-पूजा श्रीवास्तव
कोई भी भाषा या बोली संप्रेषण स्थापित करने का एक माध्यम मात्र होता है। पर, आजकल हम इक्कीसवी शताब्दी में होने के कारण मातृ भाषा में बात करने वालों को थोड़ा कम महत्व देते हैं। इसका कारण क्या है यह ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।
मातृ भाषा का सच
खुद की बात करूँ तो यह सवाल बचपन से मेरे मन में है। स्कूल में हिंदी में बात करने पर दंड लगाया जाता था, ये अलग बात है कि वो पाँच रूपए का ही होता था वो भी महज तीसरी कक्षा में। हम बच्चे एकदूसरे से बात करने में हिचकिचाने लगे, क्योंकि बचपन औपचारिकता नहीं समझ पाता और अपनेपन की भाषा मातृ भाषा ही होती है।
स्कूल तो बाद की बात है आजकल मां भी अपने बच्चों को बचपन से ही टुकड़ों में अंग्रेजी सिखाती दिखती हैं। एक बार आईएएस की कोचिंग के लिए एक इंस्टिट्यूट में मेरा जाना हुआ। एक शिक्षक ने पूछा हिंदी माध्यम है या इंग्लिश। फिर खुद ही जवाब भी दे दिया कि हिंदी माध्यम वालों के लिए चान्स कम होगा। हालांकि मेरा माध्यम परीक्षा में तो अंग्रेजी है, लेकिन यह पूरी बात अटपटी लगी।
क्या कहते हैं आंकड़े
संविधान ने 22 भाषाओं को मान्यता दी है जो इस प्रकार हैं: असमी, बंगाली, गुजरती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलगु, बोडो, उर्दू, संथाली, मैथली, डोगरी।
सेन्सस के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 96.71 फीसद लोगों की मातृ भाषा इन्ही 22 भाषाओं में से एक है। यह कहा जाता है कि कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बदले वाणी। भारत में कुल 19500 मातृ भाषाएं बोली जाती हैं। इसमें से 121 भाषाएं ही सिर्फ ऐसी हैं जो 10,000 से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती हैं। इस 121 भाषा में संविधान के आठवी अनुसूची की 22 भाषाएं भी शामिल हैं।
मेरे समझ से किसी अन्य भाषा से अधिक महत्वपूर्ण मातृ भाषा है। मातृ भाषा हमारे अस्तित्व से जुड़ा होता है। यह आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करता है। जिनमें आत्म विश्वास की कमी होती है, वह ही भाषा की दो नाव पर सवार होकर, जिस भाषा के उपयोग में वे सहज होते हैं उसको छुपाने और जिस भाषा को नहीं जानते उसको सीखने में ही समय बिता देते हैं। इससे पूरे देश के ज्ञान उत्पादक क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
ग्यारहवीं हिंदी विश्व सम्मलेन विदेश मंत्रालय द्वारा मॉरीशस सरकार के सहयोग से 18-20 अगस्त 2018 तक मॉरीशस में आयोजित किया जा रहा है। हिंदी भाषा के तो अब अच्छे दिन आ रहे है। भाषा को संयुक्त राष्ट्र तक स्वीकृति दी जा चुकी है। जुलाई से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी बुलेटन साप्ताहिक शुरू किया गया है। यह देश के लिए गौरव की बात है।
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