पढ़िए टीवी जर्नलिस्ट परमेंद्र मोहन के फेसबुक वाल से चुनाव परिणाम को लेकर यह लेख
आज काउंटिंग है यानी वो दिन जब हम मीडियावालों को सांस लेने की भी सुबह से रात तक फुर्सत नहीं मिलती है, एकदम इलेक्ट्रिफाइंग माहौल होता है न्यूज़रूम का, स्टूडियो का और हम पत्रकार चाहे कितना भी चुनाव कवरेज़ कर चुके हों, हर चुनाव की मतगणना एक नया अनुभव होती है, तो कल एक नए अनुभव की तैयारी है। वैसे तो तस्वीर चंद घंटों बाद सामने आ ही रही है, लेकिन हर विचारधारा वाले मित्रों से कुछ ज़रूरी बात…किसी की जीत हो या हार हो, लोकतंत्र की जीत और जनादेश का सम्मान ज़रूर करें। दूसरी बात ये कि नतीजे एग्ज़िट पोल के मुताबिक आ भी सकते हैं और नहीं भी आ सकते हैं, तो लोकतंत्र के महापर्व के आखिरी जश्न में दोनों स्थितियों को इन्जॉवय करने का मूड बनाकर टीवी या मोबाइल पर लाइव टीवी के सामने बैठें।
अनुमान की बात करें तो बीजेपी का सबसे बड़ी पार्टी बनना तय मानें और 36 दलों के विशालकाय गठबंधन यानी एनडीए का सीटों के मामले में भी सबसे बड़ा होना भी तय समझें। एग्ज़िट पोल की मानें तो सरकार बनने की स्थितियां बीजेपी के सबसे अनुकूल दिख रही है, वजह ये कि अगर अकेले दम बहुमत में आती है तब तो कहानी साफ है ही, अगर एनडीए के दम पर भी बहुमत मिला तो भी सरकार तय है, अगर एनडीए को बहुमत न मिला तो भी जुगाड़ सरकार में वाईएसआर की पार्टी और नवीन पटनायक की पार्टी का समर्थन तय मानें और इससे भी नीचे आए तो भी यूपीए से आगे रहना तय है। इस स्थिति में जो गैर एनडीए-गैर यूपीए क्षेत्रीय दलों से सौदेबाज़ी होगी, जिसमें जीत उसी की होनी है, जिसके पास धनबल होता है और बीजेपी को इस फील्ड में कोई चुनौती नहीं है। इसलिए मोदी समर्थक टेंशन फ्री होकर नतीजों का लुत्फ उठाएं क्योंकि आएगा तो मोदी ही..के नारे के साकार होने में कंफ्यूज़न की गुंजाइश नहीं के बराबर है।
अब उनकी बात, जो दोबारा मोदी सरकार नहीं चाहते, तो ऐसा सिर्फ एक सूरत में दिख रहा है कि नतीजे बिल्कुल सत्ता विरोधी लहर की तरह आए, जिसमें एनडीए 220 के आसपास सिमट जाए..अगर ऐसी उम्मीद इस पक्ष को दिख रही हो तो नतीजों का पूरा आनंद वो उठा सकते हैं।
अब उनकी बात जिनकी प्रतिबद्धता देश से है, लोकतंत्र से है, किसी पार्टी या विचारधारा से नहीं..तो वो न किसी की जीत की खुशी मनाने वाले हैं न किसी की हार का मातम..उनपर शिवमंगल सिंह सुमन की इस कविता की पंक्तियां सटीक बैठती हैं
..क्या हार में क्या जीत में..किंचित नहीं भयभीत मैं..संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही..वरदान माँगूँगा नहीं।
और चलते-चलते उनकी भी बात..जो न उधो से लेना..न माधो को देना..कोई आए..कोई जाए..वाले मोड में रहते हैं। ये उन तीस-चालीस फीसदी में शामिल लोग हैं, जो देश में कभी भी मतदान फीसदी सौ फीसदी नहीं पहुंचने देते। ये लोग नतीजों को वैसे ही देखते हैं जैसे क्रिकेट का मैच..जैसे मैच के दौरान…स्कोर क्या है..अच्छा…खेल कौन रहा अभी…वैसे ही काउंटिंग के दिन…अरे हां…आज तो काउंटिंग हो रही होगी…कौन जीत रहा है..तो अपने हर तरह के मित्रों को शुभकामनाएं।
नोटः प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैं। किसी भी आपत्ति के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।
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