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कोरोना महामारी से हो रही मौतौं से ज्यादा परेशान करने वाली हैं, जमलो जैसे मजदूरों की मौतें?

कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण लॉकडाउन की स्थिति है, ऐसे में जब एयर इंडिया की विशेष फ्लाइट 263 भारतीय छात्रों को इटली की राजधानी रोम से दिल्ली लाने के लिए भेजा जा सकता है। जब यूपी सरकार कोटा में फंसे 7500 छात्रों की सकुशल वापसी के लिए बस भेज सकती है। सरकार आवश्यक वस्तुओं का आयात-निर्यात कर सकती है। तो फिर ये सारे चीजें गरीब और प्रवासी मजूदूरों के साथ क्यों नहीं हो सकतीं। आखिर वे भी तो कहीं फंसे हैं। सरकार पर पूरी तरह निर्भर होने की स्थिति में भूखे सोने पर मजबूर है। हम देख रहे हैं कि कैसे बच्चे और बूढ़े किसी तरह पैदल चलकर मीलों सफर तय करने के बाद घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। सवाल है केंद्र और राज्य सरकारों से कि प्रधानमंत्री के यह कहने पर कि आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी जो जहां रहे वहीं रहे। कहीं आएं जाएं न। फिर आखिर क्यों इन मजदूरों को शहरों से गांवों की ओर मुड़ना पड़ रहा है। और इस बात को जानते हुए कि पुलिस का डंडा इन्हीं गरीबों पर भारी पड़ेगा। फिर भी अपने बच्चों को गोद में लेने के लिए मीलों सफर तय करना पड़ रहा है। हम दिल दहलाने वाली ऐसी ही एक खबर की बात कर रहे हैं। जमलो चार दिन पैदल चलने के बाद घर नहीं पहुंच सकी क्यों…क्योंकि वह मजदूर की बेटी थी। क्योंकि वह बच्ची थी। क्योंकि वह गरीब थी। यह 12 साल की बच्ची छत्तीसगढ़ के आदेड़ गांव की रहने वाली जब तेलंगाना से मज़दूरों के एक काफ़िले के साथ अपने घर के लिये निकली थी तो उम्मीद के साथ ही निकली रही होगी कि जल्दी ही वह अपने घर पहुंच जायेगी। अपनी मां-बाप की इकलौती बेटी जमलो मड़कम चार दिनों तक घने जंगलों के उबड़-खाबड़ रास्तों में पैदल चलती रही। लेकिन, गांव पहुंचने से ठीक 14 किलोमीटर पहले जमलो की सांस उखड़ गई। जमलो का कोरोना टेस्ट भी निगेटिव आया था। उसकी मौत के पीछे की वजह इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस बताई जा रही है।

जमलो के पिता आंदोराम के मुताबिक साथ के मज़दूर बता रहे थे कि रात को सब लोगों ने ठीक से खाना खाया और आराम किया था। सुबह जब खाना खा कर सब लोग निकल रहे थे, उसी समय उसुर गांव के पास जमलो के पेट में दर्द हुआ। पता नहीं फिर क्या हुआ हमारी जमलो को और उसने वहीं दम तोड़ दिया।

इसी साल की फरवरी में जमलो गांव के दूसरे रिश्तेदारों की देखा-देखी मिर्च की खेती में तोड़ाई का काम करने के लिये तेलंगाना गई थी। मुलुगू ज़िले के पेरुर में गांव के लोगों को काम मिला। लेकिन दो महीने ही गुज़रे थे कि कोरोना वायरस के कारण मिर्ची के परिवहन का काम बंद हो गया और लॉकडाउन के कारण मज़दूरी पर भी तालाबंदी की मार पड़ने लगी। बचा कर रखे गये पैसे भी ख़त्म होने लगे। इसके बाद ठेकेदार की सलाह पर सब लोगों ने घर लौटने का फ़ैसला किया।

गांव के लोग बताते हैं कि मुलुगू ज़िला मुख्यालय से से गोदावरी नदी को पार कर भोपालपटनम होते हुये आदेड़ गांव का रास्ता लगभग 200 किलोमीटर का है। लॉकडाउन के कारण कहीं कोई बस नहीं चल रही थी। मज़दूरों के सामने और कोई चारा भी तो नहीं था। ऐसे में गांव के सभी 12 लोगों ने पैदल ही जंगल के रास्ते आदेड़ लौटने का फ़ैसला किया।

बच्ची की मौत से ये भी सवाल खड़े होते हैं कि 12 साल की बच्ची को आख़िर काम करने के लिये दूसरे राज्य में क्यों जाना पड़ा? पढ़ाई-लिखाई की उम्र में उसे पैसे कमाने की ज़रुरत क्यों पड़ी?

इससे पहले भी तमाम मजदूरों की मौतें हो चुकी है जो कि कोरोना वायरस से होने वाली मौतों से ज्यादा परेशान करने वाली हैं।

हमने देखा था कि दिल्ली से आगरा जा रहे शख्स की 200 किमी पैदल चलने के बाद मौत हो गई थी जो कि दिल्ली में एक निजी रेस्टोरेंट के लिए काम करता था। 39 वर्षीय यह फूड डिलीवरी बॉय था जोकि दिल्ली से मध्य प्रदेश के मोरेना जिले के लिए जाते हुए रास्ते में दम तोड़ दिया।

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, रणवीर सिंह नाम मोरेना जिले के बादफरा गांव के रहने वाले थे और तीन बच्चों के पिता थे।

पुलिस के अनुसार, रणवीर राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के कैलाश मोड़ के पास गिर गए जिसके बाद वहां स्थित एक हार्डवेयर दुकानदार संजय गुप्ता ने उन्हें उठाया।

सिकंदरा के एसएचओ अरविंद कुमार ने कहा, उन्होंने पीड़ित को कारपेट पर लिटाया और चाय-बिस्किट दिया। पीड़ित ने सीने में दर्द की शिकायत की और अपने स्वास्थ्य की जानकारी देने के लिए अपने रिश्तेदार अरविंद सिंह को फोन भी लगाया। हालांकि, शाम के 6:30 बजे पीड़ित की मौत हो गई, जिसके बाद पुलिस को बुलाया गया।

कुमार ने कहा, रणवीर अपने घर के लिए पैदल ही चल दिए थे. ऐसा लग रहा है कि 200 किमी पैदल चलने के कारण उनके सीन में दर्द उठा। हालांकि, मौत से पहले पीड़ित ने दावा किया था कि उसने कुछ दूर की यात्रा एक ट्रक में की थी। पूरे एनएच-2 पर पुलिस खाना और पानी लेकर मौजूद थी लेकिन रणवीर की मौत बहुत दुखद है।

लॉकडाउन के कारण मजदूरों के लिए खुद और परिवार के खर्च निकाल पाना मुश्किल होने लगा। जब सब बंद हो गया, तो मजदूर भूख-प्यास की परवाह किए बगैर पैदल ही अपने-अपने गांवों की ओर निकल पड़े। और इसमें किसी की ट्रक-टैम्पो की टक्कर से मौत हुई तो किसी ने चलते-चलते दम तोड़ दिया। 31 मार्च तक की मौतों पर एक नजर डालते हैं- लॉकडाउन के पहले छह दिन में 29 मजदूरों समेत 34 लोगों की जान जा चुकी थी, जबकि कोरोना की वजह से देश में 37 मौतें हो चुकी थीं। भास्कर की खबर के मुताबिक हम एक बार यह जान लेते हैं कि कहां कहां कैसे मौते हुईं और मजदूर हर दिन इसके शिकार होते जा रहे हैं औऱ सरकार अभी तक इन मजदूरों को इनके घर वापस सुरक्षित भेजने का इंतजाम नहीं कर पाई। इसलिए जगह-जगह लॉकडाउन के बाद भी इनकी लाखों की संख्या सड़कों पर उमड़ती हुई दिख जाती है।

लॉकडाउन की वजह से पहली मौत तमिलनाडु में हुई थी।

25 मार्च, 4 मौत – केरल में काम करने वाले 10 मजदूर अपने घर तमिलनाडु लौट रहे थे। इन मजदूरों ने घर जाने के लिए तमिलनाडु के थेनी में बने जंगल का रास्ता चुना। तभी जंगल में आग लग गई। इस आग में दादी के. विजयामनी (43) और उनकी 1 साल की पोती की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद वी. मंजुला (46) और एस. माहेश्वरी (43) ने बाद में दम तोड़ दिया था।

27 मार्च, 8 मौत- हैदराबाद के पेड्डा गोलकंडा के पास हुए एक सड़क हादसे में 8 लोगों की मौत हो गई थी। इन 8 लोगों में एक 18 महीने का बच्चा और एक 9 साल की बच्ची भी थी। ये लोग एक ट्रक में बैठकर तेलंगाना से कर्नाटक अपने घर जा रहे थे। लेकिन रास्ते में ही एक लॉरी ने पीछे से टक्कर मार दी, जिसमें इनकी मौत हो गई।

28 मार्च, 4 मौत- मुंबई में चाय की दुकान और कैंटीन में काम करने वाले 7 दिहाड़ी मजदूर लॉकडाउन के बाद पैदल ही अपने घर राजस्थान के लिए निकल पड़े। इन मजदूरों को पहले गुजरात बॉर्डर पार करने से रोक दिया गया था। लेकिन, अगले दिन इन्होंने फिर पैदल चलना शुरू कर दिया। तभी मुंबई से सटे विरार में मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर एक ट्रक ने इन्हें टक्कर मार दी, जिसमें 4 मजदूरों की मौत हो गई। इनकी पहचान रमेश भट्ट (55), निखिल पांडे (32), नरेश कालुसुवा (18) और लौराम भगौरा (18) के रूप में हुई।

28 मार्च, 6 मौत- महाराष्ट्र से गुजरात अपने घर जा रहे 4 प्रवासी मजदूरों को मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर पारोल गांव के पास एक टैम्पो ने पीछे से टक्कर मार दी। इस हादसे में चारों की मौत हो गई। इसी दिन गुजरात के वलसाड जिले में दो महिला मजदूर जब रेलवे ट्रैक पार कर रही थीं, तभी मालगाड़ी ने उन्हें कुचल दिया। उन दोनों महिलाओं की जान नहीं बच सकी।

28 मार्च, 1 मौत- 39 साल के रणवीर सिंह दिल्ली में एक निजी रेस्टोरेंट में डिलीवरी बॉय का काम करते थे। लॉकडाउन के बाद रणवीर दिल्ली से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के लिए पैदल ही निकल पड़े। वे 200 किमी तक जा भी चुके थे, लेकिन रास्ते में ही आगरा पहुंचते ही उनकी मौत हो गई। रणवीर मुरैना के बादफरा गांव के रहने वाले थे। उनके तीन बच्चे हैं।

29 मार्च, 5 मौत- अपने गांव के लिए पैदल ही दिल्ली से निकले 8 मजदूरों को कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस-वे पर 8 मजदूरों को एक ट्रक ने कुचल दिया। इस हादसे में 5 की मौत हो गई। मरने वालों में एक बच्चा भी था।

लॉकडाउन से हुई इन मौतों का जिम्मेदार कौन?

26 मार्च, पश्विम बंगाल

32 साल के लाल स्वामी घर से दूध लेने के लिए निकले थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लॉकडाउन के बावजूद घर से बाहर निकलने पर पुलिस ने उनकी पिटाई की। लाल स्वामी हार्ट पैशेंट

कर्नाटक-केरल बॉर्डर

केरल के मंजेश्वर में रहने वाले 60 साल के अब्दुल हामिद को हार्ट अटैक के बाद कर्नाटक के मंगलुरु ले जाया जा रहा था, लेकिन कर्नाटक पुलिस ने उन्हें बॉर्डर क्रॉस करने की इजाजत नहीं दी। हामिद के भतीजे इब्राहिम ने पुलिस से मिन्नतें भी कीं, लेकिन पुलिस ने जाने नहीं दिया। आखिरकार हामिद की मौत हो गई।

28 मार्च, गुजरात

62 साल के गंगाराम सूरत के एक अस्पताल से अपने घर पैदल जा रहे थे। क्योंकि लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट भी बंद था, इसलिए वे 8 किमी पैदल ही निकल पड़े। अपने घर के पास ही गंगाराम बेहोश हो गए और जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया, तो वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

29 मार्च, कर्नाटक-केरल बॉर्डर

केरल के कासरगोड से कर्नाटक के मंगलुरु जा रही एक एंबुलेंस को पुलिस ने जाने से रोक दिया। इस एंबुलेंस में केरल के कासरगोड में रहने वालीं 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला थीं। उनकी अचानक तबियत खराब होने की वजह से कर्नाटक लाया गया था। लेकिन एंबुलेंस को रास्ता नहीं दिए जाने से महिला की मौत हो गई।

29 मार्च, बिहार

आरा जिले के जवाहर टोला में रहने वाले राहुल की मौत भूख की वजह से हो गई। राहुल सिर्फ 11 साल का था। उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से वे कई दिनों से घर पर ही बेरोजगार बैठे थे।

कोरोना संक्रमण के ताजा मामले और आंकड़े

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटे में कोरोना से देशभर में 47 लोगों की मौत हुई है और 1336 नए केस सामने आए हैं। वहीं देश में कुल कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर 18,601 हो गई है, जिनमें 14759 एक्टिव केस हैं और 3252 लोग ठीक हो चुके हैं। कोरोना से देश में अब तक 590 लोगों की जान गई है।

भारत में कई कोरोना मरीजों में बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देने से प्रशासन की परेशानी बढ़ गई है। देश के 10 राज्यों में औसतन 67 फीसदी मरीज ऐसे हैं, जिनमें कोरोना संक्रमण का कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस के छिपे वाहकों के कारण बड़े पैमाने पर संक्रमण फैल सकता है। हिन्दुस्तान टाइम्स की एक खबर के अनुसार, महाराष्ट्र के कुल मरीजों में से 65 फीसदी ऐसे हैं, जिनमें बीमारी का कोई लक्षण ही नहीं है। इसी तरह यूपी में 75 फीसदी और असम में तो 82 फीसदी मरीजों में बीमारी के लक्षण नहीं हैं।

डब्लूएचओ चीफ का बयान परेशान करने वाला है-

डब्लूएचओ चीफ ने कहा है कि कोरोना का और बुरा रूप अभी देखना बाकी है। डब्लूएचओ चीफ ने विभिन्न देशों से कोरोना को लेकर एहतियात बरतने की अपील की है। हालांकि डब्लूएचओ चीफ ने यह नहीं बताया कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है। माना जा रहा है कि अफ्रीकी देशों में यह बीमारी बेकाबू हो सकती है, जिससे कोरोना से मरने वाले लोगों का आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। बता दें कि पूरी दुनिया में कोरोना के 25 लाख से ज्यादा पॉजिटिव केस आ चुके हैं और 1 लाख 70 हजार 418 लोगों की मौत हो चुकी है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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