उज्जैन से कानपुर लाये जाने के दौरान विकास दुबे पुलिस गिरफ्त में मारा गया। वह कैसे खत्म हुआ और इसके साथ शुरू होने वाली कुछ तफ्तीश और चर्चाओं के बीच इस गैंगेस्टर के बहाने हम समाज और अपराध से जुड़े मुद्दों पर बातचीत कर सकते हैं। संगठित अपराध आज देश के हर हिस्से की समस्या है और इसे सिर्फ दाउद या सलेम की माफियागिरी के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसकी चपेट में देश का हर हिस्सा है और शहरों महानगरों के अलावा दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में गैंगेस्टरों का राज स्थापित है और ये किसी कीमत पर अपने दबदबे और रुतबे को खत्म नहीं होने देना चाहते। इनकी पैठ पुलिसतंत्र के भीतर भी है और अत्याधुनिक स्वचालित अवैध हथियारों से इनका कुनबा लैश है। चुनाव सुधार कानून बनने से पहले ये गैंगस्टर चुनावों में भी शिरकत करते दिखायी देते थे और चाहे जमीन की खरीद बिक्री के मामले हों या गाँव शहर में लोगों की आपसी कहासुनी सरकार की विकास योजनाओं में अधिकारियों ठेकेदारों की भागीदारी छोटे बड़े गैंगेस्टर गिरोह इन सबमें दखलंदाजी देते हैं और अपनी रंगदारी लेवी हफ्ता वसूलते हैं। देश में आतंकवाद के साथ संगठित अपराधी गिरोहों से भी सरकार को मुकाबला करना होगा और इसके लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना बनाना होगा। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने इस दिशा में पहल की है और संगठित अपराध को नियंत्रित किया जा सका है। अपराध समाज में खौफ कायम करता है और इससे महिलाएँ और बच्चे खासकर प्रभावित होते हैं। आर्थिक गतिविधियों में संलग्न कारोबारी वर्ग के लोगों पर भी इसका काफी नकारात्मक प्रभाव कायम होता है और यह समाज में नैतिक मान मूल्यों को भी खत्म कर देता है। अपराधियों का खौफ समाज में लोगों में हर तरह के आत्मविश्वास को खत्म कर देता है और बर्बर हिंसा की जघन्य वारदातें समाज में उजागर होती हैं। संगठित अपराध में संलग्न गैंगेस्टर विदेश भी भाग जाते हैं और वे फर्जी पासपोर्ट भी बनवा लेते हैं। सारा उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली – नोएडा – फरीदाबाद और गाजियाबाद अपराधियों की चपेट में फँसा है। विकास दुबे का मारा जाना राहत की खबर है लेकिन गैंगस्टरों का आतंक देश में कब खत्म होगा?
Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।
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