कोविड-19 महामारी जैसी किसी भी तरह की आपातकालीन या संकट की स्थिति से निपटने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ को 28 मार्च 2020 को शुरू किया गया। अब पीएमओ ने पीएम केयर्स फंड की जानकारी देने से इन्कार कर दिया है। पीएमओ ने कहा है कि यह ‘पब्लिक अथॉरिटी’ नहीं है। बता दें कि आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत यह जानकारी मांगी गई थी। यह आरटीआई एक अप्रैल 2020 को हर्षा कांदुकुरी द्वारा दायर की गई थी। जिसमें ‘पीएम केयर्स फंड’ के गठन और ऑपरेशन को लेकर जानकारी मांगी गई थी।
बेंगलुरु में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में एलएलएम की छात्रा हर्षा ने पीएम केयर्स फंड के ट्रस्ट डीड, और इसके निर्माण और संचालन से संबंधित सभी सरकारी आदेशों, अधिसूचनाओं और परिपत्रों की प्रतियां मांगी थी।
इस आरटीआई पर 29 मई को पीएमओ के पब्लिक इंफोर्मेशन अधिकारी ने यह कहकर खारिज कर दिया है कि “”आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के दायरे में पीएम केयर्स फंड एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है। हालांकि, पीएम केयर्स फंड के संबंध में प्रासंगिक जानकारी वेबसाइट pmcares.gov.in पर देखी जा सकती है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पीएम केयर्स फंड की वेबसाइट पर ट्रस्ट डीड, सरकारी आदेश, नोटिफिकेशन आदि की कोई जानकारी नहीं दी गई है।
वहीं आरटीआई दाखिल करने वाले हर्षा का कहना है कि वह वह पीएमओ के इस फैसले के खिलाफ वैधानिक अपील दायर करेंगी। ”
हर्षा का कहना है कि “पीएम केयर्स फंड का पब्लिक अथॉरिटी नहीं होने से पता चलता है कि इसे सरकार द्वारा कंट्रोल नहीं किया जा रहा है। ऐसे में इसे कौन कंट्रोल कर रहा है? नाम, ट्रस्ट का गठन आदि से लगता है कि यह पब्लिक अथॉरिटी है। ऐसे में यहां पारदर्शिता की साफ कमी दिखाई दे रही है।”
उन्होंने कहा कि बस यह फैसला करते हुए कि यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है और आरटीआई अधिनियम के आवेदन को अस्वीकार करते हुए, सरकार ने इसके चारों ओर गोपनीयता की दीवारों का निर्माण किया है। यह सिर्फ कमी के बारे में नहीं है। पारदर्शिता और निधि के लिए आरटीआई अधिनियम के आवेदन को अस्वीकार करने से, हमें इस बात के बारे में भी चिंतित होना चाहिए कि फंड कैसे संचालित किया जा रहा है। हमें विश्वास और सुरक्षा उपायों की निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में नहीं पता है, ताकि फंड का दुरुपयोग न हो।” उन्होंने कहा कि एक ट्रस्ट के लिए, जो चार कैबिनेट मंत्रियों द्वारा अपनी पूर्व-सरकारी क्षमताओं में बनाया और चलाया जाता है, पब्लिक अथॉरिटी यानी ‘लोक प्राधिकरण’ का दर्जा देने से इनकार करना पारदर्शिता को लेकर सवाल पैदा करता है।
बता दें कि आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के अनुसार, “पब्लिक अथॉरिटी” का अर्थ है किसी भी प्राधिकरण या निकाय या स्व-सरकार की संस्था स्थापित या गठित, – (ए) संविधान द्वारा या उसके तहत; (बी) संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा; (सी) राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा; (डी) उपयुक्त सरकार द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश द्वारा। ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ की परिभाषा में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्वामित्व, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकाय और उपयुक्त सरकार द्वारा प्रदान किए गए धन द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित शामिल हैं।
इससे पहले, 27 अप्रैल को, पीएमओ ने विक्रांत तोगड़ द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन में निधि के विवरण को साझा करने से इनकार कर दिया था। आवेदक ने फंड के संबंध में पीएमओ से 12 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी।
प्रधानमंत्री, पीएम केयर्स फंड के चेयरमैन हैं और रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री इस फंड के ट्रस्टी हैं। यह भी अभी तक साफ नहीं है कि पीएम केयर्स फंड का कैग द्वारा ऑडिट किया जाएगा या नहीं!
पीएम केयर्स बनने के बाद से ही कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियां पीएम केयर्स की पारदर्शिता को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि प्रधानमंत्री बताएं कि पीएम केयर्स फंड से कितने प्रवासी मजदूरों की मदद की गई है।
इससे पहले 13 मई को पीएम कार्यालय ने बताया था कि इस फंड से कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए 3100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय के मुताबिक इन 3100 करोड़ में से 2000 करोड़ रुपए से वेंटिलेटर खरीदे जाएंगे। साथ ही उनमें से 1000 करोड़ रुपए प्रवासी मजदूरों पर खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा लगभग 100 करोड़ रुपए वैक्सीन बनाने के लिए दिए जाएंगे।
पब्लिक अथॉरिटी नहीं, लेकिन, कोर्ट पीएम केयर्स फंड में पैसे जमा करी रहा है
आरटीआई के जवाब में इस फंड को पब्लिक अथॉरिटी नहीं माना है, तो इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया कि किसी आरोपी का ज़मानत याचिका तभी स्वीकार किया जाये जब वो पीएम केयर्स फंड में जमा की गई राशि का रशीद दिखाये। एनडीटीवी की 31 मई की खबर के अनुसार बिहार में जहां शराबबंदी है और शराब पीते या बेचते लोग गिरफ़्तार हुए हैं तो पटना हाई कोर्ट ने ज़मानत का यह नया नुस्ख़ा दिया है कि शराब बरामद होने के हिसाब से राशि जमा कराने की सहमति देने वाले अभियुक्तों को रिहा कर दिया जायेगा, लेकिन आरोपियों को ये पैसा पीएम केयर्स फंड में जमा करना होगा।
30 मार्च की लाइव लॉ की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 से राहत के लिए प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपातकालीन राहत (पीएम केयर्स) फंड में स्वैच्छिक योगदान करने के लिए रजिस्ट्री के अधिकारियों से अपील की है।
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