूरत नहीं है। कोई अपराधी डरा नहीं सकता है। जो पहले यूपी की पहचान के लिए संकट थे, आज आप देख रहे होंगे कि उनके लिए संकट बनता जा रहा है।” वहीं, दूसरी ओर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा, ‘यह भारतीय जनता पार्टी की सरकार में 100 माफियाओं की सूची कभी नहीं आएगी। इस सरकार में 10 माफियाओं की भी सूची कभी नहीं आएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भी सूची जारी होगी तो उसमें भारतीय जनता पार्टी के लोग सबसे ज्यादा होंगे। मैंने विधानसभा में पूछा कि टॉप 10 माफियाओं की सूची दे दो, टॉप 100 माफियाओं की सूची दे दो, लेकिन आज तक सरकार इसलिए नहीं बता रही है क्योंकि सबसे ज्यादा बीजेपी के लोग उसमें निकलेंगे।’

इससे पहले भी कई बार योगी आदित्यनाथ, यूपी की कानून व्यवस्था को लेकर बयान दे चुके हैं, पर इन दावों पर कितनी सच्चाई है, यह तो यूपी में हो रहे अपराधों के आंकड़े ही बतायेंगे।

हाल ही मे विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि, ‘जिस अतीक अहमद के खिलाफ पीड़ित परिवारों ने मुकदमा दर्ज कराया है। वो समाजवादी पार्टी के द्वारा पोषित माफिया है। माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे’। अब जबकि अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या पुलिस हिरासत में ही 3 बदमाशों ने गोली चलाकर कर दी। बेटे असद अहमद के एनकाउंटर और अतीक, भाई अशरफ की हत्या को ‘मिट्टी में मिला देने वाले’ योगी के विधानसभा में दिये बयान से जोड़कर देखा जा रहा है।

इस तरह से अतीक के मामले में लगातार हो रही हत्याओं और एनकाउंटर के बाद लोग दो तरह से इसे देख रहे हैं। एक वर्ग इसे कानून के राज से ज्यादा माफिया को खत्म होने के रूप में देख रहा है। और एक वो वर्ग है जो कानून के राज की हत्या के रूप में इसे देख रहा है, जिसमें सत्ता पक्ष को छोड़कर विपक्ष भी शामिल है।

विपक्ष में समाजवादी पार्टी लगातार हो रही हत्याओं और एनकाउंटर को लेकर सरकार पर सवाल उठाते हुए इसे सत्ता की ओर से प्रायोजित हत्या के रूप में देख रहा है। साथ ही एनकाउंटर को फर्जी बता रहा है। फिलहाल सवाल जो भी हों आंकड़ों से देखें तो विपक्ष के एनकाउंटर में हो रही मौतों पर सवाल उठाना लाजमी है। क्योंकि आंकड़े इसके पुख्ता सबूत हैं।

पिछले छह सालों में मार्च 2017 से लेकर अप्रैल 2022 के बीच उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस और अपराधियों के बीच 9,434 से ज्यादा मुठभेड़ें हुई हैं, जिसमें 183 अपराधी जान से मारे गए हैं। 5,046 अपराधियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। आकड़ों की मानें तो यूपी में सबसे ज्यादा एनकाउंटर योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में हुये हैं।

दैनिक भास्कर के अनुसार, 8 फरवरी 2022 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि जनवरी 2017 से जनवरी 2022 के बीच पुलिस एनकाउंटर में मौत के बाद सबसे ज्यादा 191 मामले छत्तीसगढ़ में दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है, जहां कुल 117 केस दर्ज हुए हैं।

26 जुलाई 2022 को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चला था कि देश भर में 2020-2021 वित्तीय वर्ष के दौरान पुलिस एनकाउंटर  में 82 लोग मारे गए थे, जो 2021-2022 वित्तीय वर्ष के दौरान बढ़कर 151 हो गये। 2000 से 2017 के बीच एनएचआरसी ने फर्जी एनकाउंटर के 1,782 मामले दर्ज किये। इसी तरह, 1993 से 2009 के बीच एनकाउंटर के कम से कम 2,560 मामले एनएचआरसी के संज्ञान में लाए गए। इनमें से 1,224 नकली थे। 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, असम, झारखंड और मणिपुर में सबसे ज्यादा फेक  एनकाउंटर के मामलें होते हैं।

असद अहमद के एनकाउंटर का पहला मामला नहीं है जब किसी पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठे हैं । इससे पहले भी कई मामले सामने आए हैं, जिसमें पुलिस की कार्रवाई पर  सवाल उठाए गए हैं। 6 मार्च की सुबह UP पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन टीम ने प्रयागराज के लालपुर गांव को चारों ओर से घेर लिया। सर्च ऑपरेशन चलाकर सुबह 5.30 बजे शूटर विजय चौधरी उर्फ उस्मान को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। आरोप है कि उमेश पाल हत्याकांड में पहली गोली उसी ने ही चलाई थी। इससे पहले इसी केस के एक और आरोपी अरबाज को भी पुलिस ने इसी तरह मुठभेड़ में मार दिया था।

इस साल के शुरुआती 2 महीनों में ही उत्तर प्रदेश में 9 एनकाउंटर हो चुके हैं। इसी वजह से एक बार फिर से योगी राज में एनकाउंटर जस्टिस को लेकर चर्चा तेज हो गई है। विकास दुबे के एंकाउंटर पर उत्तर प्रदेश पुलिस पर प्रश्न उठाये गये थे और तो और यह भी कहा गया था कि इसकी जानकारी मीडिया को पहले से ही थी। इसलिए गाड़ी पलटने की घटना का जिक्र विकास दुबे के एनकाउंटर के समय जो हुई उसे ही अतीक के मामले में मीडिया लगातार सवाल कर रहा था कि अतीक की गाड़ी कब पलटेगी। आपको बता दें कि गाड़ी पलटने की घटना दिखाकर यूपी पुलिस ने विकास दुबे को भागते हुए दिखाकर एनकाउंटर कर दिया था। इस घटना की सत्यता को लेकर तमाम सवाल उठे थे।

यूपी के अलावा हैदराबाद में प्रियंका रेड्डी मामले में तो एनकाउंटर पूरी तरह फर्जी था यह साबित हो गया था। इस मामले में पुलिस के द्वारा चार आरोपियों का एनकाउंटर  किया गया था जिसके बाद 6 दिसंबर 2019 के दिन किया गया यह एनकाउंटर फर्ज़ी निकला। ऐसे मामलो की संख्या बहुत हैं।

अपराध कम होने के दावों पर उठ रहे सवाल

भाजपा सरकार जिस तरह से यूपी में अपराधों की कमी होने का दावा करती है, इसमें कितनी सत्यता है। इसके लिए आंकड़ों से बात करते हैं। इन आंकड़ों में आपको पता चलेगा कि अपराध में हत्या औऱ अपहरण के मामलों में भी यूपी शीर्ष नंबर पर है।

एनसीआरबी के आंकड़े यह बताते है कि यूपी में 2017 से 2012 तक रेप के मामलों में कमी आई है। 2017 में 4246 मामले दर्ज हुए तो वहीं 2021 में 2845 मामले सामने आये। जबकि 2021 देशभर में दुष्कर्म के कुल 31,677 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें राजस्थान में सबसे ज्यादा 6,337 मामले दर्ज हुए।

इन्हीं पांच सालों में हत्या में कमी आई है लेकिन देशभर में राज्यों में हत्या के मामलों में यूपी नंबर एक पर है। यूपी के बाद हत्या के मामलों में बिहार आगे है। 2017 में 4324 हत्या के मामले हुए लेकिन 2021 आते आते यह संख्या 3717 हो गई।

दंगों के दो वर्ग हैं यूपी में एक जो आईपीसी के तहत दर्ज होते हैं और दूसरा जो विशेष स्थानीय कानून के तहत दर्ज किए जाते हैं। सांप्रदायिक दंगे कम हुए हैं ऐसा एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2017 में 195 दंगे हुए लेकिन 2021 आते आते यह संख्या एक हो गई। लेकिन दंगों के दूसरे वर्ग के आंकड़ों में 2017 में जहां 8990 मामले दर्ज किए गए वहीं 2021 में 5302 मामले दर्ज हुए।

दंगों के मामलों में महाराष्ट्र सबसे आगे रहा है। 2021 में भारत में कुल 41,954 दंगे हुए थे,जिसमे महाराष्ट्र मे 8,709 दंगे हुए । उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु भी शीर्ष पांच में शामिल रहे।

एनसीआरबी के अनुसार अपहरण के मामलों में यूपी को शीर्ष स्थान प्राप्त है। 2017 में 19921 मामले आये और 2021 में अपहरण के मामलों में 14554 दर्ज हैं।

आंकडों से तो कुछ और पता चलता हैं, महिलाओं पर होने वाले अपराधों की सूची में सबसे आगे उत्‍तर प्रदेश है। राष्‍ट्रीय महिला आयोग (NCW) के रिपोर्ट के आधार पर 2022 में महिलाओं पर जुल्‍म की जितनी भी  शिकायतें दर्ज हुईं उसमें से 55 फीसदी उत्‍तर प्रदेश से हैं। राष्‍ट्रीय महिला आयोग (NCW) की रिपोर्ट के आधार पर 2022 में महिलाओं पर हुए अलग-अलग अपराध के 30,900 मामले दर्ज हुए। यूपी में वर्ष 2021 में महिला अपराध के 56,083 मामले दर्ज किए थे। वहीं यूपी में दहेज हत्या के 2,235 मामले दर्ज हुए थे।

NCRB रिपोर्ट 2022 के आधार पर उत्तर प्रदेश में महिलाओं व बच्चों के प्रति अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में वर्ष 2019 में 18943 मुकदमे व वर्ष 2020 में 15271 मामले दर्ज हुए थे, जबिक वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 16838 पहुंचा था।

पुलिस हिरासत में मौत और हत्या पर उठ रहे सवाल

जहां एक तरफ असद के एनकाउंटर पर सवाल उठ रहे थे वही दूसरी तरफ अतीक और असरफ की यूपी पुलिस के सामने हुई हत्या पर भी अब यूपी पुलिस अब सवालों के घेरे मे आ चुकी है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ माफिया राज खत्म करने की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ यूपी पुलिस के सामने ही हत्या कर दी जाती हैं। मायावती समेत कई विपक्षी नेताओं ने अतीक की हत्या पर सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट विशाल तिवारी के द्वारा याचिका दायर की गयी है, जिसमे पुलिस हिरासत में अतीक और उसके भाई की हत्या की जांच की मांग की गई है। दायर याचिका में इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज से कराने की मांग भी की गई है। हालांकि इन हत्याओं में शामिल अपराधियों को पकड़ कर पुलिस जांच कर रही है। न्यायिक जांच के बाद ही सारी चीजें खुलकर सामने आएगी। अतीक अहमद की हत्या पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि अतीक अहमद कई बार सुप्पीम कोर्ट के सामने और मीडिया में सत्ता प्रायोजित हत्या की आंशका जता चुका है। अतीक के वकील ने यहां तक दावा किया कि जल्‍द ही यूपी मुख्यमंत्री के पास एक सीलबंद चिट्ठी पहुंचेगी। इस बंद लिफाफे में अतीक और अशरफ को मरवाने वाले का नाम लिखा होगा। बता दें अशरफ ने मीडिया में यह कहा था कि अगर कभी उनकी हत्‍या हो जाएगी तो यह बंद लिफाफा चीफ जस्टिस और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पास पहुंच जाएगा।

उत्तर प्रदेश में पुलिस के सामने या उनकी हिरासत में पहले भी कई हत्याएं हो चुकी हैं। 9 नवंबर 2021 को कासगंज में पुलिस की हिरासत में 20 साल के एक युवक अल्ताफ की मौत हो गई थी। पुलिस के अनुसार अल्ताफ के मौत की वजह आत्महत्या थी। उन्होंने बताया कि उसने हवालात के टॉयलेट में टंकी के पाइप पर जैकेट की डोरी से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। हालांकि परिवार ने पुलिस पर हत्या करने का आरोप लगाए थे।

उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में 41 लोगों की हत्या हो चुकी है। यूपी में 2017 में 10 हत्या, 2018 में 12 हत्या, 2019 में 3 और 2020 में 8, 2021 में 8 हत्या पुलिस हिरासत में हुई। एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 सालों में भारत में 1888 लोगों की पुलिस हिरासत में हत्या हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इन मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 893 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 358 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हई और सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को सजा दी गई।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

श्रिया गुप्ता
दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा हैं।

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