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हम देशी हैं साहब 

जब सरकारी कर्मचारियों की छंटनी हो रही हो ,

दिनोंदिन

चुपचाप

बिना कोई शोर

जब सरकारी कम्पनियां बंद कराई जा रही हैं जबरन

मुनाफे के बावजूद ,

दिनोदिन

चुपचाप

बिना कोई शोर

और

दूसरी ओर ठीक

इसी समय

कॉर्पोरेट कर में छूट !

लूट नही तो क्या है ?

 

कांवड़ की आड़ में

गंगा की किवाड़ में

अच्छे दिन की बाढ़ में

पूंजीवाद की आषाढ़ में …

 

बह मत जाना

कह मत जाना

कि

हम इसके खिलाफ हैं …

 

हम देशी हैं साहब

अपने ही देश मे …

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

डॉ ज्ञान प्रकाश
असिंस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

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