मैं रही राधा..रही मीरा, रही सीता
रुक्मणी भी, उर्मिला भी मैं, अहिल्या भी रही हूँ
युग रहा कोई, कहानी जो रही हो
मैं अधूरे प्यार से पूरी हुई हूँ!
मैं उपेक्षित उर्मिला सी हूँ कथानक में कहीं पर
मैं अहिल्या सी जमी हूँ ,थी जहाँ पर,हूँ वहीं पर
मैं किसी मीरा सरीखी जो विरह को गीत कर दे
मैं किसी राधा सरीखी अश्रु को जो प्रीत कर दे
पात्र सारे जी चुकी हूँ इसलिए आसान था यह
इन सभी की वेदना के सार से पूरी हुई हूँ!
मैं बिना अपराध सीता सी परीक्षा दे रही हूँ
त्याग और बलिदान की हर बात में पहले रही हूँ
रुक्मणी के प्यार की केवल कहानी रह गयी है
प्रेम के अधिकार की पुस्तक अजानी रह गयी है
ढँक रही हूँ वेदना को मैं हँसी के आवरण से
पर छुपाये अश्रुओं के क्षार से पूरी हुई हूँ
मोम से मन को बनाया आज इक चट्टान मैंने
छीन कर यमदूत से लाए हुए हैं प्राण मैंने
प्रेम में अपने दृगों पर आप पट्टी धर चुकी हूँ
रक्त से निज केश धोने की प्रतिज्ञा कर चुकी हूँ
द्रौपदी हूँ! हारना था कब मुझे स्वीकार जग में
मैं सदा ही कौरवों की हार से पूरी हुई हूँ!
Awesome. Excellent expression