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poem by divesh


कविताः अनाथ है, फिर भी खुश है

न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा।   न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…