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क्या प्रवासी मजदूरों की त्रासदी वाली तस्वीरों से इंडिया टुडे कर रहा कमाई?

पत्रकारिता में सब कुछ बिक ही तो रहा है तो लगे हाथ मरते, नंगे, भूखे तस्वीरों को ही बेच लो। सच यही है कि इस देश में समाचार बिकता है। समाचार खरीदा जाता है। कंटेंट खरीदे जाते हैं। पेड न्यूज औऱ पीत पत्रकारिता कोई नई बात नहीं है। झूठी खबरे दिखाना और उसे सनसनी बनाकर बताने में नया कुछ नहीं है। सरकार के दबाव में बिक करके पत्रकारिता करने में भी नई बात नहीं है। अफवाहें फैलाना, चिल्लाना भी नई बात नहीं। टीवी पर गोदी मीडिया के स्वरूप को समझना भी लोगों के लिए नई बात नहीं। लेकिन नया तो कुछ तब होता है जब इस नैतिकता पर खड़े लोकतंत्र में दिखावा ही दिखावा दिखता है। चढ़ावा ही चढ़ावा दिखता है। पैसों के चक्कर में संवेदनशीलता का नाश होने लगता है। संवेदनहीनता की ढोल बजने लगती है। चारों ओर पैसे के लिए कुछ भी किया जाने लगता है। आप इन तस्वीरों को गौर से देखिये। पूरी तस्वीरें नहीं हैं। लेकिन इन्हीं प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें अब बेची जाने लगी हैं। यही है असली भारत की तस्वीर जो स्टूडियों से केवल बिकने के लिए लगा दी जाती है। इसका खौंफनाक, दर्दनाक, बेबसी और नंगेपन की तस्वीरें जनता के बीच नहीं जा पाती क्योंकि इन्हें बेचने से पैसा इधर मिलेगा और साथ ही उधर दिखाने से भारत विश्वगुरु कैसे बनेगा। पीएम मोदी की प्रशंसा कैसे होगी। कोरोना की जंग भारत कैसे जीतेगा। यही शायद सवाल हैं।

अगर नहीं तो सोशल मीडिय़ा पर पूछे जा रहे सवालों के जवाब कोई दे पाये तो दे कि आखिर क्या पत्रकारिता इसलिए ही होती है। इंडिया टुडे का नाम आपने सुना तो होगा। ये लोग ग़रीब मजदूरों की तस्वीरें बेच कर रुपये कमा रहे हैं।

मजदूरों के पलायन की ‘इंडिया टुडे’ की तस्वीरें जो बेची जा रही हैं वो मामूली रकम में नहीं ये तस्वीरें 8000 से लेकर 20000 तक रुपयों में बेची जा रही हैं।

चैनल पर जो लोग नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं और मार्केटिंग के लिए कुछ भी बोल देने से परहेज नहीं करते उन्हीं के इन संस्कारों को समझिये।

सुप्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कुछ स्क्रीनशॉट्स ट्वीट किए। इनमें दिख रहा है कि प्रवासी मजदूरों के पलायन वाली तस्वीरों को बेचा जा रहा है।

अवस्थी ने लिखा कि वो देश के कोने-कोने से अपने घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की हृदयविदारक तस्वीरों की बिक्री को देख कर हैरान हैं। उन्होंने लिखा, “इन बेचारे प्रवासी मजदूरों को तो पता तक नहीं होगा कि उनकी टूटी चप्पलों से लेकर उनके आँसू और फ़टे हुए बैग तक, सब बिक गए।” उन्होंने पूछा कि सभी को अपना घर चलाना होता है लेकिन क्या इन तस्वीरों से कमाई करना सही है?

विक्रेता के रूप में ‘इंडिया टुडे ग्रुप’ का नाम दर्ज है और इन तस्वीरों के दाम 8000 रुपये से लेकर 20,000 रुपये तक हैं। इसके अलावा इस पर 18% अतिरिक्त टैक्स भी है।

सोशल मीडिया पर इस वक्त ऐसे पोस्ट की भरमार हो गई जहां इंडिया टुडे की ओर तस्वीरों को बेचा जा रहा है। इसमें मजदूर की फ़ोटो के साथ उस फ़ोटो को कैसे खरीदना है वो भी बताया गया है। इसमें फ़ोटो की साइज के हिसाब से फ़ोटो के दाम बताए गए हैं। इस फ़ोटो में सेलर यानी फ़ोटो बेचने वाले कॉलम में इंडिया टुडे ग्रुप लिखा हुआ है।

एक व्यक्ति ने लिखा कि आजतक ने एनडीटीवी को भी पीछे छोड़ दिया है। इंडिया टुडे ग्रुप का आजतक बहुत दर्द में है मजदूरो को देखकर इसलिये इनके पत्रकार मजदूरों की मार्मिक तस्वीरे लेकर अपने आका अरुण पुरी को भेजते हैं

@aajtak पर फ़ोटो चलने के बाद इनके मालिक उन तस्वीरो को आनलाइन 8 हजार से 20 हजार रु में दूसरों को बेचते हैं।

दरअसल इंडिया कंटेंट नाम की एक वेबसाइट है जो फ़ोटो, लेख, आॉडियो, वीडियो बेचने का ही काम करती है। उस वेबसाइट पर तमाम हस्तियों से लेकर प्रकृति की फ़ोटो है और उन सभी फ़ोटो पर फ़ोटोग्राफ़र का कॉपीराइट है। कभी कभी अपनी जान जोखिम में डाल कर भी वो ऐसी तस्वीरे खींचते हैं जो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है। हर कोई उससे फ़ोटो का इस्तेमाल अपने पोस्ट लिखने में करता नज़र आता है। लेकिन ये शायद जानने की कोशिश नहीं की जाती कि ये फ़ोटो क्लिक किस व्यक्ति ने की होगी। एक एक तस्वीर बहुत कुछ कहती नज़र आती है। वो तस्वीरें ही समाज का आइना बन जाती हैं।

लेकिन,आज के समय में फोटोग्राफर अपने फायदे के लिए भी ऐसा करते हैं। एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी जिसमें एक बच्ची सड़क से गेंहू बटोरती नज़र आ रही है। जब उस फ़ोटो के बारे में जांच पड़ताल की गयी तो उस बच्ची की मां ने बताया कि फोटोग्राफर ने उन्हें सड़क पर गेहूं गिराने और फिर उससे बटोरने के लिए कहा था। असल में उस फ़ोटो के पीछे की कहानी कुछ और ही निकली।

अब सोचिये क्या इन तस्वीरों को बेचना जायज है अगर आप बेच ही रहे हैं तो बेचिये लेकिन नैतिकता का झूठा दावा तो न करें। उन गरीब लोगों की तस्वीरों को बेचने का क्या यह उपयुक्त समय है या उनकी मदद करने का?

राहुल कंवल, स्वेता सिंह, अंजना ओम कश्यप, राजदीप सरदेसाई सभी को देखिये कि लोग इनकी प्रशंसा क्यों करते हैं? क्यों आज तक को गोदी मीडिया बोल देते हैं लोग?

इसी तरह पत्रकारिता के दूसरे खेमे जिसमें अफवाहों का बाजार गर्म होता है। एंकर चिल्लाता है उसमें लोग क्यों अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया औऱ अमिश देवगन को रखते हैं।

मजदूरों की बिकती तस्वीरों को देखें तो ये कौन साबित होते हैं?  क्य़ा इसमें मजदूरों के प्रति हमदर्दी दिखती है। मौतों को बेचना कहां तक जायज है? और हम तो कहते हैं एक तरीके से इसमें इंसानियत और इंसान दोनों की कीमत लगाई जा रही है। जिसमें ज्यादा दर्द होगा वो तस्वीर ज्यादा अच्छी होगी क्योंकि उस तस्वीर की कीमत ज्यादा होगी। आखिर यही है 21 वीं शताब्दी की बातें और विकसित देश का मॉडल। उदारीकरण की तस्वीर औऱ वैश्वीकरण, पूंजीवाद का पैमाना।

देश में प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें जहां लोगों को विचलित कर रही हैं उनमें क्या है- रोते बिलखते चेहरे, पैरों में छाले, भूखे- प्यासे चलते मजदूरों की त्रासदी ही तो हैं जिन्हें लोग सोशल मीडिया पर देख रहे हैं।  क्या उन रोती बिलखती तस्वीरों का व्यापार भी हो सकता है?

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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