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बीजेपी का अब चुनावी घोषणा पत्र में सावरकर बन रहा एक बड़ा मुद्दा, जाने कैसे बदल रहे मुद्दे

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जो घोषणापत्र जारी किया है उसमें विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर को भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की है। हिंदुत्व विचारधारा के समर्थक वीर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने  को लेकर राजनीतिक पार्टियों में मतभेद है। महाराष्ट्र के कई इलाकों में सावरकर का काफी महिमामंडन  किया जाता है।  महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना और खुद बीजेपी अक्सर सावरकर की देशभक्ति का गुणगान करती रहती है। सावरकर समर्थक अक्सर सावरकर को मिली काला पानी की सजा (अंडमान जेल में कैद) का जिक्र करते हैं। वहीं सावरकर के आलोचक उनके द्वारा अंग्रेजी शासन के सामने माफीनामा लिखने को लेकर उनकी आलोचना करते रहते हैं।

बीजेपी का चुनावी घोषणा पत्र में जैसे पहले राममंदिर का मुद्दा छाया होता था। आर्टिकल 370 का मुद्दा होता था। अब वह इसे नया स्वरूप दे रही है। जिस तरह से विश्वविद्यालयों में एबीवीपी का चुनावी मुद्दा सावरकर की मूर्तियों को स्थापित करवाने का बना रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय में इसको लेकर पिछले चुनावों में राजनीतिक माहौल काफी गर्म रहा वहीं अब विधानसभा चुनावों में सावरकर एक बड़े मुद्दे के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। बीजेपी गांधी जयंती के अवसर पर सावरकर को एक बड़े चेहरे के रूप में सामने लाने का प्रयास करती रही है।

आरएसएस और सावरकर के समर्थक सावरकर को हिंदू राष्ट्रवाद का जनक मानते हैं। लेकिन आरएसएस अक्सर हिंदू महासभा से दूरी बनाती नजर आती है जबकि सावरकर ने  1937 से 6 साल के लिए हिंदू महासभा का नेतृत्व किया था। अब सवाल यह है कि बीजेपी वीर सावरकर को  चुनाव से हफ्ते भर पहले भारत रत्न से सम्मानित क्यों करना चाहती है और इसके राजनीतिक मायने क्या है।
दरअसल, बीजेपी इस फैसले से अपनी हिंदुत्व की राजनीति को कमतर नहीं होने देना चाहती है। बीजेपी और आरएसएस चाहती है कि कोई भी राजनीतिक या गैर राजनीतिक दल हिंदुत्व वाली राजनीति में सेंध ना लगाने पाए।
इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख के मुताबिक बीजेपी और आरएसएस के साथ लंबे समय से काम कर चुके एक  राजनीतिक जानकार का कहना है कि सावरकर पर कोई भी हमला या टिप्पणी होती है तो बीजेपी या आरएसएस तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते हैं बल्कि इन संगठनों के शरारती तत्व ऐसा करते हैं और वहीं पहले सामने आते हैं। हालांकि, बीजेपी और आरएसएस का नेतृत्व इन असामाजिक तत्वों का भी एक दायरे से आगे नहीं बढ़ने देता है। इतनी ही नहीं  भारत रत्न देने का यह फैसला शिवसैनिकों को खुश करेगा। वहीं आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी इससे खुशी मिलेगी।
इसके अलावा यह बीजेपी के लिए भी एक तरह का मौका है कि वह अपने राजनीतिक विचारकों को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित कर सके। आरएसएस ने कभी भी स्वतंत्रता संग्राम में अपने पुराने नेताओं का महिमामंडन करने से जरा भी नहीं हिचकती नजर आई है। अपनी हालिया पुस्तक द आरएसएस: रोडमैप्स फॉर द 21 वीं सेंचुरी में, सुनील अम्बेडकर ने स्वतंत्रता संग्राम विचारधारा-केंद्रित होने के बजाय व्यक्तित्व-केंद्रित (गांधी-केंद्रित) बनाने के लिए केबी हेडगेवार की आपत्ति का जिक्र किया है। संघ ने हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर गांधी के दृष्टिकोण को भी नापसंद करती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई लोग मानते हैं कि महात्मा गांधी के महिमामंडन के चलते सुभाष चंद्र बोस और सावरकर जैसी बड़े नेताओं को वो नाम नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। संघ पहले से ही यह मानता आया है कि आजादी के पहले का इतिहास सावरकर के बिना अधूरा है। और इसी मकसद के साथ आरएसएस अपने नेताओं को देश के राष्ट्रीय नेताओं की फेहरिस्त में जोड़ना चाहता है। साल 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस तरफ इशारा किया था कि संघ अपनी विचारधारा और अपने प्रतीकों को मुख्यधारा से जोड़ना चाहता है और आरएसएस के बारे में जो भी भ्रम और भ्रांतियां हैं उन्हें दूर करना चाहता है।

अब देखना यह है कि किस तरह से बीजेपी सावरकर की छवि को अपने पार्टी के साथ आगे लेकर चलती है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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