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किसान आंदोलन को 6 महीने हुए पूरे, जानिए अब तक क्या-क्या हुआ?

किसानों को तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करते हुए 6 महीने पूरे हो चुके हैं। 26 नवंबर 2020 से किसान दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर काले कानूनों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, सरकार अब तक इन कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं। आज किसान आंदोलन को 6 महीने पूरे हो जाने पर किसान बॉर्डर पर काला झंडा दिवस मनाकर विरोध दर्ज कर रहे हैं। आज ही मोदी सरकार को सत्ता में बैठे हुए 7 साल पूरे हो गये हैं।

शुरुआत में जब इन किसानों ने अपने ट्रैक्टरों में राशन लेकर दिल्ली पहुंचना शुरू किया था तब शायद ही किसी को विश्वास हुआ हो कि ये आंदोलन इतने लंबे समय तक चल सकेगा। लेकिन, आज 6 महीने पूरे हो चुके हैं और किसान अभी भी दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं।

इन सबके बीच स्वराज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव जो कि लगातार किसान आंदोलन की कमान भी संभाले हैं। उन्होंने मोदी सरकार से 7 सवालों के जवाब मांगे हैं।

पहला सवाल, 2016 में कहा था कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी, क्या दोगुनी हुई?

दूसरा सवाल, सरकार स्वामीनाथन कमिशन के सुझाए फार्मूले के अनुसार लागत के डेढ़ गुना एमएसपी देने के वादे से क्यों मुकर ?

तीसरा सवाल, प्रधानमंत्री बीमा फसल योजना असफल क्यों?

चौथी सवाल, सूखे और आपदा से निपटने के लिए सरकार ने क्या किया?

पांचवा सवाल, खेतों की लागत को घटाने का वादा कर मोदी सरकार सत्ता में आई फिर खाद, डीजल, पेट्रोल के दाम में इतनी बढ़ोतरी क्यों?

छठा सवाल, सरकार ने किसान को बर्बाद करने वाले इंपोर्ट-एक्सपोर्ट की नीति क्यों अपनाई?

सातवां सवाल, जिन तीन कानूनों को किसानों ने मांगा नहीं, उन्हें किसानों से पूछे बिना क्यों थोपा गया?

आपको बता दें कि किसान नेताओं ने 21 मई को प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा कि वे दोबारा से संवाद करना चाहते हैं। यानी बातचीत के जरिए इसका हल निकालना चाहते हैं। ये पहली बार नहीं है जब किसानों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बातचीत के लिए कहा है। इससे पहले भी किसान नेता कई बार सरकार के सामने बातचीत का प्रस्ताव रख चुके हैं लेकिन अब तक कोई बात नहीं बनी है। सरकार इन कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं है।

6 महीने कैसे चला किसान आंदोलन?

तो बात है 2020 कि जब कोरोना की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था और इसी बीच कृषि सुधार के नाम पर तीन अध्यादेश लॉकडाउन के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार लाई थी, जिन्हें लागू तो कर दिया गया था लेकिन संसद में पास होना जरूरी था। 20 सिंतबर 2020 को संसद में बिल पेश किया गया विपक्षी पार्टियों ने इस बिल का काफी विरोध किया, लेकिन ये बिल पास हो गया। जब ये बिल संसद में पास हो गए तो पंजाब के किसान इन बिलों का विरोध करने लगे। लगातार 2 महीनों से पंजाब में विरोध चलता रहा लेकिन, सरकार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा।

सरकार की ओर से बनाए गये कानून

पहला, कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 है। दूसरा, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 और तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 हैं। किसानों का मानना है कि ये विधेयक धीरे-धीरे एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) यानी आम भाषा में कहें तो मंडियों को ख़त्म कर देगा और फिर निजी कंपनियों को बढ़ावा देगा, जिससे किसानों को उनकी फ़सल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। किसानों का ये भी कहना है कि ये तीनों कानून अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपतियों के लिए सरकार ने बनाए हैं।

आंदोलन में जब दूसरे राज्यों से जुड़ने लगे किसान 

आपको याद होगा, पंजाब में कृषि बिलों के विरोध में किसानों ने रेल रोको आंदोलन चलाया था, जिसमें 24, 25 और 26 सितंबर को पंजाब जाने वाले ट्रेने बंद कर दी थीं। किसान रेलवे ट्रैक पर बैठ गये थे। उनका कहना था कि सरकार जब तक ये बिल वापस नहीं लेती तब तक किसान पटरियों पर से नहीं हटेंगे लेकिन सरकार पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ा तो किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ मार्च का ऐलान किया। 25 नवंबर को पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली की और बढ़ने लगे। सरकार ने दिल्ली आने वाले सभी रास्ते बंद कर दिये। जगह-जगह किसानों को रोकने के लिए बैरिकेडिंग कर दी गई। गड्ढे खोद दिये गए। सड़कों पर बड़े बड़ें पत्थर रख दिये गये ताकि किसान दिल्ली की सीमाओं को पार न कर सकें। इतना ही नहीं किसानों को रोकने के लिए वॉटर कैनन और आंसू गैस के गोले छोड़े गये। इन सबसे किसान ओर आक्रोश में आ गए। धीरे -धीरे दूसरे राज्यों के किसान भी दिल्ली चलो का ऐलान करने लगे और दिल्ली की ओर कूच करने लगे। पुलिस की ओर से किसानों पर जमकर लाठियां बरसाई गई। लेकिन हजारों किसान दिल्ली की अलग अलग सीमाओं पर पहुंच गए।

25 नवंबर से शुरू हुआ ये आंदोलन लगातार बढ़ता ही गया। इसमें शुरूआत में पंजाब और हरियाणा के किसान शामिल हुए लेकिन धीरे धीरे दूसरे राज्य के किसान संगठन भी इसका हिस्सा बनते गये। किसानों का दिल्ली तक का सफर काफी मुश्किल रहा। किसान आंदोलन में पुसिल का जो रवैया रहा वो बेहद शर्मनाक रहा। इन सबसे किसान ओर आक्रोश में आ गए। उनका कहना था कि क्या हम इस देश का हिस्सा नहीं है?क्या हमें अपनी बात रखने का हक नहीं है?

26 नवंबर को किसान दिल्ली पहुंचे और तब से लेकर अब तक यहीं डटे हुए हैं। पुलिस की तैनाती कर केंद्र सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर बंद करा दिये। किसानों के साथ सरकार का रवैया कुछ ऐसा था जैसे किसान देश का हिस्सा हो ही न।

सरकार और किसानों की बातचीत

इसके बाद सरकार के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। केंद्र सरकार के साथ पहली बैठक 14 अक्टूबर को हुई लेकिन उसमें सरकार की ओर से कृषि सचिव बातचीत करने के लिए आए थे। दूसरी बैठक 1 दिंसबर को कोई हुई जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर सिंह और रेल मंत्री पीयूष गोयल शामिल हुए। उस समय ये कहा गया था कि हल निकालने की कोशिश सरकार करेगी। लेकिन अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है और कोई नतीजा नहीं निकला है। सरकार की ओऱ से आखिरी प्रस्ताव में ये कहा गया कि ये बिल डेढ़ साल तक के लिए रोक लगा दिया जाएगा। लेकिन किसानों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। किसानों की एक ही मांग थी कि ये तीनों कृषि कानूनों को सरकार वापस ले ले। वरना किसान अपने साथ कई महीनों का राशन लेकर आएं हुए हैं और वो तब तक बॉर्डर पर बैठे रहेंगे जब तक की सरकार इस कानूनों को वापस नहीं ले लेती है।

26 जनवरी के बाद सरकार से कोई बातचीत नहीं हुई

26 जनवरी को किसानों ने दिल्ली में परेड निकालने का निर्णय किया। सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर से हजारों की संख्या में किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में दाखिल हो गये। लेकिन इसमें कुछ उग्र लोग शामिल हो गये जिससे लोग रास्ता भटक गये और कुछ लोगों लाल किले पर धार्मिक झंडा सिख धर्म का निशान साहेब का झंडा फहरा दिया। इस दौरान पुलिस और किसान दोनों घायल हुए। बड़ी संख्या में लोगों की गिरफ्तारी हुई। इन सबके बीच दीप सिद्धू का नाम आया जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

इसके बाद किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी और न जाने क्या-क्या कहा गया। आंदोलन को धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई। आंदोलन खत्म करने के लिए सरकार ने पूर्जोर लगाया लेकिन किसान टस से मस नहीं हुए। और आज किसान आंदोलन को 6 महीने पूरे हो गये। आपको बता दें  कि किसान आंदोलन में लगभग 250 किसानों की मौत हो चुकी है।

30 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर अगर किसान नेता चर्चा करना चाहते हैं तो मैं बस एक फोन कॉल दूर हूं और आज तक किसान प्रधानमंत्री के फोन का इंतजार कर रहे हैं लेकिन न तो केंद्र सरकार के किसी मंत्री की ओर से बातचीत का प्रस्ताव आया है और न ही प्रधानमंत्री का कोई फोन। ऐसे में किसान नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर बातचीत करने को कहा है क्योंकि समाधान सिर्फ बातचीत से ही निकाला जा सकता है।

इसी बीच बंगाल में चुनाव हुए। किसान नेताओं ने बंगाल जाकर मोदी सरकार को वोट न देने की अपिल की थी। संयुक्त किसान मोर्चा ने बंगाल में कई रैलियां की। हालांकि ममता बनर्जी का खुलकर समर्थन नहीं किया लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ प्रचार जरूर किया। और बंगाल में ममता बेनर्जी की जीत हुई। अब यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और हो सकता है कि संयुक्त किसान मोर्चा यूपी में भी मोदी सरकार के खिलाफ प्रचार करे क्योंकि बंगाल चुनावों पर किसान रैली का थोड़ा तो असर पड़ा है। हालंकि कुछ भी हो जाए लेकिन किसान उन सीमाओं पर तब तक डटे रहेंगे जब तक कि सरकार ये कानून वापस नहीं ले लेती। किसान कड़कड़ाती ठंड में, बारिश में और तपती धूप में भी सड़कों पर बैठे हुए थे। किसानों की मांगे वही हैं, किसानों के तंबू वहीं है अब देखना ये होगा कि सरकार किसानों से बातचीत करने को तैयार होगी या नहीं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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