कोरोना एक वायरस है या बैक्टीरिया है? या फिर भूत पिशाच? भारत में घुसते ही कोई स्वीकार नहीं करना चाहता था कि यह कोई रोग है। हिंदू महासभा कभी इसकी पूजा पाठ करके भोग लगाने की बात कर चुका है। यानी देवता का स्वरूप माना था। कोरोना को कभी थाली-ताली से बजाकर एक दिन में ही खत्म करने की बात भी हुई थी। कोरोना जैसे संक्रमण को रोकने के लिए तमाम उपाय सोशल मीडिया पर बताए जा रहे हैं। इसी से अंदाजा आप लगा सकते हैं कि कोरोना से खतरनाक तो इसको लेकर फैलाई जा रही अफवाहें रही हैं। खैर हम बात कर रहे हैं कुछ इसी तरह की बातों को जो आजकल सरकारों के उपायों में से एक हैं। जल शक्ति मंत्रालय ने गंगा को कितना साफ किया यह एक सवाल है लेकिन कोरोना को साफ करने के बारे में इसने जरूर सोचा।
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) आपने नाम सुना होगा। दरअसल इस संस्था ने फैसला किया है कि वह जलशक्ति मंत्रालय के उस प्रस्ताव के साथ आगे नहीं बढ़ेगा, जिसमें कोविड-19 के मरीजों के इलाज में गंगा जल के इस्तेमाल की बात कही गई है। आईसीएमआर का कहना है कि इसके लिए और वैज्ञानिक तथ्यों को जुटाने की जरूरत है।
पहले जान लेते हैं आईसीएमआर के बारे में। यह भारत की सबसे पुरानी और मेडिकल शोध संस्थान है। वर्ष 1911 में यह इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन के रूप में जन्म लिया था। आजादी के बाद 1949 में इसे आईसीएमआर नाम दिया गया। इस संस्था की फंडिग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च द्वारा होती है। स्वास्थ्य मंत्री ही इस काउंसिल के अध्यक्ष भी होते हैं। इस संस्था का विजन होता है कि शोध के जरिए देश के नागरिकों का स्वास्थ्य बेहतर किया जाए। आईसीएमआर के देशभर में 21 शोध संस्थान है। यहां पर कई प्रकार की बीमारियों पर रिसर्च होती है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आईसीएमआर की अहम भूमिका है। देश में टेस्टिंग लैब से जुड़ी अनुमति यही प्रदान करता है।
हम बात कर रहे हैं- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने जल शक्ति मंत्रालय के उस प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं देने का फ़ैसला किया है जिसमें कहा गया था कि कोविड रोगियों की चिकित्सा गंगा जल से करने के बारे में क्लीनिकल ट्रायल किया जाना चाहिए। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार परिषद ने कहा है कि इस बारे में अभी और वैज्ञानिक डेटा जुटाये जाने की आवश्यकता है। आईसीएमआर के डॉ. वीईके गुप्ता की मानें तो फिलहाल जो आंकड़े और तथ्य मौजूद हैं, वे इतने कारगर नहीं लगते जिससे कि क्लीनिकल स्टडी शुरू की जाए। वाईके गुप्ता आईसीएमआर में शोध प्रस्तावों का मूल्यांकन करने वाली कमेटी के अध्यक्ष हैं।
Indian Council for Medical Research decides not to go ahead with Jal Shakti Ministry’s proposal to undertake clinical studies for treatment of COVID-19 patients with Ganga water, saying it needs more scientific data
— Press Trust of India (@PTI_News) May 7, 2020
गंगा की स्वच्छता का जिम्मा लेने वाली संस्था स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) जलशक्ति मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। इस संस्था को कई अलग-अलग संगठनों से गंगा जल को लेकर प्रस्ताव मिले हैं। कुछ एनजीओ ने भी अपने प्रस्ताव बढ़ाए हैं। इसमें कहा गया है कि कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में गंगा जल के इस्तेमाल को लेकर क्लीनिकल टेस्ट किया जा सकता है। जलशक्ति मंत्रालय ने बाद में सभी प्रस्ताव आईसीएमआर को बढ़ा दिए थे। हालांकि आईसीएमआर ने फिलहाल इस प्रस्ताव को नकार दिया है।
उधर एनएमसीजी यानी स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन के अधिकारियों का कहना है कि गंगा जल के क्लीनिकल टेस्ट के प्रस्ताव पर नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) के वैज्ञानिकों के साथ चर्चा हुई थी। नीरी गंगा नदी पर पर पहले भी शोध कर चुका है।
नीरी की स्टडी के मुताबिक, गंगा जल में बड़ी मात्रा में बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं, जबकि कोविड बीमारी वायरस से फैलती है। इसलिए स्टडी में यह कहीं नहीं कहा गया है कि गंगा जल का असर वायरस के खिलाफ भी देखा गया है। एनएमसीजी के मिले एक प्रस्ताव में कहा गया था कि गंगा के पानी में नींजा वायरस पाया जाता है, उसे ही वैज्ञानिक बैक्टीरियोफेज कहते हैं।
गंगा मिशन के अधिकारियों के अनुसार, एक अन्य प्रस्ताव में दावा किया गया है कि शुद्ध गंगाजल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, इससे वायरस से लड़ने में मदद मिलेगी। विस्तृत जानकारी के साथ आए तीसरे प्रस्ताव में अनुरोध किया गया है कि गंगाजल के विषाणु-रोधी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुणो पर अध्ययन किया जाना चाहिए।
आईसीएमआर के एक अधिकारी के अनुसार, ‘कोरोना के लिए इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को ट्रायल पर ले रहे है तो गंगा में पाए जाने वाले बैक्टेरियोफाज नामक वायरस को लेकर एकदम से कैसे काम किया जा सकता है। अभी इसका कोई तर्क नहीं की गंगा नदी में पाया जाने वाला वायरस कोरोना बीमारी से लड़ सकेगा।’
देश में कोरोना संकट
देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण 89 लोगों की मौत हो जाने के बाद इस बीमारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,783 हो गई है। इस दौरान 3,561 संक्रमण के नए मामले सामने आने के साथ ही संक्रमित हुए लोगों की संख्या बढ़कर 52,952 हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि संक्रमण से 15,266 मरीज ठीक हो गए हैं और एक रोगी देश से बाहर जा चुका है। कोविड-19 से संक्रमित 35,902 मरीजों का इलाज चल रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, इस प्रकार, करीब 28.83 प्रतिशत मरीज अब तक ठीक हो चुके हैं। जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार, पूरे विश्व में अब तक कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 37 लाख 81हजार 896 हो चुकी है। मरने वालों की संख्या 2 लाख 64 हजार 437 के पार पहुंच चुकी है।
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