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क्या महामारी केवल मजदूरों के लिए आई है?

मेहनत करके दो वक़्त की रोटी खाने वाला मजदूर आज कोरोना महामारी के कारण दर-दर भटकने को मजबूर है, लेकिन वह भटकने के बाद भी घर पहंचने से पहले ही दुनिया छोड़ दे रहा है। कभी प्रवासी मजदूर चलते-चलते भूख से दम तोड़ रहे हैं को कहीं पुलिस के डंडे से दम तोड़ रहे हैं। इतना ही नहीं बस, ट्रक, टेम्पो औऱ अब मालगाड़ी की दुर्घटनाओं ने यह बता दिया कि अंत में मौत इन्हीं गरीबों की ही होगी। विदेश से लोग सही सलामत हवाई मार्ग से लोग पहंच जाएंगे मगर ये कभी वाहनों की दुर्घटना के शिकार होंगे तो कभी कंपनी में गैस लीक से भी इन्हीं की मौत होगी।

देखें, वीडियो

हम बात कर रहे उस घटना की जिसके बारे में हम सभी दुखी हैं। मालूम हो कि कोरोना की वजह से देशभर में लॉकडाउन है, मजदूरों के पास पैदल घर पहुँचने के सिवा कोई ओर चारा नहीं है। सरकारों की तरफ से ट्रेन चलाने की बात की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद मजदूर भूखे प्यासे अपने बच्चों और पत्नी के साथ हज़ारों किलोमीटर पैदल ही घर पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में कुछ तो घर पहुँचने से पहले ही जान गंवा रहे हैं। घटना शुक्रवार तड़के की है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी के चपेट में आने से 16 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई है। हादसा परभनी-मनमाड़ सेक्शन के बदनापुर और करमाड़ रेलवे स्टेशन के बीच हुआ। बताया जा रहा है कि मजदूर रेल की पटरियों के किनारे चल रहे थे और थकान के कारण पटरियों पर ही सो गए थे। जालना से आ रही मालगाड़ी पटरियों पर सो रहे इन मजदूरों पर चढ़ गई। हादसे के कारणों की स्वतंत्र जांच कराने की बात दक्षिण-मध्य रेलवे ने कही है। यह जांच दक्षिण मध्य रेलवे के रेलवे सेफ्टी कमिश्नर राम कृपाल की अध्यक्षता में की जाएगी।  इसके बाद ही कहा जा सकता है कि असल में क्या हुआ?

दुर्घटना घट गई, मौत भी हो गई। परिवार में मातम भी मन रहा है। इधर सोशल मीडिया पर लोग सरकार की गलती बता रहे हैं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मजदूरों की गलती बता रहे हैं। हों भी क्यों आखिर हर चीज में गरीब, असहाय और पैदल चलता मजदूर दोषी न हो तब तक कैसे एक वर्ग की उच्चकोटि की मानसिकता का उजागर हो। एक पत्रकार हैं अजीत भारती। इन पर फेक न्यूज फैलाने और एक खास समुदाय की भावनाओं को आहत करने का आरोप लगता आया है। इनका नाम है अजित भारती। इनको पत्रकार धर्म के अनुसार एक बार सरकार से तो सवाल पूछना ही चाहिए था। लेकिन इन्होंने अपने फैसले में इस हादसों को लेकर अपना फैसला सरकार के पक्ष में सुनाया और इतना ही नहीं उन भूखे-गरीब मजदूरों की गलती भी बता दी।

पहले जानते हैं, अजीत भारती ने क्या लिखा है-

अजीत ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट लिखा कि “15 मजदूर लॉकडाउन में महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश जा रहे थे, और जाने के लिए रेलवे ट्रैक पर चलना चुना था। रात में थक गए तो ट्रैक पर ही सो गए। सुबह मालगाड़ी आई और सारे कट गए।

इस खबर पर संवेदना व्यक्त करूँ या उनकी मूर्खता पर रोऊँ, ये समझ में नहीं आ रहा। कोई क्या सोच कर रेलवे ट्रैक पर सोया होगा? कोई क्या सोच कर महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश के लिए पैदल निकला होगा जब सरकार ने मना कर रखा है?

इक्का दुक्का जगहों को छोड़ दें तो किसी के भूखे होने की खबर तो अभी तक नहीं है कि वो भूख से मर गया। सरकार और अन्य संस्थाओं ने भोजन का जिम्मा ले रखा है। आपने समूह में यह तय कर लिया कि रेलवे ट्रैक से चलते-चलते पहुँच जाएँगे और उसी पर सो गए!

उस ड्राइवर की मनोदशा समझिए जिसकी इसमें कोई गलती नहीं है लेकिन उसकी स्मृति से यह दुर्घटना कभी बाहर नहीं जा पाएगी।”। ये बाते अजित ने शेयर की हैं।

अजीत भारती मजदूरों को मूर्ख बता रहे हैं। क्या जो रेलवे ट्रैक पर सोया। ये सरकार की नाकामी नहीं है जो हर वर्ग तक सुविधाएं, खाना, पानी, राशन, दवा नहीं पहुँच पा रही। कितने बच्चों तक दूध पहुँच पा रहा है? कितने मजदूरों तक खाना पहुँच पा रहा है? ये खबर आपको सोशल मीडिया पर ही मिल जाएंगी। अगर आप किसी मजदूर का दर्द नहीं समझ पा रहे हैं तो किसी मजदूर को आप ये भी नही कह सकते कि वो मूर्ख है। सबसे बड़ी बात ये कि वो अपने घर नहीं पहुँच पा रहे। रेलवे ट्रैक पर अगर वे सोये भी हैं तो सोने का उनको कोई शौक नहीं है। खैर इन पत्रकार और संपादकों की इस मानसिकता का कभी-कभी उजागर होना आप लोगों के लिए सोचने और समझने की बात है कि आप इनसे पत्रकारिता में क्या उम्मीद कर सकते हैं। अब आप पर सवाल छोड़ दे रहे हैं।

अब आप एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की बात भी जान लें उन्होंने क्या कहा-

रवीश ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में लिखा है कि “मध्यप्रदेश के 16 मज़दूर मालगाड़ी से कट कर मरे 1 घायल

जालना से औरंगाबाद जा रहे 16 मज़दूर मालगाड़ी से कट कर मर गए। एक घायल है। ये लोग पटरियों पर चलते हुए औरंगाबाद जा रहे थे। 36 किमी पैदल चलने के बाद थक जाने के कारण पटरियों पर लेट गए और नींद लग गई। होश भी न रहा और उनके ऊपर से ट्रेन गुजर गई। सभी मज़दूर मध्यप्रदेश के हैं।

मज़दूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। वे पैदल चल रहे हैं। उनके पांवों में छाले पड़ गए हैं। बहुत से मजदूर रेल की पटरियों के किनारे किनारे चल रहे हैं ताकि घर तक पहुंचने का कोई सीधा रास्ता मिल जाए। मज़दूर न तो ट्विटर पर है। न फेसबुक पर और न न्यूज़ चैनलों पर है। वरना वो देखता कि उन्हें लेकर समाज कितना असंवेदनशील हो चुका है। सरकार तो खैर संवेदनशीलता की खान है।

लखनऊ से भी खबर है। जानकीपुरम में रहने वाला एक मज़दूर परिवार साइकिल से निकला था। छत्तीसगढ़ जा रहा था। शहर की सीमा पर किसी ने टक्कर मार दी। माता पिता की मौत हो गई। दो बच्चे हैं। अब उनका कोई नहीं है।”

मैं नहीं कहती कि आप हर समय सरकार पर सवाल ही उठाइये। यदि आप रविश का समर्थन अगर नहीं कर सकते तो इस पत्रकार ने कम से कम जो सत्ता से गरीबों के लिए सवाल पूछा उसका समर्थन तो कर ही सकते हैं।

एक और खबर आई है- उत्तर प्रदेश के झांसी की। इसमें महाराष्ट्र से यूपी जा रहे 24 मजदूर ट्रक में छिपकर आ रहे थे। झांसी के पास आज 8 मई को सुबह हादसा हो गया और 20 मजदूर घायल हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

इससे पहले 7 मई की सुबह यानी कल 2:30 बजे विशाखापट्टनम में स्टाइरीन गैस लीक हो गयी। जिसकी चपेट में वहाँ के करीब पांच गांव आ गए। गैस का ऐसा रिसाव हुआ कि प्लांट के आसपास के दायरे में हड़कंप मच गया। दम घुटने से लोगों में अफरातफरी मच गई। सड़कों पर लोग बेहोश होकर गिरने लगे। 13 लोगों की मौत हो गयी थी। 300 से ज्यादा लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।

बस इतना ही नहीं इसके बाद खबर आती है कि रायगढ़ के तेतला गांव में 6 मई को पेपर मिल में जहरीली गैस लीक होने से 7 मजदूरों की तबीयत बिगड़ गई थी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह महामारी भी गरीबों और अमीरों में फर्क कर रहा है। हर ओर गरीब, शोषित, वंचित, मजदूर वर्ग पर ही इस महामारी का सबसे खतरनाक प्रभाव दिखता है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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