अब देश में बहुत आम बात है कि सरकार पर अगर कोई न्यायाधीश सवाल उठाये तो उसका वहाँ से ट्रांसफर होना तय है या उसके शक्ति को कम कर देना तय है। और फिर दूसरा न्यायाधीश जब आता है तो वो सरकार के लिए काम करने लगता है। ये मैं नहीं कह रहा हूं लोग बता रहे हैं। हाल ही का एक मामला गुजरात हाई कोर्ट का देख लीजिये। इसकी एक बेंच राज्य में कोरोना के हालात पर सरकार से जबरदस्त सवाल किये थे। 22 मई को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की तुलना कालकोठरी से कर दी थी। स्वास्थ्य सेवा की तुलना ‘डूबते टाइटेनिक जहाज’ से की थी।
25 मई को ये भी कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर कोर्ट को अस्पताल के निरीक्षण पर जाना पड़ेगा। साथ ही राज्य सरकार को क्लीन चिट देने से भी मना कर दिया था। लेकिन अब इन सब टिप्पणियों का कोई अर्थ ही नहीं रह गया। जिससे लोगों में थोड़ी बहुत आस बंधी थी। वह खत्म हो गई। मामले पर सुनवाई चल ही रही थी कि 28 मई को हाई कोर्ट का एक नोटिफिकेशन आ गया। हाई कोर्ट की ये बेंच ही बदल गई। पहले जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। अब चीफ जस्टिस विक्रम नाथ ने ये जगह ले ली। जस्टिस परदीवाला इस बेंच के जूनियर जज हो गए।
बात यहीं तक नहीं है कुछ आगे की बात है। बात तब और सवालों के कटघरे में आ गई। कि अब इस बेंच ने यानी गुजरात हाई कोर्ट ने ही कह दिया कि
“केवल सरकार की आलोचना करने से कोविड19 का इलाज नहीं हो जाएगा, ना ही जिनकी मौत हो गयी है, वही वापस आ जाएंगे।
यानी आपको सवाल नहीं करना है सरकारों से।
नई बेंच ने यह भी कहा कि कोरोना महामारी पर सियासत नहीं की जानी चाहिए। अब पता नहीं मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सियासत वाली टिप्पणी किसके लिए किया है – पहले सुनवाई करने वाली बेंच के लिए या किसी सियासी दल के लिए !
यह महज एक संयोग नहीं हो सकता है क्योंकि इससे पहले आपने दिल्ली हाईकोर्ट के जज मुरलीधर के तबादले को देखा था। दिल्ली दंगा मामले में सुनवाई के दौरान जिस दिन जस्टिस मुरलीधर ने बीजेपी नेताओं के भड़काऊ बयान को लेकर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था, उसी दिन देर रात उनको पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट भेज दिया गया था।
खैर आलोचना अब आप नहीं करेंगे शायद भले ही गुजरात में कोरोना मरीजों की कुल संख्या अब कर 16779 हो चुकी है। और मरने वालों का आंकड़ा 1038 हो गया है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली के बाद गुजरात में संक्रमण के मामले ज्यादा है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि गुजरात में मरने वालों की संख्या दिल्ली से लगभग दो गुना और तमिलनाडु से 9 गुना अधिक है। ऐसा क्यों है? अब आपको सरकार से यह सवाल नहीं करनी चाहिए?
क्योंकि नई बेंच ने कोरोना मामले में दायर की गई जनहित याचिका (PIL) पर दोबारा सुनवाई की और इस बार गुजरात सरकार की तारीफों के पुल बांध दिए।
लल्लनटॉप की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा,
‘हमारा संदेश लाउड और स्पष्ट है। जो भी मुसीबत के वक्त में मदद नहीं कर सकते, उनके पास सरकार के कामकाज की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। अगर राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही होती, जैसा कि आरोप लगाया गया है, तो संभावना है कि अब तक हम सब मर चुके होते। इस मुकदमेबाजी में हम केवल राज्य सरकार को जागरूक रखने और उसके संवैधानिक-वैधानिक दायित्व को याद दिलाने का काम कर रहे है।’
कोर्ट ने कहा कि सरकार की केवल कमियां गिनाने से लोगों के मन में डर पैदा होगा। कोर्ट ने कहा,
‘हमारा विचार है कि पीआईएल अकेले और परेशान लोगों के फायदे के लिए है, राजनीतिक फायदा उठाने के लिए नहीं। इस मुसीबत के वक्त में हमें एक रहना है, आपस में झगड़ना नहीं है। कोविड-19 संकट मानवीय संकट है, राजनीतिक नहीं। इसलिए ये ज़रूरी है कि कोई भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करे। कोविड-19 के बारे में अनिश्चितता और इकॉनमी में उसके प्रभाव से ये और भी ज़रूरी हो जाता है कि सरकार नीतियों के नज़रिये से सही काम करे।’
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि
‘इससे कोई मना नहीं कर रहा कि विपक्ष का रोल सरकार की कमियां बताना है, लेकिन इस वक्त आलोचना वाली ज़ुबान की जगह मदद वाले हाथों की ज्यादा ज़रूरत है। केवल सरकार की आलोचना करने से जादुई तौर पर कोविड-19 नहीं जाएगा, इससे मृत लोग भी वापस नहीं आएंगे। प्रतिकूल आलोचना कोई मदद नहीं करेगी, रचनात्मक आलोचना कर सकती है।’
बेंच ने आगे कहा कि कोर्ट सरकार के कामकाज में दखलअंदाज़ी नहीं करेगा, लेकिन अगर सरकार अपना काम करने में नाकाम होगी, तो कोर्ट अपना कदम रखेगा।
आइये जानते हैं कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने क्या कहा था जब बेंच बदली नहीं थी
हाई कोर्ट ने पिछले दिनों कोरोना संक्रमण को लेकर राज्य की विजय रूपाणी सरकार पर सवाल उठाए थे। संक्रमण के मामले पर गुजरात सरकार के कामकाज पर हाई कोर्ट मार्च से लेकर अब तक 11 बार टिप्पणियां कर चुका है। कोर्ट ने कहा था कि आपका सबसे बड़ा अस्पताल काल-कोठरी जैसा है, या उससे भी बदतर है। आप मरीज़ों को इंसान समझिए, जानवर समझकर इलाज न करें। आप अपने अस्पताल को एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल कहते हैं, लेकिन उसमें इलाज का स्तर भी सुधारिए। अगर चीज़ें बेहतर नहीं हुईं, तो हमें अस्पताल के निरीक्षण पर जाना पड़ेगा। ये युद्ध की स्थिति है, धंधा करके मुनाफा करने का वक्त नहीं है। कोर्ट में सरकार ने कहा था कि इतनी सख्त टिप्पणी (काल-कोठरी वाली) नहीं करनी चाहिए थी, इससे अस्पताल में मरीज़ों का मनोबल गिरता है।
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