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क्या डीयू सहित अन्य विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन परीक्षाओं का आयोजन होगा?

तस्वीर- गूगल साभार

डीयू सहित देश के सभी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाई पूरी कराई गई हो या न, लेकिन परीक्षाओं की तैयारी की बात जरूर हो रही है। वो भी ऑनलाइन मोड में। कोरोना महामारी से छात्रों के पठन पाठन की समस्याओं को सुलझने में अभी तक कोई खास उपाय नहीं हो पाया है। मार्च से ही कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र व राज्य़ सरकारों ने प्रयास के रूप में विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, संस्थानों को अस्थाई रूप से बंद करने फैसला अचानक ही ले लिया। समय की जरूरत भी यही थी। मगर इसने तमाम सवालों को जन्म भी दे दिया है। जिस पर कोरोना वायरस की महामारी खत्म होने पर भी बहस चलती रहेगी। सेमेस्टर मोड में होने वाली परीक्षाओं की तैयारी, उनका मूल्यांकन और तमाम अकादमिक प्रणालियों की व्यवस्थाओं पर कोई क्रमिक सोच न बन पाने की वजह दिखाता है कि अभी भी हम कंप्यूटर युग में औऱ तमाम तकनीकी सुविधाओं से लैस होने के बाद भी किसी आपातकालीन स्थिति से लड़ने के लिए तैयार नहीं हो सके हैं। 21 दिनों के लॉकडाउन के बाद पुनः 3 मई तक लॉकडाउन बढ़ने से छात्रों के करियर पर खासा प्रभाव पड़ना तय है खासकर अंतिम वर्ष के छात्रों पर और उनमें भी खासकर कमजोर वर्ग के छात्रों पर।

यही सब वजह से है कि अभी लॉकडाउन कब तक रहेगा। इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि देश में यह महामारी कब तक नियंत्रण में आयेगा इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है। इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय सहित तमाम विश्वविद्यालयों में छात्रों की परीक्षा कराने के तौर तरीकों पर आंतरिक रूप से बहस लगातार चल रही है। हालांकि अभी तक हल नहीं निकल पाया है। डीयू में पाठन प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए ऑनलाइन क्लासेज, मैटेरियल उपलब्ध कराने का निर्णय इससे पहले लिया गया था। साथ ही लाइब्रेरी की सुविधा का फायदा घर से मिले इसके बारे में भी छात्रों को जानकारी दी गई थी, हालांकि किस तरह ये क्लासेज छात्रों के लिए लाभकारी साबित हुई हैं इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं हैं। क्योंकि लॉकडाउन की स्थिति में कौन, कहां है इसकी जानकारी भी नहीं है। ग्रामीण पृष्ठिभूमि वाले छात्रों को कंप्यूटर, इंटरनेट जैसे तमाम सुविधाओं के अभाव से खासा फर्क पड़ रहा है। यहां तक कि लॉकडाउन में छात्रों को भोजन पानी की व्यवस्था भी मिल पा रही है यह भी एक अलग ही विषय बन कर उभरा है क्योंकि कुछ छात्र घरों तक भी नहीं रुख कर सके हैं। ज्यादातर छात्र वायरस की स्थिति का अंदाजा न लगा पाने के कारण अगर घर पहुंच भी गए हैं तो वे अपने साथ किताबें, स्टडी मैटेरियल भी साथ नहीं ले जा सके हैं।

तो क्या ऑनलाइन परीक्षा कराने पर विश्वविद्यालय विचार कर रहा है-

तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली विश्वविद्यालय में ऑनलाइन परीक्षा कराने के संबंध में कुलपति ने डीयू के सभी संकायों के डीन से चर्चा की। विवि के वरिष्ठ अधिकारियों और विभिन्न विभागों के डीन की डीन ऑफ एग्जामिनेशन विनय गुप्ता के साथ हुई बैठक के दौरान, अधिकारियों ने सुझाव दिया कि छात्रों को आठ प्रश्न भेजे जाएंगे और उन्हें जवाब में पांच मिनट की वीडियो क्लिप अपलोड करके उनमें से चार का जवाब देना होगा। हालांकि, कई डीनों ने इसे “व्यावहारिक रूप से असंभव” बताया। ऑनलाइन परीक्षा के बारे में प्रोफसर्स के ऐतराज जताने के पीछा का कारण है कि कई छात्र ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां कनेक्टिविटी के मुद्दे हैं और उनमें से कई लेखन में अच्छे हो सकते हैं लेकिन बोलने में धाराप्रवाह नहीं हैं। ऐसे में परीक्षा का यह तरीका एक छात्र का परीक्षण अच्छी तरह नहीं कर पाएगा। डीयू ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देश का इंतजार कर रहा है। इस बीच अकेडमिक्स फॉर ऐक्शन एंड डेवलपमेंट (AAD) (कांग्रेस-समर्थित एक शिक्षक समूह) ने ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन के मनमाने और सत्तावादी प्रस्ताव की निंदा की।

AAD ने कहा, ”डीयू में परीक्षा एक वैधानिक प्रक्रिया है जिसे अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद की मंजूरी के बिना बदला नहीं जा सकता है। पेपर सेटिंग की ऑनलाइन प्रक्रिया, जवाब प्रस्तुत करने और मूल्यांकन में छेड़छाड़ की बहुत अधिक संभावना है। बता दें कि पिछले हफ्ते, विश्वविद्यालय ने अगले नोटिस तक व्यावहारिक और लिखित परीक्षाएं स्थगित कर दी थीं।

डूटा ने यूजीसी से कहा- डीयू में ऑनलाइन परीक्षा करवाना मुश्किल

दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर की परीक्षाओं को ऑनलाइन कराने पका शिक्षक संघ (डूटा) ने विरोध किया है। शिक्षक संघ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन को एक पत्र लिखकर वर्तमान में विश्वविद्यालय की स्थिति व ऑनलाइन परीक्षा कराने संबंधी मुश्किलों के बारे में अवगत कराया। डूटा अध्यक्ष राजीब रे ने यूजीसी के चेयरमैन प्रो. डीपी सिंह को लिखे पत्र में कहा है कि डीयू एक बड़ा विश्वविद्यालय है। इसलिए इसमें ऑनलाइन परीक्षा कराना संभव नहीं है क्योंकि इसमें हर वर्ग हर क्षेत्र के विद्यार्थी पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि इंटरनेट की कनेक्टिविटी सहित अन्य समस्याएं संसाधनों की समस्याएं हैं। डूटा की तरफ यूजीसी चेयरमैन को सुझाव भी भेजा गया है। जिसमें लिखा है कि ई-संसाधनों के माध्यम से शिक्षण को कक्षा में मूर्त रूप से पढ़ाने के विकल्प के रूप में नहीं लिया जा सकता। छात्रों के वर्तमान बैच के लिए 180 दिनों के शिक्षण की न्यूनतम आवश्यकता का पालन किया जाना चाहिए और अगले सत्रों को आगे बढ़ाने और अवकाश अवधि को सीमित करने से इसे प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऑनलाइन केंद्रीकृत परीक्षाओं के संचालन को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि विश्वविद्यालय के पास न तो बुनियादी ढांचा है और न क्षमता।

यूजीसी का नोटिस

कार्यकारी परिषद के सदस्यों ने कुलपति को लिखा पत्र

ऑनलाइन परीक्षा के प्रस्ताव का तमाम छात्र संगठनों और शिक्षक संगठन के विरोध के बाद कार्यकारी परिषद के सदस्यों प्रो जेएल गुप्ता व डॉ राजेश झा ने कुलपति प्रो योगश त्यागी को पत्र लिखा है। सदस्यों ने पत्र लिखकर यह तर्क दिया है कि डीयू में कुछ कोर्सेज के दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) से कराई जाती है। ऐसे में लगभग 9 लाख छात्रों के लिए स्नातक व स्नातकोत्तर छात्रों की परीक्षा डीयू का कंप्यूटर सेंटर कैसे आयोजित कर लेगा। डीयू में प्रवेश परीक्षा सभी स्नातकोत्तर (पीजी), एमफिल-पीएचडी, कोर्सेज और यूजी के लगभग 11 कोर्सेज के लिए एनटीए आयोजित करता है।

डॉ राजेश झा के मुताबिक, डीयू एक्ट 1992 की धारा 17 में साफ कहा गया है कि विश्वविद्यालय के प्राधिकारी कौन हैं। इसलिए परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर इस तरह का फैसला लेना विधायी संस्थाओं (विद्वत परिषद व कार्यकारी परिषद) के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण है। साथ ही जो छात्र ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र से आते हैं उनके लिए और सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले छात्र जिनके पास लॉकडाउन के कारण लैपटॉप व डेस्कटॉप का अभाव हैं वे भी परीक्षा से वंचित रह सकते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ का क्या कहना है?

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद , दिल्ली इकाई  दिल्ली विश्वविद्यालय , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, आंबेडकर विश्वविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों से कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन की स्थिति में आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा तथा सेमेस्टर परीक्षा जैसे विषयों पर ऑनलाइन माध्यम से विस्तृत सुझाव लेकर शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को ज्ञापन देगी। अभाविप के इस अभियान का नाम ‘पढ़ेगा भारत, बढ़ेगा भारत और जीतेगा भारत’ दिया है ।

गूगल फार्म

उक्त संदर्भ में अभाविप ने गूगल फार्म के माध्यम से सुझाव लेना शुरू कर दिया है, जिसके द्वारा छात्रों से आंतरिक मूल्यांकन परीक्षा तथा सेमेस्टर परीक्षा आदि विषयों पर परीक्षाओं के आयोजन तथा परीक्षाएं आयोजित करने के माध्यम आदि विषयों पर सुझाव लिए जा रहे हैं। साथ ही फार्म के माध्यम से छात्रों से ऑनलाइन परीक्षा की संभावना के संदर्भ में भी पूछा गया है। छात्रों से समस्त विषय पर खुला सुझाव लिया जा रहा है‌। हजारों छात्र-छात्राओं से उपर्युक्त मुद्दे से संबंधित लगभग 15 प्रश्नों पर सुझाव लेकर व प्राप्त सुझावों का मूल्यांकन कर अभाविप विश्वविद्यालय प्रशासन‌, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय को ज्ञापन सौंपेंगी।

अभाविप दिल्ली के प्रदेश मंत्री सिद्धार्थ यादव ने कहा कि , “महामारी के कारण छात्रों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है , अभी लॉकडाउन कब तक चलेगा यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। वर्तमान में छात्रों के मन में आंतरिक तथा सेमेस्टर परीक्षा को लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं। डीयू जैसे विश्वविद्यालय में चूंकि सेमेस्टर परीक्षाओं के लिए तय तारीखों को टाला जा चुका है, इसलिए छात्रों के मन में परीक्षा को लेकर स्वाभाविक चिंता है। छात्रों के इस सन्दर्भ में सुझाव महत्वपूर्ण है इसलिए हम हज़ारों छात्रों से सेमेस्टर परीक्षा पर विस्तृत राय लेकर अपना ज्ञापन प्रशासन को सौंपेंगे।”

छात्र संगठन क्या कहते हैं?

एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया), दिल्ली ने डीयू के ऑनलाइन परीक्षाओं के संचालन के उस प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें प्रबंधन ने दिल्ली विश्वविद्यालय कंप्यूटर केंद्र (DUCC) को उक्त के लिए एक ऑनलाइन मंच बनाने का निर्देश दिया है। एसएफआई ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा है कि यह निर्णय विश्वविद्यालय के प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। ऑनलाइन परीक्षाएं संभव नहीं हैं, क्योंकि इंटरनेट की पहुंच सभी तक समान रूप से नहीं है। यहां तक कि अगर इंटरनेट उपलब्ध है, तो बैंडविड्थ और गति से जुड़ी चिंताएं हैं। ज्यादातर छात्र मुसीबत में हैं अभी भी पठन पाठन करने के माहौल वाली जगह पर नहीं पहुंच सके हैं। अधिकांश छात्र, छात्रावास से अपने मिड सेमेस्टर ब्रेक में कुछ समय के लिए घर चले गए वे अपनी किताबों को भी नहीं ले जा सके हैं।

ऑनलाइन परीक्षा के साथ आगे बढ़ने से मौजूदा असमानताएं बढ़ेंगी और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से जुड़ी समस्याओं की अवहेलना होगी, जिसे विश्वविद्यालय पूरा करने की बात करता है। गरीब परिवारों और विभिन्न जाति, जनजाति पृष्ठभूमि से आने वाले अधिकांश छात्रों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है। भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना को देखते हुए, ऑनलाइन परीक्षा और कक्षाएं आयोजित करना असंभव है। साथ ही ऑनलाइन कक्षाओं को कक्षा शिक्षण के लिए उचित विकल्प के रूप में नहीं गिना जा सकता इसे समझने के लिए विविध छात्र जनसांख्यिकी का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि छात्रों की समस्याओं ओर सीमाओं को ठीक से समझा जा सके।

अंतिम वर्ष के छात्रों की स्थिति पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए और उन्हें अस्थायी प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए डूटा के सुझाव को अपनाकर अपनी आगे की पढ़ाई करने में कठिनाइयों का सामना करने से रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए। विश्वविद्यालय को विभिन्न वैधानिक निकायों के साथ संकाय और विभाग की चर्चा और बैठकों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

ऑनलाइन अध्ययन या परीक्षा उच्च शिक्षा और छात्र हित दोनों के उचित मूल्यांकन की उपेक्षा करते हैं। कोविड -19 महामारी की आड़ में, यूजीसी-एमएचआरडी द्वारा समाज के निजीकरण, संविदात्मक, धनी वर्ग के हित में ऑनलाइन शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है और यह एक तरह से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2019) को लागू करने की दिशा में प्रयास है।

आईसा ने छात्रों और मजदूरों के लिए एक्शन प्लान को लेकर 12 घंटे की भूख हड़ताल का किया आह्ववान

दुनिया ने शायद कई पीढ़ियों और दशकों में इस तरह की महामारी नहीं देखी है, विशेष रूप से कोविड 2019 के वैश्विक प्रसार और इसकी वजह से जो तबाही पैदा हुईं। आईसा ने प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा है कि मोदी सरकार ने समय पर निवारक उपायों और परीक्षण और उपचार सुविधाओं के विस्तार पर थोड़ा जोर देने के लिए जुमलों, तमाशों और बिना किसी सुनियोजित लॉकडाउन की योजना का सहारा लिया है। बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन का फैसले का सबसे ज्यादा असर गरीब और दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। स्ट्रैंड्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 96% फंसे श्रमिकों को सरकार से राशन नहीं मिला है और 89% श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान नियोक्ताओं द्वारा भुगतान नहीं किया गया है। बेरोजगारी की दर 24% तक पहुंच गई है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अधिक है। लगभग 7 करोड़ लोगों, 17% श्रम बल, ने नौकरियों की तलाश बंद कर दी है (न्यूज़क्लिक, 17 अप्रैल, 2020)। इसलिए आईसा ने 19 अप्रैल को भूख हड़ताल करने की छात्रों से अपील की है।

छात्रों के लिए यह कार्य योजना (स्टूडेंट एक्शन प्लान) अपनाए जाने की जरूरत है-

सरकार की ओर से किसी भी ठोस कार्ययोजना के न होने से छात्रों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बिना छात्रवृत्ति से छात्रों को रहने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। ऐसे छात्र जो अब कमरे का किराया देने में अक्षम हैं उनकी भी परेशानी बढ़ती नजर आ रही है। क्योंकि अभी छात्रों के शैक्षणिक और कैरियर विकल्पों के बारे में काफी अनिश्चितताएं हैं। आईसा ने मांग की है कि केंद्र और राज्य सरकारों का इस ओर तत्काल ध्यान देना होगा।

शिक्षण संस्थानों द्वारा घर से काम करने को बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही कक्षाओं और परीक्षा को ऑनलाइन मोड में स्थानांतरित करने का काम किया जा रहा है। वर्क फ्रॉम होम की ओर ले जाने की वजह से उन छात्रों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिन्हें स्थिर इंटरनेट कनेक्शन या लैपटॉप की सुविधा नहीं मिली है। इससे खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों और वंचित और कमजोर वर्ग के छात्रों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस ओर भी नीति निर्माताओं को ध्यान देने की काफी जरूरत है।

आईसा ने मांग की है कि देश भर में किराए पर रहने वाले छात्रों के लिए तत्काल किराया माफ किया जाए। छात्रों के कमरे के किराये का भुगतान केंद्र सरकार (केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों के) और राज्य सरकार (राज्य स्तरीय विवि में पढ़ने वाले छात्रों के) को करना चाहिए।

स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की फीस का पुनर्गठन किया जाए और सरकार को अगले सेमेस्टर की फीस को समाप्त करने की आवश्यकता है, ताकि ड्रॉप आउट न हो।

इसी तरह, विभिन्न राज्य सरकारों के साथ समन्वय करके केंद्र सरकार को बैचलर्स प्रोग्राम की कई प्रवेश परीक्षाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई राज्यों ने COVID 19 के कारण 12 वीं या समकक्ष परीक्षा स्थगित कर दी है।

अप्रैल 2020 तक अनुसंधान विद्वानों और अन्य छात्रों की सभी लंबित फैलोशिप तुरंत जारी होनी चाहिए। फेलोशिप की अवधि में वृद्धि के साथ शैक्षणिक सत्र के किसी भी विस्तार को दोबारा प्राप्त किया जाना चाहिए, ताकि छात्र के शैक्षणिक कार्य को नुकसान न हो।

सरकार को नि:शुल्क सीखने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए विकलांग छात्रों के लिए एक समग्र योजना की गारंटी देनी चाहिए।

सरकारों को उन छात्रों को सुरक्षित रूप से परिवहन की व्यवस्था करनी चाहिए (आवश्यक परीक्षण के साथ) जो अपने घरों को लौटना चाहते हैं।

बेरोजगारों की सहायता के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम घोषित की जानी चाहिए।

कॉलेज, विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्थान आईडी कार्ड के आधार पर छात्रों को सभी जगहों पर राशन उपलब्ध कराया जाए।

अगले दो वर्षों के लिए सभी शिक्षा ऋणों पर ब्याज माफी के साथ कम से कम छह महीने के लिए शैक्षिक ऋण के भुगतान पर तत्काल रोक लगाई जाए।

आईसा ने कहा, छात्रों पर दमन भी रुके
आईसा ने कहा है कि ऐसे समय में जब एक विस्तृत छात्र कार्य योजना को तत्काल घोषित करने की आवश्यकता है, दिल्ली पुलिस मोदी सरकार के माध्यम से राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर तमाम छात्र कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही है, गिरफ्तारी कर रही है। इससे पहले मोदी सरकार ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ दमनात्मक कार्यवाही की। अब महामारी को साधन बनाते हुए सरकार विशेषकर मुस्लिम समुदाय के छात्रों की आवाज़ को चुप कराने की कोशिश कर रही है। आईसा ने मांग की है कि केंद्र सरकार को प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों को रद्द करना चाहिए और उन्हें तुरंत रिहा करना चाहिए। आईसा नॉर्थ-ईस्ट के छात्रों पर नस्लवादी हमलों की निंदा करता है और संबंधित सरकारों से उन नस्लवाद के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करता है। आईसा ने कहा कि छात्रों-मजदूरों की एकता और एकजुटता को आगे बढ़ाते हुए, हम केंद्र सरकार से यह भी मांग करते हैं कि छात्र राहत कार्य योजना और प्रवासी श्रमिक कार्य योजना की तत्काल घोषणा करें। यह एक ज्ञात तथ्य है कि सरकारी गोदामों में 77 मिलियन टन अनाज होने के बावजूद (खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकता के बफर स्टॉक का तीन गुना), लाखों लोग आज हमारे देश में भूखे हैं।

केंद्रीय ट्रेड यूनियन AICCTU ने ट्रेड यूनियन नेताओं, MLA’s, MP’s, सिविल सोसाइटी और लोगों को 18 व 19 अप्रैल यानी दो दिवसीय भूख हड़ताल करने का आह्वान किया है ताकि केंद्र सरकार का प्रवासी मजदूरों की समस्याओं की ओर ध्यान खींचा जा सके। आईसा ने 19 अप्रैल को 12 घंटे की एकजुटता भूख हड़ताल में शामिल होने के लिए श्रमिक वर्ग के साथ अपनी एकजुटता जताते के लिए छात्रों से अपील भी की है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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