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कोविड-19 के मामले बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन चर्चा कम होती जा रही है क्यों?

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के आंकड़े

कोविड का दौर और मजदूर अपने काम में, किसान अपने काम में, ड्राइवर, चिकित्सक, पत्रकार सब अपने अपने कामों में मशगूल हैं।

लेकिन इनमें से एक वो है जो काफी एहतियात बरत रहा है यहां तक कि वो सब नजारा घर से देख रहा है। वो देख रहा है कि कैसे काम कर रहे हैं। क्योंकि उसके पास अमीरी के सारे इंतजाम पहले से ही हैं। उन्होंने पहले की तरह अपने घरों में ताला लगा लिया है। इन घरों में युवा भी इसकी आड़ में लॉकडाउन की परंपरा का पालन करते हुए मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो गए हैं।

महामारी कम्युनिटी में फैली जा रही है लेकिन किसी को अभी इसे महामारी होने में भी शक है क्योंकि उन तक इसकी लपट नहीं पहुंची है। और पहुंची भी है तो संख्या रटते रटते लोग इसके आदी हो चुके हैं।

आपको बता दें कि भारत में 440215 ये है कोरोना से संक्रमित अब तक कुल लोगों की संख्या और मारे जाने वालों का आंकड़ा 14011 पहुंच चुका है।

टीवी स्क्रीन ने जैसा चाहा आपको बनाया, शुरू शुरू में जब भारत लॉकडाउन लगाया था तो पीएम की एक बात पर तहलका मचा था क्योंकि उन्होंने कहा था कि आगे स्थिति गंभीर होने जा रही है। क्योंकि बड़े बड़े मीडिया के पत्रकारों ने आग लगा दिया था कि “अभी अभी यहां लॉकडाउन का उल्लंघन हुआ है/पुलिस प्रशासन टाइट है/कोरोना मरकज से आया है/ इन्हें खतरा नहीं पता, आपको बता दें घर रहे घर से निकलें न कोई ट्रेन नहीं चलेगी आदि आदि” लेकिन हुआ क्या अब सब शांत हो गए हैं।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक समय आ गया लोग देख देख कर बोर होने लगे।सुन सुन कर अनसुना कर दिए। इसलिए रामायण से होते हुए चीन और पाकिस्तान का नया धारावाहिक चालू हो चुका है। और साथ ही सबसे ज्यादा अहम केवल सुशांत की मौत और टीवी एक्टर का जाना हो गया है। सभी का गुस्सा पेटिशन साइन करने में जा रहा है। और कहानियां सुशांत की चला चला कर खूब बवाल मचाया जा रहा है इतना बवाल कि इन्हीं टीवी पत्रकारों की वजह से ही इस आत्महत्या से लोग प्रेरणा लेकर नए आत्महत्या की ओर जाने लगे। तमाम खबरें आईं कि लोगों ने सुशांत की सहानुभूति में खुद को न्यौछावर कर दिया।

अब मीडिया में चीन की बात चल रही होती है तो देश की बात नहीं की जाती पीएम की बात नहीं की जाती लेकिन बीजेपी और मोदी की बात जरूर की जाती है उनका जरूर पक्ष रखा जाता है। 65 -67 को लेकर कांग्रेस को विलेन जरूर बनाया जाता है। कुल मिलाकर आपके मन को बदलने का काम यही बड़े मीडिया के पत्रकार ही कर रहे हैं।

अब बात करते हैं कोरोना और छोटे पत्रकारों की। असल मे बड़ा छोटा बताने का नजरिया मेरा सिर्फ इतना है कि जैसा लोग समझते हैं होता दरअसल इसके उलट है।
आप को क्या कुछ पता है किसी मीडिया ने कोरोना में हो रही मौतों को लेकर संवेदनशीलता दिखाई हो। नहीं, क्योंकि आंकड़े अब दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं और हम आदी हो चुके हैं। पीएम ने स्टे होम कहा तो पत्रकारों ने और क़ई पीएम केयर वाले संगठनों ने और पीआर में लगे भक्तों ने तख्ती लेकर स्टे होम, सेफ का नारा ऐसे दिया कि जैसे इन्होंने जग जीतने का प्रण कर लिया हो। छोटे कहे जाने वाले पत्रकारों के खिलाफ आलोचनाओं पर केंद्रित होने से तमाम एफआईआर होने लग गए। आप यूपी में जाकर या वहां के बारे में नजर दौड़ाकर इसे अच्छे तरीके से देख सकते हैं। तमाम पत्रकारों को इसके लिए लक्ष्य बनाया गया क्योंकि उन्होंने खामियों को दिखाया उन्होंने देश में बेरोजगारी और हिंसक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार चीजों की पोल खोलने की कोशिश की। इन्होंने सीधे सीधे संवेदनशील चीजों को बयां करने की कोशिश की। बस इन्होंने बड़े पत्रकारों जैसे स्टूडियो में बैठकर केवल बड़े बड़े लोगों का साक्षत्कार नहीं लिया, इन्होंने केवल हर चीज को कांग्रेस और बीजेपी के नजरिये से नहीं देखा, इन्होंने कभी केवल धार्मिक उन्माद के नजरिये से कोई रिपोर्ट नहीं की।

यह और भी दुखद है अभी तक आपने किसी कोरोना पेसेंट के मर जाने के बाद उसके परिवार और उसकी स्थिति और रिपोर्टिंग नहीं सुनी होगी। आपने अभी तक सरकार के इंतजामों पर सवाल पूछने वाली रिपोर्टिंग कम ही देखी होगी क्योंकि वहां सब रिपोर्टिंग से बाहर क़ई बातें हैं। वहां पारदर्शिता है ही नहीं। वहां ऐसी कोई बात नहीं है। हाँ टीआरपी के लिए आपने 2-4 बार हल्ला जरूर सुना होगा वो भी किसी लक्षित प्रदेश सरकार को टारजेट करने के लिए।
कुलमिलाकर मौतों का सिलसिला अब बढ़ रहा है आप खुद संभालिये अपने आपको। मोमोज, पिजा नहीं खाएंगे और पार्टी नहीं अटेंड करेंगे तो कुछ हो नहीं जाएगा।
हाँ चुनाव में वोट डालने आप नहीं कोई और विधायक ही पीपीई किट में सुरक्षित मतदान स्थल पहुंच सकता है। राजनीति के लिए आभासी दुनिया मे कार्यक्रम कोई नेता ही करा सकता है। आप बस बांस की ओट में उस स्क्रीन पर रंगों के बदलने का मजा लेंगे। आपके इस तरीके से मजा लेते हुए देखने की फ़ोटो वायरल होगी लोग देखेंगे और प्रभावित भी होंगे लेकिन उस फ़ोटो में बैठा किसान मजदूर अपना काम ही करेगा और उसे कोरोना से क्या मतलब आएगा तो खुद को जस तस संभालेगा ही।

एक बात और कि अगर कुछ कानून भी यहां साथ देती है तो आपका नहीं उनका ही देगी जो इसके काबिल हैं उनके लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये न्यायालय में सुनवाई हो जाएगी, उनके लिए पुलिस रात दिन एक कार देगी। लेकिन आपके साथ अगर कुछ होता है तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा। अगर आप वैसे नहीं मरे तो सिस्टम आपको मार देगा।

नोट- इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। यह पोस्ट प्रभात के एफबी पोस्ट से ली गई है। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Forum4 उत्तरदायी नहीं है। आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार Forum4 के नहीं हैं, किसी भी प्रकार से Forum4 उत्तरदायी नहीं है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रभात
लेखक FORUM4 के संपादक हैं।

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