झारखंड की राजधानी राँची सुंदर शहर है और यह पहले बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। राँची शहर मोहराबादी मैदान के चारों तरफ बसा है। यहाँ झारखंड सरकार के स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावा सालों भर प्रदर्शनियाँ – मेले – उत्सव आयोजित होते रहते हैं। इसके पास ही जनजातीय संग्रहालय है जिसमें झारखंड के आदिवासी जनजीवन और संस्कृति की झलक दिखायी गयी है। राँची का पहाड़ी मंदिर प्रसिद्ध है और यह एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ के कांके डैम में प्रकृति की सुंदरता देखने को मिलती है। बांग्ला के प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर को यहाँ की एक पहाड़ी बेहद प्रिय थी और अब इसे टैगोर हिल के नाम से पुकारा जाता है। यहाँ उनकी स्मृतियों को भी सँजोया गया है। झारखंड में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आदिवासियों के विद्रोह के नेता बिरसा मुंडा की स्मृति में राँची के जेल में स्मारक संग्रहालय बनाया गया है। यहाँ का विज्ञान केन्द्र भी दर्शनीय है। राँची का मेन रोड स्थित बाजार भी भव्य और सुंदर है।
राँची के इतिहास पर अगर गौर किया जाय तो यह शहर काफी पुराना नहीं है और इसे ब्रिटिश काल में अँग्रेजों ने बसाया। इस दौरान राँची और इसके आसपास के इलाकों में अँग्रेजों को आदिवासियों के प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा। झारखंड में आदिवासियों के विद्रोह उलगुलान और इसके नेता बिरसा मुंडा की चर्चा इस प्रसंग में उल्लेखनीय है। बिरसा ने आदिवासियों को एकजुट करके तीर धनुष से ब्रिटिश आधिपत्य का विरोध किया था। ब्रिटिश सरकार की यातना से राँची जेल में उनका असमय देहांत हो गया। राँची में साल भर मौसम सुहावना बना रहता है और इस शहर की साफ सुथरी सड़कों गलियों में सदैव शांति और शीतलता छायी रहती है। पारिस्थितिकी में आने वाले बदलावों से राँची भी अब अलग थलग नहीं है और कभी सुंदर मधुर जल से परिपूर्ण रहने वाली इस शहर के बीच प्रवाहित हरमू नदी भी अब मृतप्राय हो चुकी है लेकिन, आदिवासियों के विस्थापन की नींव पर बसा यह नगर सबकी पसंद है।
राँची और इसके आसपास का परिवेश काफी सुंदर है। झारखंड की पठारी धरती पर वन्य प्रकृति का सौंदर्य और पहाड़ी नदी नालों का निर्मल स्वर यहाँ गूँजता सुनायी देता है। झारखंड के प्रसिद्ध जलप्रपात हुन्ड्रू और जोन्हा राँची से थोड़ी दूर पर स्थित हैं और यहाँ से थोड़ी दूर पर ही सुंदर स्थल नेतरहाट भी स्थित है। यहाँ के एकांतिक परिवेश में पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य देखने आते हैं। राँची का चिड़ियाघर भी सैर सपाटे की सुंदर जगह है और शहर से बाहर थोड़ी दूर पर स्थित है। हटिया को राँची का उपनगर कहा जाता है और यहाँ एचएमटी का कारखाना है। झारखंड सरकार ने राँची में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को भी स्थापित किया है। यहाँ परमहंस योगानंद के द्वारा स्थापित योगदा सत्संग सोसायटी आफ इंडिया का परिसर भी सुंदर और रमणीय है।
देश में आधुनिक शिक्षा के प्रसार में राँची विश्वविद्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण है और यह इस नगर में ज्ञान विज्ञान के अध्ययन का पुराना केन्द्र है। यहाँ झारखंड के आदिवासी भाषाओं के अध्ययन के विभाग के अलावा रिम्स नामक एक सुंदर मेडिकल कालेज और अस्पताल भी है। राँची के पास में ही कांके में मानसिक रोग का प्रसिद्ध अस्पताल सी आई पी भी स्थित है। यहाँ का रेलवे स्टेशन भी दर्शनीय है।
झारखंड के देवघर का वैद्यनाथधाम मंदिर
झारखंड का देवघर बाबा धाम के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ के श्रावणी मेले में हरेक साल लाखों लोग भाग लेते हैं और बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से गंगा नदी के पावन जल को काँवड़ में लेकर करीब सौ किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हुए यहाँ आकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। हालांकि इस बार यह सब कुछ कोरोना महामारी की वजह से नहीं हो पा रहा है।
यहाँ के शिव मंदिर की महिमा अद्भुत है और यहाँ आने वाले अपने सारे भक्तों की मनोकामनाओं को भगवान शिव पूरा करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार देवघर के शिव मंदिर को रावण ने स्थापित किया था, इसलिए यहाँ के मंदिर को रावणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। हिंदू धर्म के शैव मतावलंबी इस मंदिर को और यहाँ के शिवलिंग को देश के विभिन्न भागों में स्थापित शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक मानते हैं।
प्राचीन काल से देवघर शैव साधना का प्रमुख केंद्र है और इसे रामेश्वरम और केदारनाथ के समान माना जाता है। सावन के महीने में यह सारा नगर गेरुए वस्त्रधारी आबाल नर नारियों की आवाजाही से भर जाता है। देवघर पटना-हावड़ा रेलमार्ग पर स्थित जसीडीह से दस बारह किलोमीटर दूर बसा है और जसीडीह से रेलमार्ग से भी यह जुड़ा है। यहाँ तीर्थयात्रियों के लिए सैकड़ों धर्मशालाएँ हैं।
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