मैं एक पत्रकार की हैसियत से कभी रिपोर्टिंग तो कर लेता हूँ मगर सबसे पहले मैं इंसान हूँ। सही गलत की चादर ओढ़ने का फर्क मुझे पता लगाना काफी आसान सा लगता है। मैं जानता हूँ जब मैं जो लिखने जा रहा हूँ ऐसा कुछ लिखूंगा तो लोग खासकर भक्त और किसके भक्त बताने की जरूरत नहीं है बिलबिला उठेंगे। मैं कभी उन्हें भक्त की संज्ञा देना उचित नहीं समझता था। मैं कभी लेफ्ट राइट के चक्कर मे पड़ना उचित नहीं समझता था लेकिन मैं आज जवाब दे रहा हूँ। बहुत ही सीरियस और मार्मिक प्रश्न है आप अगर समझ सकें तो ही कमेंट कीजियेगा।
मैंने इससे पहले अपने पत्रकारिता के दौर में काफी कुछ देख लिया है भी तो मोदी की ही सरकार तो मोदी की ही बात करूंगा। मैं शाहीन बाग, जेएनयू तमाम मामलों को काफी करीब से देखता आया हूँ, आरोप प्रत्यारोप और हिंसा तीनों का खेल कितना करीब से खेला गया यह सब लिख चुका हूँ। लेकिन मैंने जो कहा वह एक पिक्चर की तरह आदतन आपके दिमाग और दिल पर असर नहीं डालेगी क्योंकि मैंने जो कहा उसे आप हर दिन केवल आरोप के रूप में लेना सीख गए हैं।
मुझे किसी से न तो दुश्मनी है और न ही किसी से ज्यादा दोस्ती। आप अगर सच बोलोगे, आप अगर अहिंसक होंगे और आप अगर तर्क के साथ बात करोगे तो ही मैं आपकी सुनूंगा। और दिखाऊंगा तभी जब उसका असर पॉजिटिव हो आपको तब ही मैं भड़काऊंगा जब वह भड़काना अहिंसक हो और उससे कुछ बदलाव आए।
लेकिन मैं मोदी सरकार के लिये या उनके सपोर्टर्स को अगर उनके डिक्शनरी में लेफ्टिस्ट दिखता हूँ तो हूँ। दंगाई दिखता हूँ तो हूँ। उकसाने वाला दिखता हूँ तो हूँ। मैं आपके लिए सब कुछ हूँ आतंकवादी, खालिस्तानी, वामपंथी, नक्सलवादी जो जो कहना हो कह लीजिए। लेकिन यह सिर्फ इसलिए सुनूंगा क्योंकि आप कह रहे हैं और आप समझ रहे हैं कि मैं कौन हूँ फिर भी आप बोल रहे हैं और इसलिए ही शायद लिख रहा हूँ कि मैं क्या हूँ यह आपको बताने की जरूरत नहीं है। मैं क्या हूँ यह मेरा धर्म जानता है जिस पर मैं चलता हूँ। वह धर्म और कर्तव्य किसी हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई वाला धर्म नहीं है बल्कि इंसानियत वाला धर्म है।
यह सरकार खून की नदियां ही बहा रही है जब से आई है आखिर किसी परिवार का सदस्य अगर मर जाए और उसका रीजन हो कि वह परिवार से कुछ अपने अधिकार मांग रहा था तो उसकी हत्या का दोषी तो परिवार ही होगा उसी तरह इस सरकार की प्रजा कर दुखों और उनकी हत्याओं का दोषी सरकार ही है। हर सरकार न जाने कितनी खूनों से सनी होती है। लेकिन इस सरकार में तो मैंने प्रत्यक्ष देख लिया है।
कुछ कांड हैं- दिल्ली दंगा, जेएनयू हिंसा, किसान आंदोलन, तमाम बलात्कार, यानी प्रजा के साथ जो जो हुआ। इससे पहले से इस पर गुजरात मे तमाम आरोप लगे ही हैं।
लेकिन आप को यह सब लिखकर बताने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि इस सरकार के राज में एक खुलासा बड़ा आम से हुआ है रातों रात सिंघू बॉर्डर पर एक शख्स पकड़ा गया उसने बताया है कि
किसानों की हत्या की प्लानिंग पुलिस वाले से कैसे हुई?
4 किसानों को 26 से पहले स्टेज पर मार देना था आतंक की यह वारदात कोई और नहीं बल्कि उसके शब्दों में गरीब लड़कों और लड़कियों के सहारे दिल्ली दहलाना था, दिल्ली का दूसरा बड़ा दंगा करने का मन था। पुलिस की सहायता कैसे मिली यह जांच का नहीं विषय है यह अपने मन मे चल रहे पुरानी पिक्चर्स की रील को साफ करने का समय है। मैं कहूंगा कि यह जालियां वाला बाग था तो आपको विश्वास नहीं होगा आप खुद देख लीजिए सुन लीजिए, वीडियो वायरल है ज्यादा जानना है तो लिंक भी नीचे शेयर कर रहा हूँ देख लीजिए-
यह दंगा करवाना 26 को यह दिखाना था कि इस गुलामी में हम तानाशाह कैसे आवाज दे सकते हैं और इन्हें दिखा सकते हैं कि हम कौन हैं और ये कौन हैं ?
हम तो बीच के ठहरे किसानों से भी डांट खा लेते हैं जब हम सरकार की भाषा मे सवाल दाग देते हैं और अगर हम यह सवाल उनकी भाषा में कर लें तो हम सरकार की जेल में डाल दिये जाते हैं।
लेकिन यह इतिहास जो लिखा जा रहा है इतिहासकारों सावधान!
हम तुम्हारे काले इतिहास को राख कर देंगे वरना सच लिखकर दिखाओ। किसी से डरो नहीं और यह साबित कर दो कि इस तानाशाह के आगे कलम की ताकत तबभी उतनी ही रहती है जितना उसका अंगूठा काट देने के बाद भी।
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