SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

एक बदरिया

तस्वीरः गूगल साभार

आयी आयी मोर नगरिया

झूठ बोलती एक बदरिया

गड़ गड़ की ध्वनि रही सुनाती

पर न बरसी वो इह डगरिया ।

 

छायी बनकर घुँघराली सी

लगती कितनी मतवाली सी

कजरारे से नयन दिखाकर

सज घजकर वह चली सँवरिया ।

 

बदरों के संग रही घूमती

शुभ्र – ज्योति सी ओढ़ चुनरिया

भरने चली सलिल सागर तट

कर में रीती लिये गगरिया ।

 

जन जन में है आस जगायी

पानी अंजुली भर न लायी

इठलाती वह रही शशी से

बिन बरसे ही उड़ी बदरिया ।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

डॉ रीता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर, एनकेबीएमजी (पीजी) कॉलेज , चन्दौसी, उत्तर प्रदेश।

1 Comment on "एक बदरिया"

  1. संदीप नाथ | October 16, 2019 at 7:15 PM | Reply

    वाह … सुन्दर …

Leave a comment

Your email address will not be published.


*