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मनीला पहुंचे रवीश कुमार ने रैमॉन पुरस्कार लेने से पहले क्या कुछ कहा, जानिए

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एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार एशिया के नोबेल कहे जाने वाले रैमॉन पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए फ़िलीपींस की राजधानी मनीला पहुंचे और वहां रैमॉन मैगसेसे के मंच से बात रखी। बता दें कि 9 सितंबर को रवीश को इस सम्मान से नवाज़ा जाएगा। भारतीय समयानुसार दोपहर दो बजे उन्हें यह सम्मान दिया जाएगा। अमूमन सामाजिक कार्यों के लिए दिए जाने वाला ये पुरस्कार रवीश की सामाजिक पत्रकारिता को रेखांकित करता है। इस पुरस्कार से नवाज़े जाने वाले रवीश पहले हिंदी पत्रकार हैं। 1996 से रवीश कुमार एनडीटीवी से जुड़े रहे हैं। शुरुआती दिनों में यहां वे चिट्ठियां छांटने का काम करते थे।

मनीला पहुंचे रवीश ने कहा कि गौरव के इस क्षण में मेरी नज़र चांद पर भी है और ज़मीन पर भी, जहां चांद से भी ज़्यादा गहरे गड्ढे हैं। दुनियाभर में सूरज की आग में जलते लोकतंत्र को चांद की ठंडक चाहिए। यह ठंडक आएगी सूचनाओं की पवित्रता और साहसिकता से, न कि नेताओं की ऊंची आवाज़ से। सूचना जितनी पवित्र होगी, नागरिकों के बीच भरोसा उतना ही गहरा होगा। देश सही सूचनाओं से बनता है। फेक न्यूज़, प्रोपेगंडा और झूठे इतिहास से भीड़ बनती है। रैमॉन मैगसेसे फाउंडेशन का शुक्रिया, मुझे हिन्दी में बोलने का मौका दिया, वरना मेरी मां समझ ही नहीं पातीं, कि क्या बोल रहा हूं। आपके पास अंग्रेज़ी में अनुवाद है और यहां सब-टाइटल हैं।

कैसे मिली पुरस्कार के बारे में उन्हें जानकारी

रवीश ने इस खुशखबरी का वाकया बताते हुए कहा, ‘दो महीने पहले जब मैं ‘प्राइम टाइम’ की तैयारी में डूबा था, तभी सेलफोन पर फोन आया. कॉलर आईडी पर फिलीपीन्स फ्लैश कर रहा था. मुझे लगा कि किसी ट्रोल ने फोन किया है। यहां के नंबर से मुझे बहुत ट्रोल किया जाता है। अगर वाकई वे सारे ट्रोल यहीं रहते हैं, तो उनका भी स्वागत है, मैं आ गया हूं’। ख़ैर, फिलीपीन्स के नंबर को उठाने से पहले अपने सहयोगियों से कहा कि ट्रोल की भाषा सुनाता हूं। मैंने फोन को स्पीकर फोन पर ऑन किया, लेकिन अच्छी-सी अंग्रेज़ी में एक महिला की आवाज़ थी, “May I please speak to Mr Ravish Kumar…?” हज़ारों ट्रोल में एक भी महिला की आवाज़ नहीं थी’।

रवीश कुमार ने आगे कहा, ‘मैंने फोन को स्पीकर फोन से हटा लिया। उस तरफ से आ रही आवाज़ मुझसे पूछ रही थी कि मुझे इस साल का रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार दिया जा रहा है। मैं नहीं आया हूं, मेरी साथ पूरी हिन्दी पत्रकारिता आई है, जिसकी हालत इन दिनों बहुत शर्मनाक है। गणेश शंकर विद्यार्थी और पीर मूनिस मोहम्मद की साहस वाली पत्रकारिता आज डरी-डरी-सी है। उसमें कोई दम नहीं है।

रवीश कुमार के भाषण की ख़ास बातें-

मनीला पहुंचकर रवीश ने एक पब्लिक लेक्चर भी दिया। उन्होंने कहा कि यह समय नागरिक होने के इम्तिहान का है। नागरिकता को फिर से समझने का है और उसके लिए लड़ने का है। एक व्यक्ति और एक समूह के तौर पर जो इस हमले से ख़ुद को बचा लेगा वही नागरिक भविष्य के बेहतर समाज और सरकार की नई बुनियाद रखेगा। नागरिकता के लिए ज़रूरी है कि सूचनाओं की स्वतंत्रता और प्रामाणिकता हो। आज स्टेट का मीडिया और उसके बिज़नेस पर पूरा कंट्रोल हो चुका है. मीडिया पर कंट्रोल का मतलब है, आपकी नागरिकता का दायरा छोटा हो जाना। मीडिया अब सर्वेलान्स स्टेट का पार्ट है. वह अब फोर्थ स्टेट नहीं है, बल्कि फर्स्ट स्टेट है।

मीडिया की भाषा में दो तरह के नागरिक हैं – एक, नेशनल और दूसरा, एन्टी-नेशनल. एन्टी नेशनल वह है, जो सवाल करता है, असहमति रखता है।

कश्मीर में कई दिनों के लिए सूचना तंत्र बंद कर दिया गया। सरकार के अधिकारी प्रेस का काम करने लगे हैं और प्रेस के लोग सरकार का काम करने लग गए। क्या आप बग़ैर कम्युनिकेशन और इन्फॉरमेशन के सिटिज़न की कल्पना कर सकते हैं…? क्या होगा, जब मीडिया, जिसका काम सूचना जुटाना है, सूचना के तमाम नेटवर्क के बंद होने का समर्थन करने लगे, और वह उस सिटिज़न के खिलाफ हो जाए। यह उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के सारे पड़ोसी प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में निचले पायदान पर हैं. पाकिस्तान में तो एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी है, जो अपने न्यूज़ चैनलों को निर्देश देता है कि कश्मीर पर किस तरह से प्रोपेगंडा करना है. कैसे रिपोर्टिंग करनी है। इसे वैसे तो सरकारी भाषा में सलाह कहते हैं, मगर होता यह निर्देश ही है। उन्हें बताया जाता है कि कैसे 15 अगस्त के दिन स्क्रीन को खाली रखना है, ताकि वे कश्मीर के समर्थन में काला दिवस मना सकें। जिसकी समस्या का पाकिस्तान भी एक बड़ा कारण है।

जब ‘कश्मीर टाइम्स’ की अनुराधा भसीन भारत के सुप्रीम कोर्ट जाती हैं, तो उनके खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया कोर्ट चला जाता है। यह कहने कि कश्मीर घाटी में मीडिया पर लगे बैन का वह समर्थन करता है। मेरी राय में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और पाकिस्तान के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी का दफ्तर एक ही बिल्डिंग में होना चाहिए।

गनीमत है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कश्मीर में मीडिया पर लगी रोक की निंदा की और प्रेस कांउंसिल ऑफ इंडिया की भी आलोचना की।

आज कोई लड़की कश्मीर में ‘बगदाद बर्निंग’ की तरह ब्लॉग लिख दे, तो मेनस्ट्रीम मीडिया उसे एन्टी-नेशनल बताने लगेगा।

मेनस्ट्रीम और TV मीडिया का ज़्यादतर हिस्सा गटर हो गया है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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