रात भर डंडा लेके हाकत हई सांड
मैं भी चौकीदार, मैं भी चौकीदार
इसी तरह अवधी में स्पष्ट लिखने और गाने वाले सोशल मीडिया पर उभरते हुए युवा लोक कलाकारों में से एक प्रदीप मौर्या हैं। वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रीय बोली जैसे अवधी, भोजपुरी में गीत लिखते भी हैं और गाते भी हैं। खासकर फेसबुक पर वह लोगों के बीच सरकार से पूछते बुनियादी सवालों पर गीत गाने की वजह से बेहद चर्चित हैं और लोगों के बीच बेहद पसंद किये जा रहे हैं। अक्सर उनकी वीडियोज को लोग लाखों की संख्या में लगातार देखते हैं। प्रदीप के गीतों में युवाओं के विभिन्न मुद्दों रोजगार, संघर्ष के साथ-साथ अन्य सामाजिक मुद्दें महंगाई, नशा मुक्ति, दहेज प्रथा, किसानों की समस्याओं की झलक देखने को मिलती है। और वह सरकार के ऊपर लोकगीतों में व्यंग्य करते हुए अपनी बात से लोगों को प्रभावित करने की बेहद क्षमता रखते हैं।
फोरम4 की टीम ने प्रदीप की इस प्रतिभा के बारे में जानने का प्रयास किया और उनका साक्षात्कार किया जो फोरम4 के सोशल मीडिया पेज यूट्यूब और फेसबुक पर 3 भागों में उपलब्ध है। आइये प्रदीप मौर्या ने अपने साक्षात्कार में अपने बारे में जो कुछ बताया वह जानते हैं-
फेसबुक पर लाखों लोग नियमित श्रोता हैं-
उत्तर प्रदेश के जिला अमेठी निवासी लोकगायक प्रदीप मौर्य से अयोध्या में फोरम4 की टीम के साथ मुलाकात हुई। बेहद सरल स्वभाव और मध्यम परिवार से आने वाले प्रदीप को देखकर ही समझा जा सकता है कि वह युवा हैं और पढ़ाई करते है। नौकरी की तलाश के संघर्षों के बारे में हमने पूछा तो उन्होंने कहा कि हां मुझे भी नौकरी की जरूरत है औऱ इसके लिए वे लगातार संघर्ष ही कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रदीप मौर्य के नाम पर उनके फेसबुक पेज (@folkpradeep) पर एक लाख से अधिक फॉलोवर तो हैं ही साथ ही साथ यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर भी वे सक्रिय है लेकिन उन्हें अभी मीडिया में लोक कलाकार के रूप में ज्यादा जगह नहीं मिल सकी है। इसका कारण पूछने पर वे कहते हैं कि हमें सोशल मीडिया स्टार बनने की दिलचस्पी से ज्यादा वास्तविक मुद्दों पर जनता के हितों को ध्यान में रखकर हमेशा बात रखना है। हमारे गानों में देश की सरकारों से सवाल इसलिए ही होते हैं क्योंकि इन सब मुद्दों पर केवल चुनावों में ही राजनीति होती है असल में कोई कुछ करता हुआ नहीं दिखता। वह युवा हैं और युवाओं के असल मुद्दे महंगाई और रोजगार ही हैं क्योंकि वह भी इस दर्द को समझते हैं और महसूस करते हैंय़ पर एक लाख से अधिक की फॉलोविंग है।
प्रदीप मौर्य ने गीतों को लिखने की शुरुआत उत्तर प्रदेश के 2021 में होने वाले पंचायत चुनाव से की थी, चुनाव पर व्यंग्य गीत गाते हुए 2022 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने। प्रदीप के लोकगीतों की सत्ता से बागी व विपक्ष के लोग जमकर सराहना करते हैं। प्रधानी चुनाव को लेकर सबसे पहले उन्होंने गीत लिखा और गाया जिसे सोशल मीडिया पर काफी सराहा गया।
नौकरी जब न लाग ये भइया भरी जवानी में
कोचिंगिया छोड़ के कूदब अबकी परधानी में
सर्व समाज के सेवा में रहब, क्षेत्र में समय बिताइब हो
केहू जब बिमार हो जाइब अस्पताल पहुंचाइब हो
सुई दवाई मुफ्त कराइब योजना आयुष्मानी में
प्रदीप मौर्य वर्तमान में लखनऊ यूनिवर्सिटी में एमएड अन्तिम वर्ष के छात्र हैं। इसके पहले उन्होंने अयोध्या के विश्वविद्यालय से बीएड किया।
प्रदीप मौर्य जमीन से जुड़े कलाकार हैं। सरकारी योजनाओं से जुड़ी समस्याओं को अपने गीतों के माध्यम से बताने का काम कर रहे हैं।
जैसे कि प्रधानमंत्री की उज्ज्वल योजना में लोगों को मुफ्त में सिलेंडर बांटा गया था। लेकिन प्रदीप मौर्य ने बताया कि सिलेंडर बांट तो दिया गया पर गैस बहुत महंगा हो गया है जिस कारण लोग खाली रखे सिलेंडर को भरवा ही नही पा रहे। इस पर प्रदीप ने गीत के माध्यम से कहा कि
गरमी से बेहाल बानी, फूंकत फूंकत चूल्ह गईला,चाचा जी
महंगा करके सिलेंडर हमको बनाया बेवकूफ चाचा जी…
इसी तरह से उन्होने कई मुद्दों पर गीत प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि सारी चीज़ें होती रहती है लेकिन रोजगार की बात की जाए तो कहते हैं कि हमने मंदिर बनवाया, हमने दीए जलवाएं,370 हटवाया। रोजगार की क्या जरूरत है, उन्होंने गाया-
खत्म होत रहत नौकरी के आस धीरे-धीरे
झरत जात इहें खोपड़ी के बार धीरे-धीरे
नेवी के उमर बीती, आर्मी के बीती
दरोगा के टूटा विश्वास धीरे-धीरे
लोकगीतों के माध्यम से सरकार पर करते हैं व्यंग्य
प्रदीप मौर्य ने बताया कि जिस उम्र के पड़ाव पर वो हैं उन्हें लगता है कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना है कहीं ना कहीं यह बदलना चाहिए, लेकिन मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमें भी उसी रेस में दौड़ना पड़ता है नौकरी पाने के लोग पढ़ते हैं लेकिन नौकरी नहीं मिलती है हालांकि जो बड़े-बड़े पोस्ट हैं आईएएस, आईपीएस, पीसीएस की भर्ती लगातार होती रहती हैं लेकिन जो छोटी-छोटी पोस्ट होती हैं मिडिल क्लास लोअर क्लास के लोग आपस में उन पोस्टों के लिए लड़ते हैं। आर्मी में जाना है, लेखपाल बनना है या सरकारी शिक्षक बनना तो इसमें लंबे समय तक भर्ती प्रक्रिया शुरू हो ही नहीं पातीं।
प्रदीप मौर्य का कहना है कि उन्होंने समाज देखा तो उन्हें लगा कि सिर्फ मैं ही पीड़ित नहीं हूं बल्कि सभी पीड़ित है तो अपना दर्द यदि मैं लिखता हूं तो कहीं ना कहीं सब का दर्द उसमें समाहित हो जाता है और जब मैंने उसको लिखा और फेसबुक पर डाला तो लोगों ने बहुत पसंद किया और वो वायरल हो गया तो मुझे लगा इसी तरह से मुझे लोगों की समस्याओं को आगे लाना चाहिए आनंद के लिए और मनोरंजन के लिए तो बहुत सारे गाने हैं लेकिन अगर मैं व्यक्तिगत कर रहा हूं तो कुछ इंटरेस्टिंग होना चाहिए तो उसी हिसाब से काम कर रहा हूं।
संगीत में रुचि कैसे शुरू हुई?
इस सवाल के जवाब में प्रदीप मौर्य ने बताया कि पिता जी और दादा जी पहले से लोकगीतों से जुड़े रहे हैं। उन्हें भी शुरू से संगीत में रुचि थी। पंचायत चुनाव के बाद से लगातार प्रदीप मौर्य इस तरह के लोकगीत लिखना और गाना शुरू किया। 2021 से लेकर अब तक कई लोकगीत गा चुके हैं।
प्रदीप मौर्या कहते हैं कि हम सिर्फ अवधि के लोक गायकों को ही नहीं सुनते हैं बल्कि दूसरे भोजपुरी यह दूसरी और भाषाओं में जो लोकगीत होते हैं उनसे भी प्रेरणा लेते हैं और सबसे बड़ी प्रेरणा हमारे बाबूजी से मिली जोकि शिक्षक थे। वह रोज सुबह हारमोनियम पर रियाज करते हैं तो मुझे भी प्रेरणा मिलती है कि हमारे बाबूजी रोज काम करते हैं तो हमें भी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि उन्होंने केवल अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि की वजह से इस क्षेत्र में काम करने को प्रेरित हुए बल्कि इसके पीछे तमाम कलाकार भी हैं।
आसपास के लोगों से कितना सहयोग मिल पाता है?
प्रदीप मौर्य ने बताया कि कुछ लोगों ने उनका बहुत सपोर्ट किया औऱ कर रहे हैं लेकिन कुछ लोग उनकी आलोचना के साथ साथ उन्हें ट्रोल भी करते हैं क्योंकि शायद उनका झुकाव कहीं न कहीं अपनी पार्टी या संगठन से होता है। असल में हम तो जनता के बुनियादी सवालों को ही लोकगीत के माध्यम से पूछते हैं लेकिन उन्हें लगता है कि सरकार के विरोध में लिखना गलत है। हालांकि आलोचना होनी चाहिए मगर तार्किक। उन्होंने कहा कि हालांकि उन्हें सपोर्ट करने वालों की भी कमी नहीं है। फेसबुक के माध्यम से जो हमारे नियमित श्रोता हैं वे तो हमें गिफ्ट भी भेजते हैं।
प्रदीप ने आगे कहा कि सरकार की आलोचना करनी चाहिए और वे इसमें हिचकते नहीं है। मर्यादित शब्दों के साथ ही अपनी बात रखते हैं। वह अपना काम करते रहेंगे। बाकी जिसे जो सोचना है सोचता रहेगा।
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