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मोदी सरकार को लोगों की जिंदगी से ज्यादा अपनी इमेज की चिंता!

विश्वभर में पीएम मोदी के नाम का डंका बज रहा है। सब कुछ चंगा है। मोदी हैं तो मुमकिन है जैसे नारों पर सैटेलाइट चैनलों ने खूब टीआरपी बटोरी। लेकिन दो ‘क’ ने पीएम नरेंद्र मोदी की असली छवि को लोगों के सामने लाकर रख दी। अब मोदी के नाम पर से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है।

बताते हैं .ये दो क कौन हैं और क्यों इस बारे में बात करना जरूरी है? 

हां तो हम बात कर रहे हैं, मोदी का नाम और उसकी लोकप्रियता और देश पर पड़ते प्रभाव की। तो इसके लिए दो क पर बातें करनी जरूरी है।  

एक क कोरोना वायरस और दूसरा क किसान। इन दोनों ने न्यूज चैनलों की सारी असलियत उजागर कर दी है। मोदी के राष्ट्रवाद और देशभक्ति की पोल खोल कर रख दी है। मोदी हैं तो मुमकिन है। आयेगा तो मोदी ही जैसे नारों पर विवाद छेड़ दी है। इसने मोदी की लोकप्रियता को लगभग खत्म कर दी है। यह हम नहीं कह रहे यह एक अमेरिकी सर्वे बता रहा है, जिसके बारे में आपने शायद सुना होगा। अमेरिकी डेटा इंटेलिजेंस कंपनी ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ ने कहा है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में सितंबर 2019 से अब तक 22 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है। सर्वे के मुताबिक़, महानगरों में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के साथ ही मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है। चूंकि यह पिछले हफ्ते की खबर है इसलिए हम इस बारे में ज्यादा नहीं बताते हैं हालांकि मोदी की लोकप्रियता में कमी का सबसे अहम कारण इस सर्वे में यही है कि महामारी से निपटने में सरकार के प्रति लोगों का भरोसा कम हुआ है। यह खबर देखिये, मोदी ने महामंथन भी शुरू कर दिया है। इस बारे में बात करें उससे पहले  

अब हम बात कर लेते हैं दूसरा क किसान आंदोलन की। किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने पर अब फिर से चर्चा छिड़ गई है। और मोदी सरकार संकट में आ गई है। क्योंकि किसान 6 माह पूरा होने पर 26 मई को काला दिवस मनाने जा रहे हैं। सरकार किसानों से अब भी बातचीत को तैयार नहीं है, और भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत ने रविवार को कहा कि किसान संगठन केन्द्र के साथ बातचीत फिर शुरू करने को तैयार हैं।

हरियाणा के हिसार जिले में किसानों का आज भी बड़ा प्रदर्शन होने जा रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए जिलेभर में रैपिड एक्शन फोर्स के 3 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात किया गया है। किसानों का ये प्रदर्शन 16 मई को 350 से ज्यादा किसानों पर केस दर्ज किए जाने के खिलाफ हो रहा है। जब बीते 16 मई को हिसार में सीएम मनोहर लाल खट्टर कोविड अस्पताल का उद्घाटन करने पहुंचे थे। इस दौरान किसानों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था. इसके बाद पुलिस और किसानों के बीच झड़प भी हुई थी. पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले तक छोड़े थे. इस झड़प में दर्जनों किसान और पुलिस के जवान घायल हुए थे। मामले में 350 किसानों पर आईपीसी की 11 अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज किया गया था। किसानों की मांग है कि जिन किसानों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए. उन्होंने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का बायकॉट करने की धमकी भी दी है।

उधर देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन के छह महीने पूरे होने के मौके पर 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को अपना समर्थन देने की घोषणा की है इसमें कांग्रेस, टीएमसी, द्रमुक, भाकपा, राजद, माकपा, आप, शिवसेना भी शामिल हैं।. एक संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘हमने 12 मई को संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था, महामारी का शिकार बन रहे हमारे लाखों अन्नदाताओं को बचाने के लिए कृषि कानून निरस्त किए जाएं, ताकि वे अपनी फसलें उगाकर भारतीय जनता का पेट भर सकें.’ किसानों के संयुक्त बयान के अनुसार, ‘हम कृषि कानूनों को तत्काल निरस्त करने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सी2+ 50 प्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अमलीजामा पहनाने की मांग करते हैं.’

आपको पता है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में तब से अब तक किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

कोरोना महामारी के दौरान भी किसान दिल्ली की सीमाओं पर लगातार बैठे हैं और इसके विरोध में आज भी हजारों किसान प्रतिदिन आंदोलन स्थल पर आ रहे हैं।

प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच अब तक की 11 दौर की वार्ता हो चुकी है और 26 जनवरी के बाद से वार्ता न होने से गतिरोध जारी है। मोदी सरकार इस मुद्दे को हल न करने के मूड में  दिखाई देती है।

इसका परिणाम यह हुआ कि देशभर के लोगों में मोदी सरकार के प्रति नाराजगी दिखी। बंगाल चुनाव में किसानों का मुद्दा भी छाया रहा। बीजेपी की हार से ज्यादा यह मोदी की हार ही है जो वह बंगाल में अपनी सरकार न बना सके।

इधर कोरोना से पिछले 13 दिनों में ही देश में 50 हज़ार से अधिक मौतें हो गई हैं और मौतों का आधिकारिक आंकड़ा भी तीन लाख को पार कर गया है. देश में औसतन हर रोज़ 4 हज़ार के करीब ही मौतें हो रही हैं. चिंता की बात ये है कि बीते दो हफ्ते में ही मौतों का कुल आंकड़ा ढाई लाख से तीन लाख को पार कर गया है। भारत, अमेरिका ब्राजील के बाद मौतों के मामले में तीसरे नं पर पहुंच गया है। और इसके बाद भी खासकर गांवों में कोरोना की जांच पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। गंगा में लाशों का तैरना आम बात हो गया है।

और संपूर्ण रूप से शायद यही सब वजह है कि आज मोदी को अपनी इमेज बचानी पड़ रही है। और उसके लिए मोदी का महामंथन चल रहा है। रविवार की देर शाम दिल्ली में बीजेपी (BJP) और संघ (RSS) के बीच शीर्ष स्तर पर मंथन हुआ. एनडीटीवी की खबर के मुताबिक कोरोना महामारी के हालात के बीच सरकार और पार्टी की छवि को लेकर इस बैठक में चर्चा हुई है. बंगाल के बाद मोदी और बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण अब यूपी में अगले साल होने वाला विधान सभा चुनाव है। इसलिए मोदी सरकार को लोगों की जिंदगी बचाने से ज्यादा चिंता अब अपनी इमेज बचाने की हो रही है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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प्रभात
लेखक फोरम4 के संपादक हैं।

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