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दिल्ली हिंसा- गर्भवती सफूरा को आखिरकार दिल्ली हाई कोर्ट से मिली जमानत

Photo: Facebook | Safoora Zargar

दिल्ली हिंसा मामले में गिरफ्तार जामिया की 27 साल की छात्र सफू़रा ज़रगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मंगलवार को जमानत मिल गई है। दिल्ली पुलिस के मानवीय आधार पर रिहाई के लिए तैयार होने पर अदालत उन्हें जमानत देने को तैयार हुई है। आपको बता दें कि सफूरा को दिल्ली दंगों में साज़िश रचने के आरोप में 10 अप्रैल को गिरफ़्तार किया गया था। 13 अप्रैल को उन्हें ज़मानत मिल जाती है, लेकिन उन्हें एक दूसरी एफआईआर के आधार पर फिर से गिरफ़्तार कर लिया जाता है। 21 अप्रैल को उन पर UAPA एक्ट लगाया जाता है। सफूरा जामिया विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी कर रही हैं और वह जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी की सदस्य भी हैं।

कोविड महामारी के दौरान और सफूरा के गर्भवती होने पर उन्हें जेल में रखने को लेकर सरकार और दिल्ली पुलिस की काफी आलोचना हुई थी। सोशल मीडिया पर हर दिन यह मामला छाय़ा रहा यहां तक कि ट्विटर पर उनकी रिहाई की मांग ट्रेंड करता रहा। सफूरा तिहाड़ जेल में, अपनी गर्भावस्था के 23 वें सप्ताह में प्रवेश कर चुकी थीं।

सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि केस की मेरिट पर ना जाकर उसे  इस केस में जमानत पर कोई आपत्ति नहीं है। जमानत देते हुए कोर्ट ने शर्तें भी लगाई हैं जिसके मुताबिक इस दौरान वो किसी भी ऐसी गतिविधि में लिप्त नहीं होगी जिसमें उनकी जांच हो रही है। गवाहों और सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगी। दिल्ली छोड़कर बिना अदालत की इजाजत से कहीं नही जाएंगी और जांच में सहयोग करेंगी। दिल्ली के क्षेत्र छोड़ने से पहले संबंधित अदालत की अनुमति लेनी होगी। उन्हें हर 15 दिनों में एक बार फोन कॉल के माध्यम से जांच अधिकारी के संपर्क में रहना होगा।

कोर्ट ने साथ यह भी कहा कि ये केस मिसाल नहीं बनेगा। वहीं दिल्ली पुलिस के वकील तुषार मेहता ने कहा कि मानवीय आधार पर जमानत का विरोध नहीं कर रहे हैं।

सफूरा ने जमानत खारिज होने के बाद हाई कोर्ट में दी थी चुनौती

10 अप्रैल को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा गिरफ्तार की गई सफूरा ज़रगर ने ट्रायल कोर्ट से अपनी ज़मानत खारिज होने के 4 जून के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

ट्रायल कोर्ट ने जरगर को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था। ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि

“जब आप अंगारे के साथ खेलना चुनते हैं, तो आप हवा को दोष नहीं दे सकते कि चिंगारी थोड़ी दूर तक पहुंच जाए और आग फैल जाए।”

ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि जांच के दौरान एक बड़ी साजिश की जांच की गई और अगर किसी साजिशकर्ता द्वारा किए गए षड्यंत्र, कृत्यों और बयानों के सबूत थे, तो यह सभी के खिलाफ स्वीकार्य है।

अदालत ने कहा था कि भले ही आरोपी (जरगर) ने हिंसा का कोई काम नहीं किया था, वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत अपने दायित्व से नहीं बच नहीं सकती।

इससे पहले दिल्ली पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय से जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा जरगर की जमानत याचिका का विरोध किया था और कहा था कि उसकी गर्भावस्था से अपराध की गंभीरता कम नहीं हो जाती है।

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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