दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में एमफिल और पीएचडी दाखिले की प्रक्रिया चल रही है। पंजीकरण की तिथि बढ़ाकर 22 जून कर दी गई है। अब तक 31 हजार छात्रों ने पंजीकरण भी कर दिया है। इस बीच एक मामला दाखिले में भेदभाव को लेकर आया है जोकि हाई कोर्ट के निर्णय का स्पष्ट उल्लंघन भी है। इसमें वायवा (मौखिक परीक्षा) को 100 फीसद भार देने की बात शामिल है। इसको लेकर डीन से मिलने गये एसएफआई के प्रतिनिधिमंडल से डीन राजीव गुप्ता ने मौखिक रूप से कहा कि वायवा को 30 फीसद ही भार दिया जाएगा।
बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एमफिल, पीएचडी दाखिले को लेकर जारी इंफॉर्मेशन बुलेटिन के पेज नं. 73 में बिंदु 2 के अंतर्गत यह लिखा गया है कि प्रवेश परीक्षा क्वालीफाइंग नेचर का है, इसी बिंदु पर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन एसएफआई की ओर से ऐतराज जताया गया है।
एसएफआई की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, वर्ष 2018 में एसएफआई ने एक बड़ी कानूनी जीत हासिल की जब एसएफआई की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि “यूजीसी रेगुलेशन का 5.4 जोकि एमफिल, पीएचडी की सीटों को पूरी तरह से वायवा (मौखिक) प्रक्रिया में प्रदर्शन के फीसद मूल्यांकन के आधार भरना मनमाना है। कहा गया है कि रेगुलेशन, इसलिए शून्य घोषित किया गया है। यह अनुच्छेद 14 के विपरीत है। (रिट पेटीशन (C) 3032/2017, C.M. APPL.13252 / 2017, एसएफआई बनाम भारत संघ और अन्य।)
दिए गए अदालत के मामले में, एसएफआई ने तर्क दिया था कि “यूजीसी 2016 विनियम कई कारणों से अनुचित, मनमाना और असंवैधानिक हैं। इन विनियमों का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पर कुछ गिने चुने लोगों को शामिल करना ही है। इसमें आरक्षित वर्ग के लोगों और वंचित समूह के लोगों को विश्वविद्यालय से दूर रखने की मंशा निहित है।
पर्याप्त सीटों में कटौती और क्वालीफाइंग अकों में किसी प्रकार को आरक्षित वर्ग के लोगों को छूट न देने वाले में सबसे ज्य़ादा प्रभावित एसएसटी के छात्र होते हैं। वायवा को 100 फीसद भार देकर मनमानी किया जाना विश्वविद्यालय की ओर से आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व सीमित करने का प्रयास है।
हाई कोर्ट के निर्णय के बाद विश्वविद्यालय ने आरक्षित वर्गों को कटऑफ में छूट दी गई साथ ही 70-30 का भार लिखित परीक्षा औऱ साक्षात्कार को दिया जाना था। लेकिन इस बार फिर से यह देखने में आ रहा है कि 100 भार केवल वायवा को डीयू में दिया जा रहा है।
इसी को लेकर 18 जून को एसएफआई का एक प्रतिनिधिमंडल डीयू के डीन, छात्र कल्याण प्रो राजीव गुप्ता से मिला, और इस मनमाने रवैये को उजागर करते हुए इस मुद्दे को उठाया जिसमें विश्वविद्यालय ने 100 फीसद भार वायवा को दिया है। लिखित प्रवेश परीक्षा क्वालीफाइंग होना यह बताता है कि वायवा से ही दाखिला मिलने वाला है। यह विश्वविद्यालय का भेदभाव भरा और असमानता पैदा करने वाला रवैया है। डीन छात्र कल्याण को बताया गया कि यह माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामलों में दिए गए फैसले के स्पष्ट उल्लंघन है। एसएफआई की ओर से कहा गया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने आखिरकार इस मानदंड को वापस ले लिया है और हमें अब नए दिशानिर्देशों का इंतजार है।
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