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इरफान ने सोशल मीडिया पर अंत तक पोस्ट लिखकर बहुत कुछ कहने की कोशिश की!

7 जनवरी 1967 को जन्मे इरफान अली खान की आज यानी 29 अप्रैल 2020 को निधन हुआ तो सारा देश शोक में डूब गया। मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में 54 साल में उनका निधन लंबे समय से कैंसर से जूझने के बाद हुआ। इरफान खान की लड़ाई में उनकी पत्नी सुतपा सिकदर उनके साथ बराबर खड़ी रहीं। इरफान खान ने बीमार पड़ने पर अपनी पत्नी के लिए कहा था कि अगर मुझे जीने का मौका मिलेगा, मैं उसके लिए जीना चाहूंगा। हालांकि, इरफान खान को जिंदगी ने ये मौका नहीं दिया और वह अपने पत्नी और परिवार को छोड़कर चले गए।

इरफान हिन्दी अंग्रेजी फ़िल्मों, व टेलीविजन के एक कुशल अभिनेता रहे हैं। उन्होने द वारियर, मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय से दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ दी। 2012 में उन्होंने अपने नाम की अंग्रेजी वर्तनी “Irfan” में बीच में एक अतिरिक्त “R” (आर) डालकर “Irrfan” कर दिया क्योंकि उनके मुताबिक उन्हें अपने नाम में एक अतिरिक्त र स्वर की ध्वनि पसंद है।

पूरी वीडियो देखें

25 अप्रैल को ही हुआ था माता का देहांत

इरफान खान राजस्थान के टोंक के नवाबी खानदान से ताल्लुक रखते थे। उनका बचपन भी टोंक में ही गुजरा। उनके माता-पिता दोनों टोंक के ही रहने वाले थे। उनके रिश्तेदार और परिवार के कई लोग टोंक में रहते हैं। अभी चार दिन पहले (शनिवार को) ही उनकी माता का जयपुर में देहांत हो गया था। उसमें भी इरफान खान तबीयत खराब होने के कारण और लॉकडाउन के चलते नहीं आ सके थे।

सोशल मीडिया पर अंतिम ट्वीट

12 अप्रैल को इरफान ने ट्वीटर पर अंतिम ट्वीट किया था।

इससे पहले उन्होंने 9 और 12 अप्रैल को ट्वीट किया है। इसमें एक ट्वीट प्रवासी मजदूरों को लेकर है।

ये मिल चुके हैं पुरस्कार

30 से ज्यादा बॉलीवुड फिल्मों के अभिनेता को हासिल फिल्म के लिये वर्ष 2004 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इरफान हॉलीवुड मे भी एक जाना पहचाना नाम हैं। वह ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, लाइफ ऑफ़ पाई और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों मे भी काम कर चुके हैं। 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 60वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार दिया गया।

एनएसडी से पढ़ाई और प्यार दोनों हुआ

इरफ़ान खान का जन्म राजस्थान में, एक मुस्लिम परिवार में, सईदा बेगम खान और यासीन अली खान के घर पर हुआ था। उनके माता पता टोंक जिले के पास खजुरिया गाँव से थे और टायर का कारोबार चलाते थे। इरफान और उनके सबसे अच्छे दोस्त सतीश शर्मा क्रिकेट में अच्छे थे तथा बाद में, उन्हें साथ में को सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए 23 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों हेतु प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कदम रखने के लिए चुना गया था। दुर्भाग्य से, धन की कमी के कारण वे टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए नहीं पहुँच सके।

उन्होंने 1984 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति अर्जित की और वहीं से अभिनय में प्रशिक्षण प्राप्त किया।

दिल्ली में एनएसडी में इरफान की मुलाकात सुतपा सिकदर से हुई। सुतपा भी वहां अभिनय सीखने के लिए आईं थी लेकिन उनका रूझान स्क्रीनप्ले राइटिंग की तरफ ज्यादा था। सुतपा पहली नजर में ही इरफान को भा गईं थीं। इरफान ने झिझकते हुए अपना परिचय दिया और धीरे-धीरे ये पहचान दोस्ती में बदल गई। दोनों में बहुत कुछ कॉमन था और वो एक-दूसरे की तरफ एक खिंचाव महसूस करने लगे थे। आखिर दोनों ने एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया। करियर के प्रति ज्यादा गंभीर होने की वजह से वे दोनों बहुत समय तक अपनी शादी को टालते रहे। 1995 तक इरफान और सुतपा को इंडस्ट्री में पहचान मिलने लगी थी और यही वो समय था जब दोनों ने अपने रिश्ते को अगले पड़ाव पर ले जाने का फैसला किया। 1995 में फरवरी के महीने में दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और पति-पत्नी की तरह अपने नए जीवन की शुरूआत की। इरफान के दो बेटे हैं।

इरफान ने 2018 में लिखी थी यह भावुक चिट्ठी

इरफान की आखिरी फिल्म ‘अंगरेजी मीडियम’ थी. इरफ़ान ने ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ में पढाई करने के बाद मुंबई का रुख किया था। लंदन में इरफान खान ने इलाज के दौरान एक बेहद भावुक पत्र लिखा था जो, साल 2018 में अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा था। उन्होंने बताया था कि उन्हें न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर है।

इरफान ने अपने पत्र में लिखा “कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से जूझ रहा हूं, मेरी शब्‍दावली के लिए यह शब्द बेहद नया था। इसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसपर ज्यादा रिसर्च नहीं हुआ अभी तक मैं एक बेहद अलग खेल का हिस्‍सा था। मैं एक तेज भागती ट्रेन पर सवार था। मेरे सपने थे, योजनाएं थीं, अकांक्षाएं थीं। मैं पूरी तरह इस सब में बिजी था। तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए मुझे रोका। वह टीसी था। बोला ‘आपका स्‍टेशन आने वाला है। कृपया नीचे उतर जाएं। मैं परेशान हो गया बोला- ‘नहीं-नहीं मेरा स्‍टेशन अभी नहीं आया है।’ तो उसने कहा ‘नहीं, आपका सफर यहीं तक था। कभी-कभी यह सफर ऐसे ही खत्‍म होता है।”

इरफान खान ने आगे लिखा “इस सारे हंगामे, आश्‍चर्य, डर और घबराहट के बीच, एक बार अस्‍पताल में मैंने अपने बेटे से कहा ‘मैं इस वक्‍त अपने आप से बस यही उम्‍मीद करता हूं कि इस हालत में मैं इस संकट से न गुजरूं। मुझे किसी भी तरह अपने पैरों पर खड़े होना है। मैं डर और घबराहट को खुद पर हावी नहीं होने दे सकता। यही मेरी मंशा थी… और तभी मुझे बेइंतहां दर्द हुआ।”

इरफान ने लिखा “जब मैं दर्द में, थका हुआ अस्‍पताल में घुस रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा अस्‍पताल लॉर्ड्स स्‍टेडियम के ठीक सामने है। यह मेरे बचपन के सपनों के ‘मक्‍का’ जैसा था। अपने दर्द के बीच मैंने मुस्‍कुराते हुए विवियन रिचर्ड्स का पोस्‍टर देखा। इस हॉस्‍पिटल में मेरे वॉर्ड के ठीक ऊपर कोमा वॉर्ड है। मैं अपने अस्‍पताल के कमरे की बालकॉनी में खड़ा था और इसने मुझे हिला कर रख दिया”।

आगे इरफ़ान लिखते हैं “जिंदगी और मौत के खेल के बीच मात्र एक सड़क है। एक तरफ अस्‍पताल, एक तरफ स्‍टेडियम। मेरे अस्‍पताल की इस लोकेशन ने मुझे हिला कर रख दिया। दुनिया में बस एक ही चीज निश्चित है, अनिश्चि‍तता। मैं सिर्फ अपनी ताकत को महसूस कर सकता था और अपना खेल अच्‍छी तरह से खेलने की कोशिश कर सकता था। इस सब ने मुझे अहसास कराया कि मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना ही खुद को समर्पित करना चाहिए और विश्‍वास करना चाहिए। यह सोचा बिना कि मैं कहां जा रहा हूं। आज से 8 महीने, आज से चार महीने, या दो साल बाद। अब चिंताओं ने बैक सीट ले ली है और अब धुंधली से होने लगी हैं..पहली बार मैंने जीवन में महसूस किया है कि ‘आजादी’ के असली मायने क्‍या हैं।”

“इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया। उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरे हर सेल में पैठ गया। वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है कि नहीं! फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूं। इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं। मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं।”

“मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थनाएं मिल कर एक हो गयी हैं…एक बड़ी शक्ति…तीव्र जीवन धारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझमें प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही है। अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है…मैं खुश होकर इन्हें देखता हूं। लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नयी दुनिया दिखाती है। एहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण हो…जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों।”

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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