सामजिक सांस्कृतिक संस्था अलग दुनिया ने जनवादी लेखक संघ (जलेस) की वेबसाइट पर अपने घोषणापत्र में दर्ज हरिजन शब्द पर घोर आपत्ति दर्ज करते हुये कहा है कि भारत सरकार को ऐसे संगठन के खिलाफ इस शब्द के प्रयोग के कारण कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।

घोषणा पत्र
क्या है जलेस
जनवादी लेखक संघ (जलेस) भारत के हिंदी और उर्दू लेखकों का एक बडा संगठन है और इसकी प्रांतीय एवं जिला स्तर तक की इकाइयां सक्रिय हैं। देश के कई जाने माने लेखक मसलन उदय प्रकाश, इब्बार रब्बी, विष्णु नागर, चंद्रबली सिंह आदि संगठन के सक्रिय सदस्य रहे हैं। जलेस की स्थापना 1982 में की गई थी और उसके बाद से यह सांस्कृतिक एवं साहित्यक मोर्चे पर निरंतर काम करता रहा है और लेखकों के बीच वैचारिक मसलों को समय समय पर उठाता रहा है (विकिपीडिया)
हो रही आलोचना
अलग दुनिया के महासचिव केके वत्स ने आज एक प्रेस विज्ञप्ति में अपना बयान जारी करते हुये कहा कि यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि वामपंथी विचारधारा का यह संगठन पिछले 35 वर्षों से अपने संघठन के घोषणापत्र में इस शब्द का इस्तेमाल कर रहा है। देश के वरिष्ठ साहित्यकर इसके कर्ताधर्ता हैं।
इस संबंध में दिल्ली से वरिष्ठ दलित साहित्यकार मोहनदास नैमिषाराय का कहना है कि यह आपराधिक कृत्य हैं, केस दर्ज हो जिससे ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भविष्य में कोई न कर सके।
आगरा से वरिष्ठ दलित साहित्यकार मलखान सिंह ने इसकी कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने कहा कि ये वामपंथी संगठनों के जातिवादी चरित्र को दिखाता है। दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो हंसराज सुमन का कहना है कि केरल में जब दलित शब्द पर भी आपत्ति है तो हरिजन शब्द का इस्तेमाल क्यों। ये तो गलत और घोर निंदनीय है। हिन्दी की प्रसिद्द पत्रिका मंतव्य के संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय का कहना है कि जलेस के सारे पदाधिकरियों को एक हफ्ते के लिये सफाई कार्य कराना चाहिये, तभी ये दलित होने के दंश को समझ पायेंगे। अलग दुनिया इसके खिलाफ देशव्यापी अभियान चलायेगा, यदि जलेस ने हफ्ते भर में दलित समुदाय से सार्वजनिक माफी नहीं मांगती।

Be the first to comment on "हरिजन शब्द पर है आपत्ति, हो कार्रवाई"