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काला दिवस विशेष- नये कृषि कानून किसानों के लिए राहत या गले का फंदा?

वर्तमान में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। किसान आंदोलन को 26 मई से 6 महीने पूरे होने जा रहे हैं पर किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध अब भी जारी है। आइये एक-एक कर जानते हैं आखिर ये कानून कौन-कौन से हैं और उनकी क्या खामियां हैं।

पहला कानून- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम- 2020 की हकीकत

यह पहला कृषि कानून है। इसी तरह की कुछ व्यवस्था बिहार में मौजूद है। बिहार में 2006 में एपीएमसी एक्ट खत्म कर दिया था, वहां की स्थिति बद से बदतर है। वहां एमएसपी से आधे रेट पर उपज बिकती है। अगर शुरू में कुछ दे भी दिया तो बाद में समस्या बढ़ जाती है। मसलन कुछ कंपनियों ने जैसे नेट का डाटा शुरू में फ्री में दिया, बाद में रेट बढ़ा दिए। ऐसे में जो लोग नंबर पोर्ट कराकर आए और पुरानी कंपनियों में जाना चाहा, तब तक पुरानी दुकानें बंद हो चुकी थीं। ऐसी ही हालात किसान की भी हो जाएगी। न मंडियां होंगी न एफसीआई बचेगा। साथियों इसी प्रकार का एक और प्रत्यक्ष उदाहरण बताता हूं। महाराष्ट्र में तो पहले से ही प्राइवेट मंडियां हैं, वहां तो दाम नहीं मिल रहा है न?

किसानों को सरकार गुमराह कर रही है महाराष्ट्र में तो पहले से ही प्राइवेट मंडियां हैं, वहां तो दाम नहीं मिल रहा है। कपास पर एमएसपी नहीं मिल रही। नीचे बिक रही है। जिस चीज के दाम बढ़ने लगते हैं सरकार उसका आयात करवा लेती है और दाम नीचे चला जाता है कृषि अर्थशास्त्री देवेन्द शर्मा इस पर टिप्पणी करते हैं कि “कॉरपोरेट (अडानी/अम्बानी) आएगा तो छोटे किसान बाहर होंगे। जब कॉरपोरेट आएगा तो छोटे किसान बाहर होंगे। किसान यह बात समझता है। अगर अमेरिका का उदाहरण लें तो 1970 के दशक से अभी तक 93 फीसदी डेयरी फॉर्म बंद हो चुके हैं। फिर भी अमेरिका में दूध का उत्पादन बढ़ा है क्योंकि कॉरपोरेट की एंट्री हो गई है। यही हाल भारत में होगा, क्योंकि ये मॉडल हम वहां से लेकर आए हैं। कॉरपोरेट फायदे में रहेगा इसलिए उछल रहा है।”

दूसरा कानून- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवा पर करार अधिनियम-2020

यह कानून भी बड़े गतिरोध का कारण है चूंकि इसी में कांट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध खेती की बात की गई है कृषि के क्षेत्र में अधिकांश फसलों में उत्पाकदता में प्रथम स्थान रखने वाले राज्य पंजाब में कांट्रेक्ट फार्मिंग लंबे समय से हो रही है। कंपनी अपने महंगे बीज देती है खाद और दिशानिर्देश भी देती है किसान नकदी फसलों की ओर भागता है कंपनी अपने हिसाब से खेती कर आती है खाद्यान्न संकट न बढ़ जाए। लागत बहुत लग जाती है। खुद के बीज भी खत्म हो जाएंगे। गुणवत्ता के आधार पर नहीं भी खरीदती है। कंपनी उसे खरीदने के लिए नखरे करती है उसी गुणवत्ता में पहुंचाना होता है किसान उतना तकनीकी जानकर नहीं के मानकों पर खरा उतर पाए। पंजाब में किसानों का माल कंपनी ने नहीं खरीदा तो खुले बाजार में भेजना पड़ा।अगर इस प्रकार हुआ तो इसके अनेको दुष्प्रभाव होंगें जैसे पूरे के पूरे गांव में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से गांव में खाद्यान्न संकट आ सकता है एक जगह एक ही तरह की फसलें होने लगेंगी। आपको बताते चले की कांट्रेक्ट की सबसे पहले पंजाब में ही लोगों ने अनुबंध खेती से हाथ खींचे बस आप हमें एमएसपी दीजिए इसके नीचे खरीद गैरकानूनी करें पूरी दुनिया में किसान बाजार के उतार-चढ़ाव से ही परेशान हैं। किसान एक निर्धारित मूल्य चाहता है आज किसान को सीधे समर्थन की जरूरत है किसान की अब आम 18000 रुपये प्रतिमाह हो। पीएम किसान निधि की योजना अच्छी पहले किसान आय मांग रहा है और उन्हें बाजार के हवाले कर देते हैं। क्या अर्थशास्त्रियों और नौकरशाहों का वेतन पैकेज भी बाजार के साथ लिंक किया जा सकता है?अगर बाजार इतना अच्छा है तो इन्हें क्या दिक्कत है? किसान को भी दिक्कत नहीं होगी।

तीसरा कानून- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम

इसका प्रभाव यह होगा की इसमें पूंजीगत स्टॉक करेंगे, जहां सस्ता मिलेगा वहां से ले लेंगे। सस्ता आयात करके सस्ता बेचने से देश के किसान का माल खरीदेगा कौन? किसान को और सस्ते से में बेचना पड़ेगा। एक तरह से मार्केट को कंट्रोल कर लेंगे। निजी कंपनियों के इशारों पर मार्केट का रेट तय होगा। मिलावट भी बढ़ेगी अभी कम कर रहे हैं जब बड़े लोग आ जाएंगे तो कंट्रोल बिल्कुल भी नहीं रहेगा।

प्रावधान है कि अनाज के 50 प्रतिशत दाम बढ़ने पर, सब्जी और फल में 100 प्रतिशत दाम बढ़ने पर, वह तिलहन दलहन में 50 प्रतिशत से अधिक दाम बढ़ने पर सरकार दखल देगी लेकिन सरकार तय करेगी। दाम एमएसपी से कम न मिलें। अब बाजार में दाम बढ़ने शुरू हुए तो सरकार ने आयात शुरू कर दिया जबकि विदेशों में ऐसा नहीं होता। निजी कंपनी आएंगे तो जितनी दाल मील को साल भर की जरूरत होगी तो उतनी इकट्ठा करके रख लेंगी। किसानों से नया खरीदने पर उनका नुकसान होगा, निर्यात होगा तो वह उपभोक्ता पर मार पड़ेगी। अगर कंपनी निर्यात के लिए खरीद रही है तो कानून नहीं लागू होगा। जब जो स्टॉक बनाकर रख लेगा। वह उसे निकालकर फसल के समय बाजार में दाम गिरा देगा, और फिर स्टॉक कर लेगा इस पर सरकार कैसे नियंत्रण करेगी?

जब स्टॉक लिमिट नहीं रहेगी तो जितना मर्जी कोई भी व्यक्ति स्टॉक कर सकेगा। उपभोक्ता को तो उतना नुकसान नहीं होगा क्योंकि जब कीमतें बढ़ती हैं तो सरकार आयात करके दुकानें खोलती हैं। जब सस्ता होता है तो सरकार ने क्या किया? जब किसान अपना उत्पाद सड़कों पर फेंकता है तो सरकार ने क्या किया? क्या किया प्राइवेट प्लेयर्स ने?

इन परिस्थितियों में पहले से बर्बाद किसान और बर्बाद हो जाएगा अगर आज इन कानूनों की वापसी न हुई तो हमारी आने वाली पीढ़ी को हम क्या जवाब देंगे? उठो और स्वर बुलंद कर दो!

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सौरभ सौजन्य
टिप्पणीकार चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि विवि कानपुर के स्कॉलर एवं लगातार 3 बार यूपी छात्र संघ अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं

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