देश में कोरोना कहर के कारण एक ओर अघोषित आपातकाल जारी है। कोरोना संक्रमण के मामले को देखते हुए सब कुछ बंद है। लॉकडाउन के इस भयावह माहौल में कोई भी गैरजरूरी काम नहीं हो रहे हैं। लोग घरों में ही कैद हैं। लेकिन इन सबके बीच पुलिस की कार्यवाही जारी है। पुलिस के लिए इतना अच्छा मौका पहली बार मिला है जब वह अपने डंडे और कानूनी कार्यवाही करने का इस्तेमाल मनचाही रूप में कर सकता है। कहीं से किसी की पिटाई की खबर आ रही है तो कहीं पर अब यूएपीए के तहत कार्यवाही करने का मामला भी सामने आने लगा है। कोरोना की वजह से जान आफत में होने के बाद इधर जब कैदियों को को पैरोल पर बाहर निकालने की बात हो रही है। तो ऐसे ही समय में देश की राजधानी में जहां छात्रों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है। वहीं कश्मीर में पत्रकारों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज करने की खबर भी आ रही है। छात्रों की गिरफ्तारी के बाद इन घटनाओं पर फिल्मी जगत के अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, महेश भट्ट समेत 20 से ज्यादा लोगों ने चिंता जाहिर करते हुए, इनकी रिहाई की मांग की। राजद सांसद मनोज झा ने भी सवाल उठाए। वहीं कश्मीर में पत्रकारों पर यूएपीए के तहत कार्यवाही पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चिंता जताई है औऱ कहा है कि कि किसी भी चीज़ को मुख्यधारा मीडिया में छापने या सोशल मीडिया पर लिखने को लेकर कानूनी कार्रवाई करना कानून का गलत इस्तेमाल है। और देश के दूसरे हिस्सों में भी पत्रकारों को दबाने की एक कोशिश है। हम बात करेंगे कि किन लोगों के खिलाफ यह मामला दर्ज किया गया है, पहले आइये जानते हैं-
यूएपीए क्या है?
इसका पूरा नाम विधि-विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन विधेयक यानी unlawful activities prevention amendment act (UAPA) है। 2019 में इस क़ानून में संशोधन के बाद सरकार को यह ताक़त मिल गई है कि वो किसी व्यक्ति को जाँच के आधार पर आतंकवादी घोषित कर सकती है।
बढ़ते आतंकवाद पर लगाम कसने की कवायद के रूप में यह बिल 2019 में पास हुआ था। इसके तहत केंद्र सरकार किसी भी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर सकती है अगर निम्न 4 में से किसी एक में उसे शामिल पाया जाता है-
- आतंक से जुड़े किसी भी मामले में उसकी सहभागिता या किसी तरह का कोई कमिटमेंट पाया जाता है.
- आतंकवाद की तैयारी
- आतंकवाद को बढ़ावा देना
- आतंकी गतिविधियों में किसी अन्य तरह की संलिप्तता
इसके अलावा यह विधेयक सरकार को यह अधिकार भी देता है कि इसके आधार पर किसी को भी व्यक्तिगत तौर पर आतंकवादी घोषित कर सकती है।
सीएए के खिलाफ हिंसा से जुड़े मामले में जामिया छात्रो पर यूएपीए का मामला दर्ज-
आपको पता है कि कोरोना संक्रमण के देश में मामले आने से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ देशभर में तमाम जगहों पर प्रदर्शन हो रहे थे। कई जगह प्रदर्शन काफी उग्र और हिंसक भी हुए थे औऱ सांप्रदायिक माहौल में कई लोगों की मौतें भी हुई थीं। राजधानी दिल्ली में तमाम विवि के छात्रों ने प्रदर्शन को चालू रखा था। इन्हीं में शामिल जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों मीरन हैदर (पीएचडी छात्र व दिल्ली राजद युवा इकाई का अध्यक्ष) व सफूरा जरगर (एमफिल छात्र) के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि कथित तौर पर फरवरी में सांप्रदायिक दंगों के भड़काने की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
इसके अलावा मीडिया में आई खबरों के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू विवि के छात्र नेता उमर खालिद के खिलाफ भी यूएपीए के तहत कार्यवाही करने की बात सामने आई है। पुलिस ने एफआईआर में दावा किया है कि सांप्रदायिक दंगा एक पूर्व नियोजित साजिश था जो कथित तौर पर उमर व दो अन्य ने रची थी। छात्रों पर देशद्रोह, हत्या, हत्या के प्रयास, धार्मिक आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने और दंगे कराने का मामला है। बता दें कि नागरिकता कानून समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे और लगभग 200 लोग घायल हो गए थे।
एफआईआर के अनुसार उमर खालिद ने कथित तौर पर दो अलग-अलग स्थानों पर भड़काऊ भाषण दिया था और नागरिकों से अपील की थी कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार करने के लिए सड़कों पर आएं और सड़कों को अवरुद्ध करें। साथ ही साजिश के अनुसार हथियार, पेट्रोल बम, एसिड की बोतलें और पत्थर कई घरों में एकत्र किए गए थे। इसमें कहा गया कि महिलाओं व बच्चों से जाफराबाद मेट्रो स्टेशन की नीचे की सड़क को 23 फरवरी को बंद कराया गया, जिससे तनाव पैदा किया जा सके।
पुलिस की कार्यवाही पर उठ रहे सवाल?
अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, महेश भट्ट और रत्ना पाठक शाह सहित 20 से अधिक फिल्मी हस्तियों ने रविवार को एक बयान जारी कर दिल्ली पुलिस द्वारा छात्रों और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हुए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध किया और उनकी रिहाई की मांग की। इसके बाद, पुलिस ने कहा कि जेएमआई हिंसा और पूर्वोत्तर दिल्ली दंगा मामलों की जांच निष्पक्ष रूप से की गई थी, और फोरेंसिक सबूतों के विश्लेषण के बाद गिरफ्तारी की गई थी। बता दें कि पिछले साल दिसंबर में, सीएए पर विरोध के बाद पुलिस ने कथित तौर पर जेएमआई परिसर में प्रवेश किया था और लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों की बर्बरता के साथ पिटाई की थी।
राज्यसभा सांसद और राजद नेता मनोज झा ने ट्वीट किया, “दिल्ली पुलिस ने उन्हें जांच के लिए बुलाया और फिर ऊपर से आदेश मिलने के बाद मीरन हैदर को गिरफ्तार कर लिया जोकि कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान लोगों की राशन और तमाम इंतजामात करके लोगों की मदद कर रहा है।इससे पहले जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी (JCC) ने भी गिरफ्तारी की निंदा की थी और उसकी तत्काल रिहाई की मांग की थी।
जम्मू कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ क्यों हो रहे मामले दर्ज?
कोरोना वायरस से निपटने के लिए जारी लॉकडाउन के बीच कश्मीर में युवा महिला पत्रकार मोसर्रत ज़हरा के बाद अब पत्रकार और लेखक गौहर गिलानी के ख़िलाफ़ पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर लिया है।
पुलिस ने कहा है कि गौहर गिलानी कश्मीर में चरमपंथी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली बातें करते हैं और सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट के जरिए वो ग़ैरकानूनी गतिविधियों में भी शामिल हैं जो कि देश की एकता के लिए ख़तरा है। गौहर गिलानी के ख़िलाफ़ कई शिकायतें मिली थीं जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ श्रीनगर में साइबर पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया है।
इसके पहले पुलिस ने पत्रकार मोसर्रत ज़हरा के ख़िलाफ़ ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों को रोकने के यूएपीए क़ानून के तहत मुक़दमा दर्ज किया था। कई वर्षों से फ़्रीलांस फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर कश्मीर में काम कर मोसर्रत भारत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के कई संस्थानों के लिए काम कर चुकी हैं। वो ज़्यादातर हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों पर रिपोर्ट करती रहीं हैं। अपने चार साल के करियर में उन्होंने आम कश्मीरियों पर हिंसा के प्रभाव को दिखाने की कोशिश की है। बता दें कि पाँच अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने संविधान की धारा 370 के तहत कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म करके पूरे राज्य को सील कर दिया गया था।
पुलिस के अनुसार मोसर्रत ज़हरा ने फ़ेसबुक पर भारत विरोधी पोस्ट किया है और एक पोस्ट में धार्मिक व्यक्ति को चरमपंथियों के साथ तुलना की है। कई लोगों से ये शिकायत मिली है कि मोसर्रत ऐसी पोस्ट करती हैं जिससे कश्मीरी युवा इससे भड़क सकते हैं और वो चरमपंथी गतिविधियों की तरफ़ आकर्षित हो सकते हैं।
मोसर्रत ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने कश्मीरी महिलाओं में तनाव से संबंधित एक रिपोर्ट के सिलसिले में गांदरबल ज़िले की एक महिला का इंटरव्यू किया था। मोसर्रत के अनुसार उन महिला ने उन्हें बताया था कि 20 साल पहले उनके पति को एक कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया गया था। मोसर्रत का कहना है कि उन्होंने इस रिपोर्ट से संबंधित कुछ तस्वीरें भी पोस्ट की थीं।
पत्रकारों की आवाज दबाने की कोशिश?
एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान जारी करते हुए जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज हो रहे मामलों पर अपनी चिंता जताई है और कहा है कि किसी भी चीज़ को मुख्यधारा मीडिया में छापने या सोशल मीडिया पर लिखने को लेकर कानूनी कार्रवाई करना कानून का इस्तेमाल है। और देश के दूसरे हिस्सों में भी पत्रकारों को दबाने की एक कोशिश है। एडिटर्स गिल्ड ने जम्मू और कश्मीर प्रशासन से पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज किए गए मामले वापस लेने की अपील की है।
एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि, ”अगर सरकार को किसी की रिपोर्टिंग से कोई शिकायत है तो उससे निपटने के दूसरे भी सामान्य तरीके हैं। महज सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर किसी पर कार्रवाई करना और उस पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत केस दर्ज करना सही नहीं है।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर लिखा कि बिना सवाल जवाब के जिस तरह कश्मीर में पत्रकारों और विचारकों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए जा रहे हैं वो ग़लत हैं और उन्हें रोका जाना चाहिए।
No ifs, no buts, no whataboutery – this campaign of FIRs against journalists & commentators in Kashmir IS WRONG & must stop. If your version of events is so weak that you have to charge these people it says more about what is happening in Kashmir than anything they have written.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) April 21, 2020
पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती ने ट्विटर पर लिखा कि महामारी के बीच में जिस तरह पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज हो रहे हैं वो अनुचित है।
Absurd that filing FIRs & slapping anti terror laws like UAPA against journalists is being done at breakneck speed even in the middle of a deadly pandemic. Latest addition being @GowharGeelani. This is the ‘heaven’ reserved for minorities in India.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) April 21, 2020
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