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कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने की ये हैं वजह

कर्नाटक चुनाव को लेकर जैसे जैसे दिन नजदीक आते जा रहे हैं । वैसे वैसे राजनीति का सियासी पारा चढ़ता नजर आ रहा है। जैसे ही बीजेपी ने 189 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, वैसे ही बीजेपी में खलबली मच गई। पार्टी के नेताओं की नाराजगी जाहिर होकर सामने आने लगी। कुछ ने पार्टी बदलने की बात कही तो कुछ भावुक होते नजर आने लगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि कर्नाटक चुनाव में बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की सारी कोशिशें असफल होती नजर आ रही है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी ने शुक्रवार यानी आज कांग्रेस में शामिल हो गए। वह विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से टिकट न मिलने से नाराज थे। इसके बाद उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और एमएलसी पद भी छोड़ दिया। सावदी ने बीजेपी से नाराजगी जाहिर करते हुए यहां तक कह दिया कि बीजेपी के साथ अब मेरा कोई संबंध नहीं है। अगर मैं मर भी जाऊं तो मेरी लाश भी बीजेपी ऑफिस के सामने से नहीं ले जाए। इसी बीच खबर यह भी है कि कर्नाटक के पूर्व एमएलसी और कांग्रेस नेता रघु आचार ने जनता दल (सेक्यूलर) का दामन थाम लिया है। उन्होंने एचडी कुमारस्वामी की मौजूदगी में जेडीएस से हाथ मिलाया।

2018 के परिणाम और अब होने जा रहे चुनावों का लोकसभा चुनाव पर असर

224 विधानसभा सीटों के लिए कर्नाटक में होने जा रहे चुनाव की वोटिंग 10 मई को होगी और 13 मई को नतीजे आ जाएंगे। इसके बाद 2023 में ही मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर है कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों का असर राज्यों में हो रहे चुनावों पर भी देखने को मिलेगा। राज्यों में विधानसभा चुनाव का परिणाम 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव पर भी कहीं न कहीं असर डालेगा। इसलिए पीएम मोदी और उनकी सरकार 2024 के चुनाव से पहले राज्यों में हो रहे चुनाव को हर हाल में जीत लेना चाहती है।

कर्नाटक के क्या मुद्दे हैं और सर्वे क्या कह रहे हैं

इस वजह से गृह मंत्री अमित शाह भी कर्नाटक जाकर विपक्ष को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हर बार की तरह कांग्रेस को फिर परिवारवादी बताया। कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र को कमजोर बताया। और आगे उन्होंने अमूल औऱ नंदिनी दोनों के सहयोग से कर्नाटक के हर गांव में प्राइमरी डेयरी खोलने की बात कही। यही वह बात थी जहां अमित शाह का दाव उल्टा पड़ गया था। इन सभी का असर कर्नाटक में होने जा रहे चुनाव पर आ रहे सर्वे में भी देखा जा सकता है। कर्नाटक में किए गए तमाम सर्वे में बीजेपी 80 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। जबकि कांग्रेस को 110 से अधिक सीटें मिलती दिख रही है। और जेडीएस को 27 सीटों के आसपास मिलती हुई दिखाई जा रही है। इन सभी सर्वे के बाद बीजेपी में हड़कंप जरूर मच गया होगा। लेकिन मंगलवार को बीजेपी की तरफ से जारी हुए उम्मीदवारों की सूची से अब बीजेपी पार्टी के अंदर खुले आम नेताओं की बगावत देखने को मिल रही है। जाहिर है बीजेपी खुद को इतनी बुरी समस्या से घिर जाने के बाद इससे निकलने के प्रयास कर रही है लेकिन इसकी कोशिशें कमजोर पड़ती जा रही हैं। इन बातों को समझने के लिए थोड़ा पहले आपको 2018 के विधानसभा चुनाव की ओर ले चलते हैं।

कर्नाटक में वर्तमान में वैसे तो बीजेपी की सरकार है इसके पहले 2018 में हुए चुनाव में 224 में से 104 सीटें बीजेपी को 80 सीटें कांग्रेस को, जनता दल सेक्युलर 37 सीटें मिली थी। कांग्रेस और जेडीएस ने पहले सरकार बनाई लेकिन 2019 में बागी विधायकों के चलते बीजेपी ने सरकार बना ली और येदुरप्पा मुख्यमंत्री बने। येदुरप्पा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही 2021 में बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

कांग्रेस क्यों मजबूत है?

राहुल गांधी की वर्तमान में संसद सदस्यता खत्म हो गई है। इसके पीछे का कारण कर्नाटक से ही निकलकर आता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी ने कहा था कि आखिर सभी चोरों के सरनेम मोदी क्यों है? इसमें उन्होंने ललित मोदी, नीरव मोदी, पीएम नरेंद्र मोदी के नाम लिए थे। इस मामले में सूरत की कोर्ट ने मानहानि मामले में दो साल की सजा राहुल गांधी को खिलाफ तय की। इसके बाद संसद सदस्यता चली गई और राहुल गांधी को सरकारी बंगला भी खाली करने के लिए कहा गया। इस सभी मामलों के पीछे कांग्रेस का कहना है कि ये सजा उन्हें संसद में अडानी को लेकर मोदी के रिश्तें को उजागर करने के लिए मिली है और इन मुद्दों पर राहुल गांधी को जनता से सहानुभूति भी मिल रही है। इसके पहले राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा से भी काफी लोकप्रियता मिल चुकी है। जबकि बीजेपी इसे नहीं मानती।

भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा कितना हावी है?

इसके अलावा कर्नाटक में अमूल और नंदिनी दूध को लेकर के बीजेपी घिरती नजर आ रही है। 30 दिसंबर 2022 को अमित शाह ने कर्नाटक में कहा था कि कर्नाटक के सभी किसान भाई बहनों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि अमूल और नंदिनी दोनों मिलकर कर्नाटक के हर गांव में प्राइमरी डेयरी खेलने की दिशा में काम करेंगे। 3 साल बाद कर्नाटक का एक भी गांव ऐसा नहीं होगा जहां प्राइमरी डेयरी नहीं हो। अमित शाह के यह कहने के 3 महीने बाद 5 अप्रैल को अमूल ने ट्वीट कर जल्दी ही कर्नाटक के बेंगलूरू में लॉंचिंग का ऐलान कर दिया। इसके बाद से सोशल मीडिया पर नंदिनी बचाओ ट्रेंड होने लगा। इसके पीछे कारण ये है कि नंदिनी कर्नाटक का सबसे बड़ा कोओपरेटिव डेयरी ब्रांड है। बेंगलूरू होटल असोसिएशन ने भी कहा कि हम सिर्फ नंदिनी दूध का इस्तेमाल करेंगे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी अमूल मुद्दे को लेकर के जनता के बीच पहुंच गए। इसके बाद गो बैक अमूल ट्रेंड करने लगा। लोगों का कहना है कि नंदिनी अमूल से अच्छा ब्रांड है। साथ ही नंदिनी फुल क्रीम दूध 55 रुपये लीटर है जबकि अमूल का फुल क्रीम दूध 66 रुपये लीटर है। अमूल दूध से 11 रुपये नंदिनी दूध सस्ता है। इसलिए भी चुनाव में ये महंगाई के लिहाज से बड़ा मुद्दा बन गया।

हिंदुत्व का मुद्दा कितना असरदार है?

कर्नाटक में बीजेपी में पिछले साल से ही सरकार बनते ही तमाम मुद्दे जबरदस्ती बनाने की कोशिश की इसमें हिंदूत्व गो हत्या, आतंकावाद और हिजाब मुद्दे पर बहस की एक नई राजनीति आप सुन चुकें है।

हिजाब मुद्दे की वजह से कर्नाटक में उडूपी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रघुपति भट्ट काफी सुर्खियों में रहे। लेकिन अब पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। इससे भी बीजेपी के एक धड़ में नाराजगी आ गई है। रघुपति भट्ट का कहना है कि “अमित शाह ने जगदीश शेट्टार को फोन कर बदलाव के बारे मे जानकारी दी मैं उम्मीद नहीं करता हूं कि शाह मुझे फोन करेंगे लेकिन कम से कम जिला अध्यक्ष को ऐसा करना चाहिए था। अगर मुझे सिर्फ मेरी जात के कारण टिकट से वंचित किया गया है तो मैं इसके लिए राजी नहीं हूं।”

जैसा कि मालूम हो कि सरकार ने शिक्षण संस्थानों में छात्राओं के हिजाब इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इस प्रतिबंध को बरकरार रखा था। लेकिन अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले में एक खंडित फैसला सुनाया था जिसमें एक जस्टिस ने कहा था कि सरकार स्कूलों में ड्रेस कोड लागू करने के लिए अधिकृत है और दूसरे ने हिजाब को पसंद का मामला बताया था।

हिजाब मुद्दे के अलावा मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर इस्तेमाल पर कर्नाटक पूर्व डिप्टी सीएम एस ईश्वरप्पा ने विवादित बयान देकर के हाल ही में इस मुद्दे को हवा दे दिया था और कहा था कि क्या अल्लाह बहरा है जो उन्हें बुलाने के लिए लाउडस्पीकर पर चिल्लाना पड़ता है। हालंकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले साल इस मुद्दे पर फैसला सुनाया था कि मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक नहीं लगा सकते। अब इसी बीजेपी नेता एस ईश्वरप्पा सहित 11 सिटिंग विधाय़को के टिकट बीजेपी ने काट दिए हैं, जिसके बाद पार्टी के कई नेताओं ने सामने आकर इस्तीफा दे दिया है। हालांकि ईश्वरप्पा ने खुद साफ कर दिया कि वह चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं और चुनावी राजनीति से सन्यास ले रहे हैं।

बीजेपी के नेताओं में बगावत जारी

लेकिन शिवमोगा के जिला अध्यक्ष सहित 19 नगर निगमों के सदस्यों ने ईश्वरप्पा के समर्थन में इस्तीफ दे दिया और इसके अलावा भी कई नेता इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं। ऐसा आप खबरों ने देख सकते हैं असल में ईश्वरप्पा पर 40 प्रतिशत कमीशन वाला आरोप कर्नाटक सरकार में मंत्री रहते हुए लगा था जिसके बाद इन्हे अपने मंत्री पद से भई इस्तीफा देना पड़ा था। ये अलग बात रही कि जांच के बाद उन्हें क्लीन चीट दे दी गई थी। ईश्वरप्पा 75 साल के होने जा रहे हैं। वो उम्र जिसमें दिग्गजों को मार्गदर्शन मंडली में शामिल करवा देती है। लेकिन, जिस तरह से एक चुनावी सन्यास के बाद इस्तीफों का दौर शुरू हुआ है। कर्नाटक में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।

हिजाब, लाउडस्पीकर, भ्रष्टाचार के आरोप मामले में इस तरह से आप देख रहे हैं। सबके सब बीजेपी के लिए उल्टे पड़ते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा आरक्षण का मुद्दा कर्नाटक चुनाव से पहले गर्मा गया है। हाल ही में कर्नाटक सरकार ने ओबीसी कोटे से मुस्लिम समुदाय को 4 फीसदी आरक्षण वापस लेने का फैसला किया। सरकार ने इसका 2-2 फीसदी आरक्षण वोक्कालिंगा और लिंगायत समुदाय में बांट दिया है। इसके अलावा मुस्लिम समाज को आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईडब्ल्यूएस) वर्ग में रखा है। साथ ही एससी कैटिगरी के तहत अलग-अलग दलित समुदायों के लिए आतंरिक आरक्षण को लागू किया है जिससे राज्य की राजनीति में हलचल तेज है।

बीजेपी ने वोक्कालिंगा समुदाय को अपनी और खींचने के लिए नया हथकंडा अपनाया है। बीजेपी का कहना है टीपू सुलतान स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे। उनकी हत्या वोक्कालिंगा समुदाय ने की जहां जेडीएस मजबूत है यह ओल्ड मैसूर क्षेत्र में पाया जाता है। अब तो आपको इतना जानकर यह अदांजा लग ही गया होगा कि बीजेपी की इन्ही सब कमजोरी की वजह से पार्टी के नेताओं में एकजुटता के बजाए विरोध के स्वर भी देखने को मिलने लगे हैं। कर्नाटक के मंत्री और दक्षिण कन्नड़ जिले के सुलिया क्षेत्र से 6 बार के विधायक एस अंगारा का बीजेपी ने टिकट काट दिया। इसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया। टिकट न मिलने पर ही कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण साउदी ने बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे की घोषणा कर दी। टिकट न मिलने से ही नाराज बीजेपी के मुडिगेरे से 3 बार के विधायक एमपी कुमार स्वामी ने पार्टी से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। अनुमान यहां तक लगाया जा रहा है। कि वह जेडीएस में शामिल भी हो सकते हैं। इसी बीच राज्य के वरिष्ठ काग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने दावा किया है कि उनके पास कई बीजेपी नेताओं के फोन  रहे हैं। जो कांग्रेस जॉइन करना चाहते हैं। बगावत ने यह साफ कर दिया है कि बीजेपी का ध्यान अब अपनी ही पार्टी के नेताओं को मनाने में लगेगा। उधर कांग्रेस अब मजबूत दिखाई दे रही है।

कर्नाटक में 1985 के बाद कभी भी कोई भी राजनीतिक दल दूसरी बार जीत नहीं दर्ज कर सका। इसिलए भी ऐसा लोग कयास लगा रहे हैं कि बीजेपी कर्नाटक में नहीं आएगी।

अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम 13 मई को जब घोषित होंगे तब यह निश्चित हो जाएगा कि कर्नाटक में बीजेपी दूसरी बार लगातार सरकार बना पाएगी या नहीं। साथ ही कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए भी यह चुनाव लोकसभा चुनाव के पहले अग्नि परीक्षा की तरह होगा क्योंकि बीजेपी कांग्रेस और विपक्ष पर लगातार वार कर रही है और वहीं कांग्रेस मोदी और उनकी लोकप्रियता से उठकर मुद्दों पर जनता से साथ देने की अपील कर रही है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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प्रभात
लेखक FORUM4 के संपादक हैं।

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