वर्तमान समय में पर्यावरण से जुड़ी अनेक समस्याओं से विश्व जूझ रहा है। अनेक देशों में आर्थिक विकास की अंधी दौड़ की वजह से पर्यावरण को अत्यंत नुकसान पहुंचा है। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग से हुआ बड़ा नुकसान इसका बड़ा उदाहरण है। आज हमको यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि पर्यावरण की हानि के मूल्य पर आर्थिक विकास नहीं होना चाहिए। उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के बिजनेस एन्क्लेव में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुनील आंबेकर ने कहीं।
पर्यावरण के वृहद महत्त्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में इन विषयों पर सकारात्मक विमर्श हो रहा है, यह बेहद हर्ष की बात है। आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए इन संस्थानों में सकारात्मक विमर्श का होना जरूरी है, जिससे युवा पीढ़ी नई दिशाओं की ओर अग्रसर हो सके।
सुनील आंबेकर ने आगे कहा कि जापान जैसे देश जहां की आबादी तेजी से बुढ़ापे की ओर बढ़ रही है, वहां भारतीय युवाओं के लिए अनेक मौके हो सकते हैं। साथ ही आज का युवा भारतीय ग्रामीण समाज में उपस्थित अनेक विशिष्टताओं को आगे ले जाकर कई रोजगारोन्मुख अवसरों को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक समावेशन सरकार से ज्यादा समाज की जिम्मेदारी है, जिसका नेतृत्व देश के शीर्ष 200 से 300 शैक्षिक संस्थान के छात्रों को करना होगा। सामाजिक उत्थान से जुड़े कार्यों में बदलाव तभी आ सकेगा जब हम कार्यों को देखने की छोटा या बड़ा की हीन भावना से आगे बढ़ कर देखें।
बिजनेस कॉन्क्लेव के दूसरे दिन सुनील आंबेकर, ‘परिसर दिखाएंगे नए भारत का रास्ता’ विषय पर वरिष्ठ पत्रकार रश्मि दास के मॉडरेशन में छात्रों को संबोधित किया।
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