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अतीक अहमद की हत्या को लेकर यूपी पुलिस पर क्यों उठ रहे सवाल?

यूपी में बंदूक के दम पर चल रही है सरकार। यह मैं नहीं कह रहा हूं असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं। मैं भी कह सकता हूं लेकिन मैं नहीं कहूंगा और आप भी नहीं कह सकते क्योंकि कुछ भी कहने का मतलब है कि आप पर भी बंदूकें चल रही हैं किसी न किसी रूप में। और नहीं भी चल रही हों तो चल जाएंगी। अतीक कांड या इसके पहले तमाम कांड और जो इसके बाद होंगी सारी की सारी स्क्रिप्टेड हैं। ऐसा लोग कह रहे हैं। पाक का आईएसआई, मुस्लिम आतंकवाद का मुद्दा तो बनता ही है। ये स्क्रिप्ट तो आम है कोई न कोई समय यह जुड़ना भी आम है। गाड़ी पलटने वाली स्क्रिप्ट भी एक समय नई थी अब हत्या की स्क्रिप्ट थोड़ी सी नई है। जो शूटर होते आए हैं इनका कट्टरहिंदुत्ववाद वाले रिश्ते की स्क्रिप्ट थोड़ी पुरानी हो गई है। मगर कुल मिलाकर हीरो हीरो ही है। अब आगे जय श्री राम बोलूं तो फिर मेरी स्क्रिप्ट बिगड़ जाएगी। इसलिए ये स्क्रिप्ट वाला मुद्दा सुलझाऊं उससे पहले मैं थोड़ा सा विस्तार से भी बता भी दूं।

आप सब कुछ न कुछ इस एनकाउंटर पर कहना चाह रहे हैं। कुछ ने डरते डरते लिखा कि योगी जी ने माफिया को खत्म कर दिया। ऐसे माफिया को कुदरती सजा मिल गई। यही कहने वाला कब गाड़ी पलटेगी? कहकर सवाल कर रहा था। मिट्टी में मिलाने वाली बात को कोट करके लगातार सवाल कर रहा था। यानी कि ऐसा कहने वाला कभी डर नहीं रहा था। यानी कि ऐसा कहने वाला देश का टेलीविजन चैनल था। यानी कि ऐसा कहने वाला बीजेपी समर्थक था। यानी ऐसा कहने वाला भाजपा का मंत्री और उसका विधायक था। कुल मिलाकर ऐसा वही कह रहा था जिसे पता था कि आदमी को मरना है ही। और मरेगा। यानी कि कानून का राज नहीं चाहते ऐसे लोग। यानी कि यह सब कहने वाले लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते। ये आम लोग भी नहीं हैं। ये गुंडातंत्र कायम करने वाले लोग हैं। और अगर इनके कहे अनुसार कुछ हो रहा है। तो इसका मतलब सीधे-सीधे ये सब दोषी हैं। तो फिर आज हमारी जनता से सीधे सवाल किया कि क्या असली अपराधी बंदूक अतीक को मार रहे हैं वो हैं .या फिर इसके पीछे कोई और है। जो मारने की नीयति से लगातार ट्रायल कर रहा था जो बयान दे रहा था कि मिट्टी में मिला देंगे या गाड़ी कब पलटेगी पूछने वाले हैं? इसका जवाब सोचिएगा।

और दूसरी तरफ एक ऐसी दुनिया और उसके लोग हैं जो इस अपराध पर कुछ लिख रहे हैं। तो लिखकर डिलीट कर दे रहे हैं। सच कहने की बात छोड़िए लोग कुछ कहने के बाद भी उस पर लीपापोती कर दे रहे हैं। कुछ लोग शून्य हो गए हैं। उनमें कुछ कहने की क्षमता बची ही नहीं आदी से हो गए हैं। हां कुछ लोग हैं जो अंजाम न देखते हुए लिख और बोल रहे हैं लेकिन बोल भी रहे हैं तो डर कायम है और उसी पर बोलते हैं कि डर है। सच में लोग संवेदन हीन तो नहीं हो चुके हैं। नहीं हुए तो हो सकता है लोग जब सच कहने लग जाए तो इन्हें संवेदनशील समझकर कोई कैद न कर ले। फिर भी डर तो है ही। खैर

अब दूसरा सवाल सुनिए आप बताइये कि जो भी लोग अतीक की मौत यानी कानून के राज में कस्टडी में मौत या फिर किसी एनकाउंटर में मारे जा रहे लोगों के मरने से पहले जो अपनी न्याय की गुहार लगा रहा था और न्यायपालिका की शरण में गया। उसकी गुहार को सुना नहीं गया। उसे उल्टा घुमा दिया गया। मेरा मतलब आप समझ गए होंगे। मैं देश की अदालत की ओर इशारा कर रहा हूं सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्थाओं की ओर। मानवाधिकार आयोग की ओर। जहां संज्ञान लेने का अधिकार होता है। लेकिन ऐसी संस्थाएं लगातार मौत के पहले और बाद में भी चुप्पी साधे रहती हैं। आप महाभारत के युद्ध में अतीत में जाकर सोचेंगे तो आपको याद आएगा। कि द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म पितामह भी चुप थे। और इसी वजह से उनके किए अपराध का सजा उन्हें भी मिली थी। दरबार में जितने भी लोग चुप थे। जो सरेआम सवाल उठाने पर कान में रुई डाले अनसुना कर रहे थे या फिर किसी डर की वजह से नहीं बोल रहे थे। उनमें से कुछ ऐसे थे जो बोलना चाह रहे थे लेकिन एक शब्द कहकर रुक जा रहे थे। सब के सब दोषी थे। तो सवाल यही है कि क्या देश में लोकतंत्र के कानून के रक्षक को उनकी चुप्पी के लिए आप लोग दोषी मानते हैं? आपको याद होगा, अतीक अहमद या तमाम ऐसे मामलों में सुपीम कोर्ट से अपनी जान की भीख मांगने पर उन्हें कोई संरक्षण नहीं मिलता। सब कुछ आंखों के सामने होता देख देश का असली रक्षक कोई फैसला नहीं ले पाता क्या ये डर है? या फिर ये सवाल ही गलत है। सोचिए। देश की अदालतें इतनी कमजोर कैसे हो चुकी हैं?

ये खबर ध्यान से सुनिए लल्नटॉप की है। 28 मार्च, 2023 की बात है. अशरफ प्रयागराज की अदालत में उमेश पाल अपहरण कांड में पेशी के बाद बरेली जेल वापस पहुंचा था. वहां पहुंचते ही अशरफ ने अपनी मौत को लेकर बड़ा दावा किया था. यूपी तक से बातचीत के दौरान अशरफ ने कहा था कि उसे 2 हफ्ते बाद जेल से निकालकर निपटा दिया जाएगा. अशरफ का कहना था कि उसे एक बड़े पुलिस अधिकारी ने धमकाते हुए कहा है, “किसी बहाने जेल से निकाला जाएगा और निपटा दिए जाओगे.” हालांकि, इस दौरान अशरफ ने कैमरे के सामने अफसर का नाम नहीं बताया था.

अशरफ ने आगे कहा था,

‘मेरी हत्या पर मुख्यमंत्री जी को, चीफ जस्टिस को और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को मेरा बंद लिफाफा पहुंच जाएगा. अगर मेरी हत्या होती है तो उस लिफाफे में उसका नाम होगा, जिसने मुझे धमकी दी है’.

इसके अलावा अतीक ने खुद कहा था कई बार कि उसे मार दिया जाएगा। लोग तो आशंका जता ही रहे थे।

यहां तक कि सपा नेता राम गोपाल यादव ने मीडिया में यह बात एक महीने पहले ही कह दी थी कि एक बेटे की हत्या हो जाएगी। और एनकाउंटर के रूप में उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई।

सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव की बात अब आगे जो जो पढ़ रहा हूं उसे भी ध्यान से सुनियेगा। उन्होंने कहा कि अतीक और उनके भाई अशरफ की हथकड़ी थी। यह सुनियोजित हत्या की गई है। जांच करने वाली एजेंसी सही होगी तो बड़े बड़े लोग इसमें फसेंगे। आगे बोले कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था ति मिट्टी में मिला देंगे। इसलिए अतीक के मारने वाले लोगों का कुछ नहीं होने वाला है। रामगोपाल यादव ने यह भी कहा कि जो कुछ यूपी में हो रहा है, ऐसा पहले कभी हिस्ट्री में नहीं हुआ है। लोकतंत्र के खात्में वाला रास्ता है। पहले राजशाही में ऐसा होता था। उन्होंने कहा मीडिया ट्रायल की वजह से अतीक मारा गया। किसी भी केस में अतीक पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है। बोले कि ऐसे लोग भी बड़े बड़े पदों पर बैठे हैं, जिन्होंने बम फेंककर लोगों को मरवा दिया था। उनको कोई नहीं कहता है। गैंगेस्टर हैं। रामगोपाल ने कहा कि इलाहाबाद के लोगों का कहना है कि अतीक के पांच बच्चे हैं। इसमें एक मार दिया गया है, जो शेष चार बचे हुए लड़के हैं। उनको भी किसी न किसी बहाने मार दिया जाएगा। चाहे देश बर्बाद हो जाए लेकिन चुनाव जीतने के लिए लोग कुछ भी कर सकते हैं। तीसरा सवाल यही है कि क्या रामगोपाल जैसे जो लोग बोल रहे हैं तो क्या उसको लेकर अब लोकतंत्र के सभी स्तंभों की कोई तैयारी है? क्या अब यह सब लोग जो कयास लगाते हैं ये झूठ साबित होगी।

असदुद्दीन ओवैसी और प्रो राम गोपाल यादव ने ये सब जो कहा उसको इसलिए बताना जरूरी है कि आजकल हर कोई यही कह रहा है। लेकिन हर कोई बोल नहीं पा रहा है। हर कोई लिख नहीं पा रहा। क्योंकि उन्हें डर है कि अगर हम कुछ सोशल मीडिया पर बोलेंगे तो या तो क्रिमनल का साथ देने का आरोप लगेगा। या फिर उन्हें सरकारी तंत्र जिसे सरकार कहीं से भी कहना मुश्किल है, यही राजशाही ही कह लेते हैं उसके लोग, पुलिस भी नहीं कहें तो ज्यादा अच्छा है। ये सब कहीं न कहीं फंसा देंगे। जो नौकरी चल रही है नौकरी पेशा वालों की छूट जाएगी। या फिर कोई खलिहर है तो वो भी जेल भेज दिया जाएगा ही। यहां इसलिए मैं भी ये सब खुद पर न लेकर लोगों की बातों को कोट करते हुए ये सब कह रहा हूं क्योंकि कानून का राज नहीं है। बल्कि देश में तो हत्याएं हुई हैं एक अतीक और उसके भाई की और दूसरा रूल ऑफ लॉ की। ये बात कपिल सिब्बल जाने माने अधिवक्ता बोल रहे हैं।

अब आप ही बताइये कि मैं चाहूं तो यहां ऐसे ही हर किसी को कोट करते करते उनके सभी बयान पढ़ दूं तो स्क्रिप्ट खत्म हो जाएगी और आपके जो मन में हैं जिसे कहना है वही सब इसमें भी होगा। लेकिन मैं आपके मन में जो है उसे बताने से ज्यादा उसके परिणाम बताने की कोशिश कर रहा हूं। सोचिए जो बातें आप जानते हैं होता हुआ देख रहे हैंय़ यह किसी फिल्म से कम है। यही तो ज्यादातर फिल्मों में होता आया है कि आप कहानी को हर मोड़ पर पहुंचते ही सारी की सारी कहानी आगे की खुद ही समझ जाते हैं। स्क्रिप्ट जो लिखी होती है उसे खुद ही समझ जाते हैं। यानी आप निर्देशक की मंशा को समझते हैं। ऐसे ही आपको नहीं लगता कि विकास दुबे एनकाउंटर या जो भी घटनाएं हाल ही में हो रही हैं। अतीक को ही ले लीजिये। सारी सक्रिप्टेड हैं और पहले से लिखी गई हैं। अगर नहीं तो फिर आप पहले से इन कहानियों को कैसे जान लेते हैं। एक एक बात क्या उसमें होंगे किस तरह के पात्र होंगे कैसे समझ जाते हैं। कहां तक बात पहुंचेगी अंजाम कैसे समझ लेते हैं। सोशल मीडिया पर लिख देते हैं कैसे । और विक्ट्म को भी समझ आ जाता है कैसे। मीडिया में मुद्दों पर बात भी हो जाती है कैसे । लेकिन फिर भी वही होता है। और कोई नहीं रोकता। ऐसा कैसे होता है? ये मेरा चौथा सवाल है आपसे इसे भी सोचिएगा और बताइएगा।

इन चार सवालों को केवल सोचिए जवाब मत दीजिएगा। क्योंकि फिल्में अभी लिखी जाएंगी। और आप उसकी स्क्रिप्टिंग को परत दर परत खोलते जाएंगे जब तक आंच आप तक न पहंच जाए ऐसा लोग कह रहे हैं लेकिन सवाल तो है जनाब किस चीज की आंच…अरे छोड़िए आंच और डर।

चिल मारिए और कोई टेलीविजन चैनल खोल कर सुन लीजिए अगर आप आगे कोई कहानी के पात्रों पर नजर डालना चाहते हैं तो।

और अगर आम लोग हैं तो फिर आप पहाड़ों पर घूमने ही निकल लीजिए। क्योंकि आप कुछ कहना और सुनना ही नहीं चाहते। जो हो रहा है उसे होनी मानकर बैठना ही पड़ेगा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रभात
लेखक फोरम4 के संपादक हैं।

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