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कब तक न्यायालय में पीड़ितों के रूह नोचे जाएंगे

फिर एक सवाल उठा है दिल के किसी कोने में

फिर आंखों से आंसू छलका है चुपके-चुपके रोने में

 

कब तक भरी सभा मे पांचाली के केश दबोचे जाएंगे

कब तक न्यायालय में पीड़ितों के रूह नोचे जाएंगे

 

कब तक न्यायालय में मिलेगा तारीखों का समाधान नहीं

कब तक दोषी को त्वरित सजा का होगा प्रावधान नहीं

 

कब तक सत्ता के कालिया नाग लोगों को डसते जाएंगे

कब तक दुर्योधन, दुशासन पांचाली पे हँसते जाएंगे

 

कब तक हम मोमबत्ती पकड़ इंसाफ के नारे लगाएंगे

कब तक हम चीख-चीख अपनो की पीड़ा गाएंगे

 

ईश्वर से इतनी ही प्रार्थना है-

हे वंशीधर अबकी बार जब भी धरती पर आना तुम

हो बाँसुरी भले न साथ, चक्र दस साथ ले आना तुम

 

पांचाली को वस्त्र नहीं शक्ति देना उठ लड़ने की

किसी दुर्योधन की हिम्मत नहीं पगभर आगे बढ़ने की

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

पूजा वर्मा
कविताएं लिखने का शौक है, कई काव्य संग्रह किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। समसामयिक विषयों पर लेख भी लिखती हैं।

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