दमन, शोषण और हिंसा के समर्थक इतने नीच कैसे हो सकते हैं? आंखों पर पर्दा डालकर अमानवीय हरकत कैसे कर सकते हैं? उपद्रव का सहारा लेकर किसी शांतिपूर्ण आंदोलन में विघ्न कैसे डाल सकते हैं? ठीक वैसे जैसे राक्षस हमेशा किसी ऋषि मुनि की तपस्या बाधित करने के लिए अपने असुरी माया से विघ्न डालना शुरू कर देते थे।
समय करीब 6 बजे 2 व्हीलर से गाजीपुर रवाना हुआ। रिपोर्टिंग से ज्यादा ठंड में यह सोचकर जाना खुद को अच्छा लगा कि जिस मानवीय और शांतिपूर्ण का समर्थक रहकर उसकी हर विशेषता को आगे रखने की कोशिश में पिछले 2 माह से लगातार फील्ड से रिपोर्टिंग कर रहा हूँ उसी आंदोलन को हथियार और बल प्रयोग के द्वारा सत्ता की ताकत कुचलना चाह रही है। बहुत ही संवेदनशील स्थिति में बिना किसी तैयारी के गाजीपुर बॉर्डर के लिए कमला नगर, दिल्ली से निकलना था। याद नहीं या देखा नहीं कि कितनी दूरी पर गाजीपुर बॉर्डर है लेकिन उस 2 व्हीलर वाहन से पहली बार शाम 7 बजे निकलना हुआ। खबर आ चुकी थी कि लाठीचार्ज और गोली दोनों निहत्थे किसानों पर कभी भी चल सकती है।
करीब 2 घण्टे में जाम से निकलते हुए, आनंद विहार किसी तरह पहुंच गया। रास्ते में जिस जिस से गाजीपुर का रास्ता पूछता गया उसने बिना जाने समझे बस यह आंसर दिया कि आप वहां न जाएं, हाथ जोड़ कर गुजारिश है, माहौल सही नहीं है। यहां तक कि लोगों ने हंस कर यह भी कहा कि लाठी खाने जाना है भ्याई को।
खैर यह उनकी समझ थी। मैं हंस पड़ा मन ही मन और बस रास्ता पूछता गया। हर तरफ से रास्ता बंद होने की वजह से करीब 5 मिनट में एक राउंड स्कूटी का पहिया घूमता किसी तरह यह लगने लगा कि अब मैं प्रदर्शन स्थल के काफी करीब हूँ। पहली बैरकेडिंग के पास दिल्ली पुलिस ने मुझे रोका मैं रुका हल्का इशारा किया और फिर उसने मुझे साइड से रास्ता पाने को कहा। करीब 2 बैरिकेडिंग इसी तरह क्रॉस करके जब आनंद विहार गोल चक्कर पहुंचा तो माहौल एकदम शांति पूर्ण और तनावग्रस्त दिखा। शायद माहौल को देखकर बस मैंने उसे गाजीपुर बॉर्डर न समझकर भारत और पाकिस्तान का वह बॉर्डर समझा जिस पर गोलियां चलती हैं और हमारा सैनिक शहीद होता है। आज स्थिति उलट थी यहां हमारा सैनिक किसानों पर गोलियां चलाता और किसान शहीद होता ठीक वैसे जैसे हुआ करता है। आंतरिक बॉर्डर देखना और समझना इसी कल्पना के साथ ही तो पड़ेगा क्योंकि बाहरी बॉर्डर तो हमने इतने ध्यान से देखे ही नहीं। खैर गोल चक्कर के पास मेरी स्कूटी को लाठी से दूर करते हुए देखा गया और एक फोर्स की बस को अंदर प्रवेश करने के लिए रास्ता दिया गया। मैं पुनः बैरिकेडिंग के पास आकर अपना रास्ता मांगने लगा। फिर प्रोफेसन की वजह से मुझे रास्ता मिल गया लेकिन स्कूटी को वहीं साइड करने को कहा गया। मैं पैदल ही निकलने लगा कहा गया एक किलोमीटर बाद वह दृश्य होगा जहां पर आपको जाना है।
ऐसा लगा कि मैं अद्भुत प्राणी हूँ कि मुझे एंट्री मिल गई। लेकिन तुरंत ही मेरा यह भ्रम टूट गया। एक शख्स ने मुझसे बात करने की कोशिश की। मेरे साथ वह भी कदम बढ़ा रहा था। मुझे ईर्ष्या हुई कि जहां पर जिस बैरिकेडिंग के अंदर परिंदा भी पर नहीं मार सकता वहां इस व्यक्ति की एंट्री कैसे हुई। मैं अपने बोलने और देखने के अस्त्र शस्त्र के साथ था लिहाजा वह मेरे करीब आने की कोशिश करने लगा। मैंने अपने माइक आईडी को छुपाने की कोशिश की और यह जानने का प्रयास किया कि कौन हैं आप।
पता लगा कि वह समर्थन करने नहीं आया है। मैंने कहा किसलिए आप जा रहे हैं? उसने कहा कि मुझे और तमाम लोगों को वहां स्थल पर पहुंचने को कहा गया है जहां पर हम खुद उन किसानों/ आतंकवादियों (उनके शब्दों में) को लठ्ठ बजायेंगे। मैं अंदर ही अंदर खुद को यह बचाने में लग गया कि मैं किसी भी हिंसा का समर्थन जब नहीं करता तो ऊपर से उसके हाँ में हाँ कैसे मिलाऊँ। लेकिन मुझे तो पूछने की आदत है मैंने कहा क्या प्रोग्राम है। उसने कहा, कुछ नहीं बस आज भर देखना है वरना शनिवार तक तो हम इन्हें दौड़ा दौड़ा कर सही कर देंगे। हमारे नेता पहुंचे हुए हैं। और हम भी पहुंच रहे हैं। आपका इंटरव्यू करा देंगे। मैंने कहा, भाई साहब सॉरी मुझे तो ऊपर से आर्डर मिलता है जिसका इंटरव्यू करने का उसी का करते हैं। इन सब बातों के साथ ही साथ मुझे यह समझ आ गया था कि वह मेरा सहारा लेकर आगे प्रदर्शन स्थल तक काफी करीब पहुंच जाएगा। उसने इशारा भी किया कि आपके साथ मैं चल लूंगा अंदर तक। फोर्स और सभी चीजों को धता बताते हुए। खैर
आगे करीब 2 किलोमीटर की दूरी के बाद प्रदर्शन स्थल के पहले से ही केवल खाली बसें दिल्ली पुलिस की लगाई गई थीं। मैंने सोचा कि अच्छा है कम से कम उन्हें अगर बैठाने और भेजने का प्लान है। लेकिन सामने फोर्स और बैरिकेडिंग देखकर मैं ज्यादा कुछ समझने पर मजबूर हुआ। जिस तरह से अस्त्र शस्त्र के साथ समर्थक और पुलिस के बीच उनकी घुसपैठ हुई थी वह जाकर पुष्टि मंच के करीब होनी ही थी और हुई भी थी। जब मंच के करीब था जहां पर किसान बैठे थे तो मुझसे पूछा गया कि जो शख्स आपके साथ आ रहा है वह आपके साथ है। मुझे मौका मिला और अच्छा भी लगा कि उसने पूछा और उसे मैंने जवाब दिया। नहीं। इस जवाब के साथ उस शख्स से पुछताछ होने लगी थी और मैं आगे बढ़ चुका था। आपको भी समझ आ गया होगा कि आतंकी की घुसपैठ हर जगह कैसे होती है जबकि आम आदमी को तमाम बैरिकेडिंग से होकर गुजरना पड़ता है।
मैं प्रदर्शन स्थल फ्लाईओवर के नीचे पहुंचा जहां अक्सर मुझे रिपोर्टिंग करने का मौका मिलता था। आज कुछ एकाध लोग दिख रहे थे लेकिन उससे ज्यादा उन न्यूज एंकरों और रिपोर्टरों देख रहा था जिन्हें कभी मैंने वहां नहीं देखा था। अक्सर इन्हें गोदी मीडिया कह दिया जाता था। सजी धजी लड़कियां खिल्ली उड़ाने में मस्त थी और मुझे चारो तरफ सन्नाटा ही दिख रहा था मुझे मंच के करीब जाकर सब कुछ देखने की चिंता हो रही थी कि आखिर क्या गाजीपुर बॉर्डर का माहौल है।
बेशक माहौल कुछ भी हो लेकिन जब मैंने अपने एक गुरु को देखा कि वो माइक थामकर खड़े हैं तो मैं उनको अपना चेहरा दिखाकर प्रणाम करने की कोशिश करने लगा लेकिन उन्होंने बहुत जल्दी में वहां से हटने का निमंत्रण दिया जिससे मुझे अंदाजा लगा कि स्थिति वास्तव में कुछ अलग ही है।
अब मैं उन किसानों को देख रहा था। जिन किसानों को मैं प्रतिदिन मिलता था । अजीब ही हाव भाव था। उनकी जान हथेली पर थी। तलवार लटक रही थी। कब आर्डर होता और वे इसके गवाह बन जाते। सब कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा था। आगे चलता गया आज वे बात करने से मना कर रहे थे। किसी का गला बैठा था तो कोई चालीसा पढ़ रहा था। कोई ऊपर देख रहा था तो कोई हाथ जोड़कर सतनाम वाहे गुरु कर रहा था। मैं चारों ओर के नजारों को देख रहा था। पुलिस फोर्स सबकुछ जैसे महाभारत की लड़ाई शुरू होने वाली हो।
ठीक इसी समय मैं करीब 10 -11 बजे तक सब ऐसा ही देख रहा था लेकिन थोड़ी देर बाद ही लोगों से प्रतिक्रिया मिलने लगी और लोग धीरे धीरे सामान्य हो रहे थे उन्हें लग रहा था कि अब कुछ अच्छा हो रहा है। लोग कह रहे थे कि अभी लोग चल पड़े हैं गांव से। और धीरे धीरे रिपोर्टिंग लाइव में तब्दील हो गयी। देखते ही देखते मेरे कैमरे पर हजारों लोग लाइव जुड़ गए और वे सीधे ही गाजीपुर बॉर्डर का हालात जानना चाह रहे थे। लोग सब कुछ बता रहे थे कि क्या कुछ होने वाला है। कुछ ही देर में। जब मैं टेंट वगेरह से घूम कर आया और देखा कि अब तो लोग आने लगे हैं नए जोश के साथ आक्रोश में तो दूसरी तरफ नजर दौड़ाई तो दिखा कि फोर्स वापिस बसों में जा रही है। एक निश्चिंतता हुई कि महाभारत होने से बच गया और लोगों ने बताया दिया कि अब यह क्रांति और तेज होगी। मैंने लंगर में जाकर खाना खाया, चाय पी। कुछ लोगों ने रिपोर्टिंग के दौरान ही मुझे शॉल भेंट की। मेरी आँखें नाम हो गईं शायद लोग कुछ कहना चाह रहे थे और मैं भी उनसे। यह सब कैमरे में कैद भी हुआ।
इस तरह से सुबह करीब 5 बजे तक गाजीपुर बॉर्डर पर रहा और किसानों से बातचीत की। काश ये बातचीत सरकार किसानों की तरह ही समझ पाती और कुछ निर्णय ले सकती। लेकिन ऐसा होने की बजाय वह अब हर बॉर्डर पर जाकर अपने लोगों को भेजकर आंदोलन में खलल डालना चाहती है लेकिन मेरा जहां तक अनुमान है यह जिस मार्ग को सरकार चुन रही है वह दिन प्रतिदिन आंदोलन को क्रांति में तब्दील कर रहा है।
नोट- यह लेखक के निजी विचार है, इसका फोरम4 से कोई लेना देना नहीं है।
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