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विश्व हिंदी दिवस पर पढ़िए, कैसे बनी हिंदी आमबोल की भाषा?

आज विश्व हिंदी दिवस है। हिंदी हमारे देश की राजभाषा और करोड़ों भारतीयों की जनभाषा के रूप में भी इसे सम्मान प्राप्त है। विद्वानों के अनुसार मध्यकाल में संस्कृत का जब भारत में पतन हो गया तो इसके अपभ्रंस रूप से प्रचलित हिंदी शनै : शनै : सारे देश में यहाँ के आम लोगों के बीच सामान्य बोलचाल की भाषा बन गयी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसलिए हिंदी को भारत की राजभाषा का सम्मान प्राप्त हुआ। हिंदी के विकास में बौद्ध – जैन मतावलंबियों के अलावा मुसलमान सूफी संत कवियों और आधुनिक काल में ईसाई मिशनरियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है इस प्रकार हिंदी देश के सारे लोगों की भाषा है और इसकी साहित्यिक परंपरा अत्यंत समृद्ध है।

सदियों से हिंदी का साहित्य अपनी आत्मिक जीवन चेतना के संदेश से संसार को प्रेम और शांति की जलधारा से आनंदित करता रहा है। कबीर, रसखान, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई और बिहारीलाल का काव्य संसार के साहित्य रसिकों को धर्म, नीति और जीवन के समग्र मान मूल्यों और आदर्शों से अवगत कराता रहा है। तुलसीदास को हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि के तौर पर देखा जाता है और उनके महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ को विश्व साहित्य की महान कृति कहा जाता है। आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद और प्रेमचंद ने हिंदी में आधुनिकता और यथार्थवाद का सूत्रपात किया। आधुनिक काल में खड़ी बोली हिंदी साहित्य की भाषा के रूप में सामने आयी और भारतेंदु हरिश्चंद और प्रेमचंद को हिंदी में आधुनिकता और यथार्थवाद के सूत्रपात का श्रेय प्राप्त है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रवाद हिंदी साहित्य का प्रमुख स्वर बनकर उभरा और माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान की कविताओं में देश की पराधीनता की पीड़ा खासकर प्रकट हुई है।

महात्मा गाँधी हिंदी को भारत के सभी लोगों की एकता की भाषा मानते थे और देश के अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने अनेक संस्थाओं की स्थापना की जिनमें दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का नाम महत्वपूर्ण है। हिंदी की गणना वर्तमान में दुनिया की प्रमुख भाषाओं में होती है और यह भाषा संसार को संस्कृति के मूल स्वर से अवगत कराती है और शांति , सहिष्णुता और प्रेम का संदेश देती है। समकालीन हिंदी कविता में सामाजिक शोषण और मानवीय उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष के भाव विशेष रूप से प्रवाहित हैं और इस दृष्टि से नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल के अलावा त्रिलोचन की कविताएँ भाव – भाषा और शिल्प के स्तर पर पठनीय हैं।

प्रेमचंद के बाद अज्ञेय, हजारीप्रसाद द्विवेदी और रेणु ने हिंदी कथा लेखन को गरिमा प्रदान की। हिंदी के आलोचक नामवर सिंह श्रेष्ठ चिंतक के रूप में देखे जाते हैं। स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता को मुक्तिबोध और केदारनाथ सिंह ने चिंतन और जीवन के सहज सौंदर्य की ओर उन्मुख किया। हिंदी देश के जीवन और विकास की गाथा सुनाती है।

सारे भारतवासी हिंदी को अपनी भाषा मानते हैं और देश के अहिंदी भाषी राज्यों में वहाँ के लोगों में हिंदी सीखने के प्रति लोगों में रुझान कायम हुआ है। दुनिया के अन्य देशों में भी वहाँ के विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई लोकप्रिय हो रही है। हमारे देश की अन्य भाषाओं से हिंदी का कोई विरोध नहीं है। भारत की अन्य भाषाएँ हिंदी की सहोदर मानी जाती हैं। इनके बीच आपस में प्रेम का संबंध है।

आज देश में अंग्रेजी के वर्चस्व के बीच कुछ लोग हिंदी को पढ़ना – लिखना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं लेकिन ऐसी मानसिकता ठीक नहीं है और हिंदी के साथ देश की सारी भाषाओं को समुचित सम्मान मिलना चाहिए। हिंदी भारत की पहचान है और यह देश की संस्कृति की प्रतीक है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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राजीव कुमार झा
शिक्षक व लेखक

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