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मोदी के 4 सालः वादों और दावों से हकीकत बहुत अलग

नई दिल्ली। लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत बात ये है की जनता के प्रति सरकार को जवाबदेह होना ही पड़ता है। राजनैतिक पार्टियां भले ही सरकार में होते हुए जनता के साथ किए गए वादों और दावों को नजरअंदाज कर लें, लेकिन चुनाव के समय और जनता के बीच उन्हें अपना प्रदर्शन जाहिर करना ही पड़ता है। जब राजनैतिक दल सत्ता से बेदखल होते हैं तो सत्ता का सुख पाने के लिए वे चुनाव के दौरान बड़े-बड़े दावे करते हैं, जनता की दशा और दिशा बदलने का वादा करते हैं। जनता उनपर भरोसा करती है तो वो सत्ता पर काबिज भी होते हें लेकिन अगर वादे और हकीकत में अंतर हो तो निराशा का होना भी स्वाभाविक है। ऐसे में मौजूदा केंद्र सरकार की अगर बात करें तो सत्ता पर काबिज होने से पहले सरकार ने जनता के सामने तत्कालीन सरकार के पिछले सत्तर सालों की आलोचना के दम पर और नए भारत के सपने को जनता की आंखों में बसाकर पूर्ण बहुमत का सुख हासिल किया। सरकार के 4 सालों के बाद अब मोदी सरकार के रिपोर्ट कार्ड भी लोगों के सामने पेश किए जा रहे हैं तो ऐसे में कुछ बड़े दावों और हकीकत पर जानते हैं कुछ सच्चाईः
सबका साथ,सबका विकासः मोदी सरकार के चुनावी भाषणों का स्लोगन था सबका साथ, सबका विकास। ऐसे में सरकार ने क्या वास्तव में इस विचार पर अमल किया या फिर सिर्फ एक लोकलुभावन नारा था। मोदी सरकार में दलितों को लेकर आंदोलन बढ़ें हैं, गो रक्षा के नाम पर हो जातियों का अपना एक अधिकार संघर्ष, मोदी सरकार इस सवाल पर घेरे में आई है,यहां तक की उनके गृह राज्य गुजरात में भी इस बात का उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। किसान की अगर बात करें तो अपने शुरुआती दिनों में ही मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक की बात कही थी जिससे किसानों में गहरा असंतोष फैल गया था और किसान सड़कों पर उतर आए थे। उसके बाद महाराष्ट्र में किसान आंदोलन, तमिलनाडु के किसानों का दिल्ली में प्रदर्शन आदि ऐसे बड़ें उदाहरण हैं जो ये साबित करते हैं की मोदी सरकार ने किसानों से जो वादे किए थे वो इससे संतुष्ट नहीं हैं।

रोजगार और हकीकतः मोदी ने चुनाव प्रचार के दिनों में हर सभा में युवाओं का मुद्दा उठाया था, अपनी सरकार को युवाओं की सरकार का दावा भी किया था। उन्होंने कहा था की अगर हम सत्ता में आए तो हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करेगे लेकिन हकीकत में मोदी सरकार ने इस देश के युवाओं को इस मामले पर छला और औसतन 4 लाख रोजगार प्रतिवर्ष ही मुहैया करा सकी। इसके बाद रोजगार के मसले पर नोटबंदी और अनियोजित जीएसटी की मार से सरकार ने छोटे और असंगठित रोजगार के साधनों को नुकसान भी पहुंचाया। वहीं ऑक्सफैम की रिपोर्ट पर नजर डालें तो स्थिति साफ होती हैं कि किस तरह से मोदी सरकार में अमीर और अमीर होता गया और गरीब और ज्यादा गरीब होता गया। छोटे-छोटे रोजगार और जमीनी स्तर पर रोजगार मुहैया कराने का मोदी सरकार का दावा हकीकत से कोसों दूर है और आदर्श गांव , स्मार्ट सिटी सहित तमाम योजनाएं सार्थक साबित नहीं हो रही हैं। स्मार्ट इंडिया, स्किल इंडिया जैसी योजनाएं भी कुछ खास कारगर साबित नहीं हुई हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने कई दिशाओं में ठोस कदम उठाने की कोशिश जरूर की है, लेकिन वो ठोस कदम कारगर साबित नहीं हुए हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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