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जस्टिस मुरलीधर का तबादला और 35 से अधिक की मौत से सिसकती दिल्ली में उठते सवाल?

देश की राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक मरने वालों का आंकड़ा 35 हो चुका है। कुछ लोग अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं। दिल्ली पुलिस मौजपुर, भजनपुरा, जाफराबाद, गोकुलपुरी, चांद बाग में हुई हिंसा को रोकने में पूरी तरह से असफल रही। घटना 24 और 25 फरवरी को सीएए के पक्ष और विरोधियों के बीच पत्थरबाजी और आगजनी की है। 27 फरवरी को स्थिति काबू में आ सकी लेकिन शहर में अभी भी अशांति का माहौल बना हुआ है। इन दंगों के पीछे भड़काऊ भाषणों और पुलिस की ओर से की गई लापरवाही को माना गया क्योंकि इससे पहले हुई घटनाओं पर भी पुलिस का रवैया ठीक नही था। जेएनयू, जामिया और शाहीन बाग में गुंडे आए और गोली चलाकर चले गये और पुलिस देखती रही। उसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी के नेता कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा ने इसी तरह के भड़काऊ बयान दिये लेकिन उसके बावजूद पुलिस कोई एक्शन नहीं लेती है।

जस्टिस एस मुरलीधर का रातों रात हुआ तबादला

26 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस कमिश्नर से कहा था कि कोर्ट चाहती है कि ऐसे भड़काऊ भाषण देने वाले सभी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जिससे कि दिल्ली के माहौल को सुधारा जा सके।

जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा को लेकर अपनी सुनवाई में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हम ये नहीं होने दे सकते कि दिल्ली को 1984 के सिख दंगों जैसा हाल एक बार फिर देखना पड़े।

जस्टिस मुरलीधर ने ही वकील सुरूर अहमद की याचिका पर बुधवार को रात 12:30 बजे दिल्ली पुलिस को हिंसाग्रस्त इलाकों में फंसे हुए मरीज़ों को पूरी सुरक्षा के साथ बड़े अस्पताल पहुंचाने का आदेश दिया था।

26 फरवरी को कोर्ट में सुनवाई के दौरान अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण वाले वीडियो भी कोर्ट में दिखाए गए थे। इस मामले की सुनवाई जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह ने की। दिल्ली में हुई हिंसा पर दिल्ली पुलिस की बीजेपी नेताओं पर भड़काऊं भाषण देने पर तत्परता न दिखाने के लिए आड़े हाथों लेने वाले जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में कर दिया गया है। इसको लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा पर एफआईआर दर्ज करने पर इनका तबादला किया जा रहा है?

हालांकि दिल्ली हिंसा मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई मुरलीधर नहीं कर पाएंगे और अगली सुनवाई 13 अप्रैल को होगी। अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार को पार्टी बनाते हुए शपथपत्र दायर करने के लिए कहा है।

जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले पर उठ रहे हैं सवाल

कांग्रेस इस मसले पर हमलावर है और अब कई कांग्रेसी नेता इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ‘ऐसा लगाता है कि न्याय करने वालों को देश में बख्शा नहीं जाएगा’ उन्होंने आगे कहा कि ‘पूरा देश अचंभित है, लेकिन मोदी शाह सरकार की दुर्भावना, कुत्सित सोच व निरंकुशता किसी से छिपी नहीं, जिसके चलते वो उन लोगों को बचाने का हर संभव प्रयास करेंगे, जिन्होंने भड़काऊ भाषण दे नफरत के बीज बोए और हिंसा फैलाई’।

राहुल गांधी को याद आए जस्टिस लोया

राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर कहा कि ‘बहादुर जज लोया को नमन, जिनका ट्रांसफर नहीं किया गया था’।

जज बीएच लोया गुजरात के सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ की जाँच कर रहे थे। दिसंबर, 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी। मौत के समय वे नागपुर में एक सहयोगी की बेटी की शादी में शामिल होने आए थे। इसके बाद 2017 में एक पत्रिका में एक रिपोर्ट छपी जिसमें कहा गया कि जज लोया की मौत संदेहास्पद स्थिति में हुई थी। इसके बाद से उनकी मौत को लेकर सवाल उठने लगे।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल 2018 को अपना फ़ैसला देते हुए कहा कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी और अब इस मामले की और जांच नहीं होनी चाहिए।

सोनिया गांधी ने मांगा अमित शाह का इस्तीफा

इससे पहले बुधवार को सोनिया गांधी ने दिल्ली हिंसा पर प्रेस कांफ्रेस कर के गृहमंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगा।

कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने गुरुवार सुबह ट्वीट कर जज के ट्रांसफर की क्रोनोलॉजी समझाई। पहले कॉलेजियम ने ट्रांसफर का प्रस्ताव रखा। फिर कानून मंत्री ने प्रस्ताव पीएम को भेजा। पीएम ने प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भेजा। राष्ट्रपति ने प्रस्ताव मंजूर किया। आखिर में सचिव ने आदेश जारी कर दिया।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तबादले पर दी सफाई

जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले पर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सफाई दी है कि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में 12 फरवरी को ही उनके तबादले की सिफारिश कर दी गई थी। किसी भी जज के ट्रांसफर पर उनकी भी सहमति ली जाती है और इस प्रक्रिया का भी पालन किया गया है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण के करके कांग्रेस ने एक बार फिर न्यायपालिका के प्रति अपनी दुर्भावना को दिखाया है।

भारत की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है। इसके बाद अब वह सभी संस्थानों पर लगातार हमले कर उनको नष्ट करने की कोशिश कर रही है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जस्टिस लोया का केस की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जो इस पर सवाल उठाकर कुछ लोग न्यायपालिका का अपमान कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर व्यापक बहस हुई थी। क्या राहुल गांधी खुद को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझते हैं?

जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले का पहले किया गया था विरोध

जस्टिस मुरलीधर के तबादले को लेकर भी काफ़ी सवाल उठ रहे थे। 12 फरवरी को जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला करने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने किया था। वकीलों ने इसके विरोध में 20 फ़रवरी को प्रदर्शन भी किया। जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में किया जा रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने एक रेजोल्यूशन पास करके उनके तबादले का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के इस फ़ैसले पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी।

हरियाणा के मंत्री रंजीत चौटाला का अजीबो-गरीब बयान

दिल्ली हिंसा पर हरियाणा के मंत्री रंजीत चौटाला का हैरान करने वाला बयान आया है। उन्होंने कहा है कि ‘दंगे होते रहते हैं। पहले भी होते रहे हैं, ऐसा नहीं है। जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो पूरी दिल्ली जलती रही। ये तो पार्टी ऑफ लाइफ है, जो होते रहते हैं। रंजीत चौटाला रानिया सीट से विधायक हैं। अब आप सोचिए कि ऐसे मंत्री  जिनके लिए दंगे आम बात है। उनसे क्या ही उम्मीद की जा सकती है।

बच्चों की परीक्षाएं हुईं रद

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में फैली हिंसा के कारण बच्चों की परिक्षाएं रद करनी पड़ी। दंगों में एक दुसरे का घर जलाया गया, दुकानें लूटकर उनको आग के हवाले कर दिया गया। छात्रों का भविष्य दाव पर लग गया। दिल्ली समेत देशभर में इस समय सीबीएसई बोर्ड की परीक्षाएं जारी है। लेकिन हिंसा के कारण बोर्ड ने हिंसाग्रस्त इलाक़ों में होने वाली दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है। दिल्ली सरकार ने भी इन इलाक़ों में सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया। कुछ लोग अभी भी इन दंगों में मरने वालों को धर्म की आड़ में देख रहे हैं। दंगों में मरने वालों की संख्या 35 हो चुकी है और 200 से अधिक लोग घायल है।

गृह मंत्री अमित शाह पर उठे सवाल

26 फरवरी को अजित डोभाल सीलमपुर, जाफराबाद, मौजपुर और गोकुलपुरी चौक गए थे। वहां पर हुई हिंसा का जायजा लेने पहुंचे थे। अजित डोभाल पाँचवे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। अजित डोभाल ने लोगों से मिलकर उनकी रक्षा को लेकर आश्वस्त किया और कहा कि किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है। डोभाल ने कहा, ”मेरा संदेश सभी के लिए है। यहां कोई दुश्मन नहीं है जो अपने देश से प्यार करते हैं, समाज से प्रेम करते हैं, पड़ोसी का भला चाहते हैं उन सभी को प्रेम से रहना चाहिए।  यहां सभी एकता के साथ रहते हैं और कोई किसी का दुश्मन नहीं है। कुछ असामाजिक तत्व हैं और हम उनके साथ सख़्ती से निपटेंगे। पुलिस अपना काम करेगी। इंशाअल्लाह यहां अमन होगा।”

ऐसे में क्या प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रवैये को लेकर सवाल खड़े नहीं होने चाहिए? लोग जानना चाहते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह स्थिति का जायजा लेने खुद क्यों नहीं गये? लोग सोशल मीडिया पुलिस से सवाल कर रहे हैं कि क्यों पुलिस उपद्रवियों को रोकने में नाकाम रही। क्या यह भी एक साजिश के तहत तो नहीं किया गया?

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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