किसान आंदोलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है और आज किसान आंदोलन का 17वां दिन है। सरकार से बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकल पाया है। अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, जिसमें किसानों की ओर से कहा गया है नए कानून ‘अवैध और मनमाने’ हैं। कृषि क्षेत्र को निजीकरण की ओर धकेलने वाले हैं। नए किसानों को बिना किसी सही चर्चा के पास किया गया। कानून पास होने के बाद सरकार ने चर्चा की है, लेकिन सरकार से साथ सभी मुलाकातें बेनतीजा निकलीं। इसके अलावा कृषि कानून पर पुरानी याचिकाओं को भी जल्द सुना जाए।
दूसरी तरफ हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि अगर वह किसानों को केंद्र सरकार से एमएसपी की गारंटी केंद्र से नहीं दिला पाते हैं तो अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। दरअसल दुष्यंत चौटाला जननायक जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अभी बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं। जबकि बीजेपी सरकार की ओर से ये बार बार कहा जा रहा है कि एमएसपी खत्म नहीं होगी।
किसान संगठनों की ओर से जो रणनीति बनाई गई है उससे ये साफ जाहिर हो रहा है कि ये आंदोलन एक बड़ा रूप लेने वाला है। 12 दिसंबर से किसान दिल्ली-जयपुर हाईवे, दिल्ली आगरा एक्स्प्रेसवे का भी घेराव करने वाले हैं। किसान संगठनों की ओर से कहा गया है कि वे 14 दिसंबर को सभी ज़िला मुख्यालयों का घेराव करेंगे। उससे पहले 12 तारीख़ को दिल्ली-जयपुर हाईवे, दिल्ली आगरा एक्स्प्रेसवे को बंद किया जाएगा और एक दिन के लिए पूरे देश के टोल प्लाज़ा फ्री कर दिए जाएंगे।
अंबानी अडानी को लेकर भी किसानों में काफी आक्रोश है। किसान नेताओं की ओर से कहा गया है कि रिलायंस के जितने भी प्रॉडक्ट्स हैं, सभी का हम बायकॉट करेंगे। रिलायंस का सामान नहीं खरीदेंगे। इन सबका सरकार पर ही नहीं बल्कि देश पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि इससे आर्थिक नुकसान ज्यादा होगा। किसान आंदोलन में सिर्फ एक ही बात कही जा रही है कि देश अंबानी अडानी के हाथों में बेचा जा रहा है। किसानों के मन में एक डर है कि ये कानून आने के बाद किसान सड़क पर न आ जाए।
किसान आंदोलन में उठी कई आवाजें
वैसे तो बहुत कोशिश की गई किसान आंदोलन को बदनाम करने की, उसमें फुट डालने और तोड़ने की भी कोशिश की गई, पर सब नाकाम रहा। कभी किसानों को खालिस्तानी बताया गया तो कभी पाकिस्तान से फंडिग के आरोप लगे। ये तक कहा गया कि बॉर्डर पर 100 रूपये लेकर लोगों को बैठाया गया है। पर इन सबका असर किसान आंदोलन पर नहीं पड़ा। किसानों की ओर से एकता और भाईचारे के सबूत समय समय पर मिलते रहे हैं। दरअसल 10 दिसंबर को टिकरी बॉर्डर पर किसानों की ओर से देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार उमर खालिद, शरजील इमाम, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव समेत अन्य लोगों को पोस्टर्स दिखाए गये और उनकी रिहाई की मांग की गई।
अब इस पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर रह रहे हैं हम किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन किसानों की मांग एमएसपी हो सकती है, कानूनों के प्रावधान हो सकते हैं, पर ये किसानों की मांग कैसे हो सकती है? तो क्या अब देश का किसान किसी मुद्दे पर अपनी राय नहीं रख सकता? सरकार का पिछले 6 सालों में जो रवैया रहा है उससे सभी लोग वाकिफ़ हैं। लोगों को समझ आ गया है कि सरकार आवाज दबाने की कोशिश कर रही है, लोकतंत्र को कुचल रही है, संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। एक पोस्ट लिख देने पर देशद्रोही घोषित कर देती है। मुकदमें करवा देती है तो फिर वो किसी भी तरह का फरमान जारी कर सकती है इसलिए किसान कृषि कानूनों में संशोधन नहीं चाहते हैं बल्कि उनका कहना है कि अब तभी घर वापस जाएंगे जब ये कानून सरकार वापस ले लेगी।
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