देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए जुलाई में आयोजित होने वाली वार्षिक परीक्षा की बजाय अब इंटरनल असेसमेंट और पूर्व सेमेस्टर के प्रदर्शन के आधार पर रिजल्ट जारी करने की तैयारी हो रही है। सरकार के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा और ओडिशा सरकार ने कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए अंतिम वर्ष के छात्रों की जुलाई में आयोजित होने वाली वार्षिक परीक्षा न लेने का फैसला लिया है। इसी के चलते कई अन्य राज्यों ने भी सरकार से अंतिम वर्ष की परीक्षा न करवाने की मांग रखी है।
सरकार की ओर से इसके लिए हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरसी कुहाड़ की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है। इसी हफ्ते विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अंतिम वर्ष के छात्रों और 2020 सत्र में दाखिले के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी करेगा।
हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों की ओर से तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए ओपन बुक परीक्षा लेने की तैयारी कर चुका है। फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को खुला पत्र लिखकर परीक्षा रद करने की मांग की है। फोरम की मांग है कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले वित्त पोषित 28 कॉलेजों में होने वाली जुलाई माह से अंतिम साल के छात्रों की ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा रद कराने के लिए प्राचार्यों को निर्देश जारी करे।
फोरम के चेयरमैन और डीयू विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य प्रोफ़ेसर हंसराज ‘सुमन’ के अनुसार पत्र में दिल्ली सरकार के 28 कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों की स्थिति के विषय में बताया है कि इन कॉलेजों में अधिकांश छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबद्ध रखते हैं, जिनके घरों में ऑनलाइन परीक्षा देने संबंधी मूलभूत सुविधाएं नहीं है। बहुत से छात्र तो ऐसे है जिनके अभिभावक समय पर फीस आदि का प्रबंध बहुत मुश्किल से कर पाते है। ऐसी स्थिति में दिल्ली विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध कॉलेज ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा कराने संबंधी कॉलेजों को निर्देश दे रहे हैं, जबकि इनमें वे छात्र जो एससी, एसटी, ओबीसी, विकलांग के अलावा सामान्य वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर है। उन्होंने बताया है कि इनमें 70-80 फीसदी छात्रों के पास स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप, वाईफाई, डाटा आदि की किसी तरह की सुविधाएं नहीं है।
प्रो. सुमन का कहना है कि कॉलेजों ने इन परीक्षाओं को कराने के लिए 20-30 शिक्षकों और कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी है। जबकि इस समय दिल्ली में लगातार कोरोना के केस बढ़ रहे हैं। कोरोना को लेकर कॉलेजों में कोई सुविधाएं भी नहीं हैं, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में विश्वविद्यालय के शिक्षक सेंटर पर कैसे कार्य करेंगे? कोरोना से बचाव के लिए सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग कहाँ रह जाएगी? उन्होंने यह भी बताया है कि जिन छात्रों के पास स्मार्ट फोन, कम्प्यूटर, लेपटॉप नहीं है वे कॉलेज में जब परीक्षा देने आएंगे तो कोरोना के लिए निर्धारित सोशल डिस्टेंसिंग का कहाँ पालन हो पाएगा। साथ ही कॉलेजों के पास भी इतने साधन नहीं हैं कि वे अलग-अलग जगहों पर परीक्षाएं करा सके।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा है कि कोरोना महामारी के चलते महाराष्ट्र सरकार, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उड़ीसा सरकार ने अंतिम वर्ष के छात्रों की जुलाई में आयोजित होने वाली वार्षिक परीक्षा न लेने का फैसला किया है। इसी के चलते कई अन्य राज्यों ने भी सरकार से अंतिम वर्ष की परीक्षा न करवाने की मांग रखी है। तो फिर दिल्ली सरकार अपने 28 कॉलेजों के छात्रों के भविष्य को देखते हुए ऐसा क्यों नहीं कर सकती?
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