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डीयू के आईजीपीईएसएस की प्रवेश प्रक्रिया में हुए बदलाव का छात्र क्यों कर रहे हैं विरोध?

दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले का दौड़ शुरू हो चुका है। कोविड महामारी की वजह से दाखिला प्रक्रिया में कई अहम बदलाव भी किए गए हैं, इनमें से कुछ बदलाव छात्रों के लिए मुसीबत बनकर खड़े हो गए हैं। इसी में से एक है डीयू आईजीआईपीईएसएस (इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस) के छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया। इसकी प्रवेश प्रक्रिया का आधार यूजी और पीजी के लिए 60 अंक प्रवेश परीक्षा, 20 अंक शारीरिक परीक्षा और 20 अंक मान्य सर्टिफिकेट के हुआ करते थे और कटऑफ के आधार पर कॉलेज में दाखिला लेना होता था। लेकिन, इस वर्ष सर्वव्यापी महामारी कोविड 19 के कारण प्राधिकारियों द्वारा इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव लाए गए। अब प्रवेश प्रक्रिया पूरी तरह प्रवेश परीक्षा (60%) और स्पोर्ट्स प्रोफिसिएंसी अवार्ड (40%) पर आधारित कर दी गई। छात्रों को लग रहा है कि यह बदलाव उनके लिए अन्यायपूर्ण है क्योंकि इसमें सर्टिफिकेट का भार ज्यादा हो गया है।

2019-20 दाखिले की प्रक्रिया में अंकों का भार

2020-21 दाखिले की प्रक्रिया में अंकों का भार

छात्रों का क्या कहना है?

बीएससी (पीई, एचई एंड स्पोर्ट्स साइंसेज) तृतीय वर्ष के छात्र रोहित जोकि बीपीईएड में दाखिला चाहते हैंं कहते हैं कि “जब से मैंने आईजीपीईएसएस में दाखिला लिया है तब से मेरी कोई भी खेल उपलब्धि नहीं है। कॉलेज में दाखिला लेने से पूर्व मे वर्ल्ड चैंपियनशिप खेल चुका हूं। पर, कॉलेज करने से मेरा खेल पूरी तरह छूट गया है। अब इन्होने कॉलेज का दाखिला बुलेटिन (एडमिशन प्रॉस्पेक्टस) पूरी तरह बदल दिया है। मैं अब दुविधा मे हूँ। मैं क्या करूँगा अब? धोबी का कुत्ता न घर का है न घाट का… ये वाली हालत हो गयी है।”

पंकज यादव कहते हैं कि “आईजीआईपेस कॉलेज जहां बच्चों का दाखिला होते ही उन्हें बताया जाता था कि आप यहां पर फिजिकल एजुकेशन टीचर बनने जा रहे हैं ना कि स्पोर्ट्स पर्सन जिसकी वजह से बच्चे अपना सारा ध्यान अपने खेल के प्रति नहीं लगा पाते थे और अब जब दाखिले की प्रक्रिया में पूरी तरह बदलाव कर दिया गया है तो हमारा भविष्य अंधकार में पड़ गया है। उन बच्चों का क्या जिनके पास सर्टिफिकेट नहीं है उनके सीधा 40% अंक में से जीरो नंबर लगेंगे मतलब सीधा जीरो। अब बच्चा 60% में से 60% पूरा तो ला नहीं सकता कि हमारा दाखिला हो सके। हम चाहते हैं कि दाखिला प्रक्रिया में बदलाव हो”

आकाश भटनागर कहते हैं कि

“आप यहां शारीरिक शिक्षा के अध्यापक बनने आएं हैं”

“यहां खेला नहीं जाता, हम यहां खेलों के बारे में पढ़ने आएं हैं”

हम ऐसे वाक्य अपने उन्मुक्तीरण के दिन सुनते हैं। इस तरह की प्रेरणा पाने के बाद हम सभी छात्र पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।ईजीपीईएसएस  कभी भी एथलीट छात्रों को भी नैतिक समर्थन प्रदान नहीं करते, जबकि वहीं छात्र इस विश्वविद्यालय का अलग-अलग प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व करते हैं।

कभी भी किसी छात्र ने नैतिक समर्थन प्राप्त ना होने की शिकायत नहीं की जब तक कॉलेज ने हमसे उच्च स्तरीय एडमिशन के समय स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट की मांग नहीं की।

जब पढ़ाई ही आपकी प्राथमिकता थी शारीरिक शिक्षा अध्यापक बनाने के लिए तब आप स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट कैसे मांग सकते हैं ?

क्यों हो रहा विरोध?

क्योंकि 40 फीसद भार स्पोर्ट्स प्रोफिसिएंसी अवार्ड को मिल गया है। इसलिए अब छात्र अगर प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर लें तब भी दाखिला लेना आसान नहीं रह गया है।

विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि पिछले वर्ष की कट ऑफ 55-57/100 थी; जिस छात्र के पास किसी तरह का सर्टिफिकेट नहीं है और फिर भी वह प्रवेश परीक्षा और शारीरिक परीक्षा के आधार पर इस कॉलेज में प्रवेश प्राप्त करने के लिए मेहनत कर रहा हो, इस स्थिति में उसके लिए वह 40 फीसद अंक शून्य के समान हैं।

छात्रों का कहना है कि कॉलेज पहले से ही प्रशासनिक और आधारिक संरचना (infrastructure) के स्तर पर हमारे स्पोर्ट्स को महत्व नहीं देता है। हमें हमेशा ही यह कहकर हतोत्साहित किया जाता रहा है कि इस कॉलेज में हमें स्पोर्ट्स पर्सन नहीं बनाया जाएगा, सिर्फ स्पोर्ट्स टीचर बनने के लिए हम सभी वहां थे। इस तरह के कथन छात्रों के लिए हिम्मत तोड़ने का काम करते थे और अब सर्टिफिकेट को इतना महत्त्व देना साबित करता है कि कॉलेज को अच्छा खेलने वाले छात्र चाहिए जो को अपने आप में विरोधाभास है।

जहां कॉलेज स्तर पर छात्रों को कभी किसी तरह का समर्थन नहीं मिला, चाहे वो किसी खेल प्रतियोगिता की बात हो, प्रैक्टिस की बात हो या अटेंडेंट्स की। कुछ अध्यापकों के अलावा जो कि निजी स्तर पर ही हमारी मदद कर पाते थे, उनके अलावा हमें किसी से समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। इन सभी बातों के बावजूद कॉलेज प्रशासन का हमसे यह उम्मीद करना कि बड़े बड़े स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट हमारे पास हों यह बिल्कुल न्यायपूर्ण बात नहीं है।

छात्रों का यह भी कहना है कि “सभी छात्र सुबह नौ बजे से शाम 5:30 बजे तक सभी कक्षाओं और प्रयोगात्मक कक्षाओं (practical classes) को पूरा दिन लेते हैं, जिसके परिणास्वरूप स्पोर्ट्स प्रैक्टिस के लिए समय नहीं मिल पाता ना ही हमारी प्रैक्टिस को लेकर कोई अनुसूची (schedule) बनाई जाती है ऐसे में सर्टिफिकेट प्राप्त करना नामुमकिन सा है, इस स्थिति में इस संशोधन का परिणाम हम जैसे छात्रों के प्रतिकूल व अन्यायपूर्ण है।

छात्रों की क्या है मांग?

छात्रों की मांग है कोविड महामारी को देखते हुए अगर छात्रों के हित में फैसला लेना है तो प्रवेश परीक्षा के अंकों में (80-90%) वृद्धि की जाए। क्योंकि छात्र इसके लिए तैयारी करके अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि अधिकतर छात्रों के पास सर्टिफिकेट नहीं होते।

यदि विश्वविद्यालय प्रशासन इसके लिए भी न तैयार हो तो कम से कम 75% अंक प्रवेश परीक्षा के लिए रखें जाएं और 25% अंक सर्टिफिकेट के लिए रखे जाएं, जिससे यह प्रवेश प्रक्रिया सभी के लिए न्यायपूर्ण रहे व उन सभी के लिए जो अपना भविष्य शारीरिक शिक्षा देखना चाहते हैं ताकि उन सभी को यह अवसर समान रूप से प्राप्त हो सके।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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