दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) दिल्ली से एमए पास प्रभाकर दिल्ली में ही रहकर एमफिल/पीएचडी की तैयारी कर रहा है। होली के अवसर पर दिल्ली से उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अपने गांव बेलवाडाड़ गया हुआ था कि 17 मार्च को थाना कलवारी के एसओ ने गाली गलौज करते हुए मारा पीटा और थाने में ले जाकर बंद कर दिया। मारपीट की वजह छात्र के घर की पुरानी दुश्मनी बताया जा रहा है जिसका फायदा लेते हुए दुश्मनों की निशानदेही पर ऐसा किया गया। इसको लेकर प्रभाकर की ओर से तमाम पुलिस के अधिकारियों को दारोगा के खिलाफ शिकायत भी दिया गया है।
गौरतलब हो कि छात्र प्रभाकर 17 मार्च को शाम 8 बजे स्कूटी से सब्ज़ी लेने कलवारी बाज़ार गया था। सब्ज़ी लेने के बाद स्कूटी को गायघाट जाने वाली सड़क की दक्षिणी पटरी पर फल वाले ठेले के बग़ल खड़ी करके बसंत हलवाई की दुकान पर चला गया। वह मिठाई की दुकान पर पहुंचा ही था कि इतने में एसओ कलवारी की गाड़ी स्कूटी के बग़ल आकर रुकी। एसओ कलवारी जयप्रकाश दूबे पुलिसिया रोब में गाली गलौज करते हुए कहने लगे कि यह स्कूटी किसकी है। प्रभाकर जब तक कुछ समझ पाता तब तक उसका मोबाइल छीन लिया और धक्का देकर गाड़ी में बिठा लिया। इसके बाद छात्र को काफी मारा पीटा भी गया। घटना के बाद से छात्र काफी डरा सहमा है।
सवाल यह उठता है कि गाड़ी के सभी आवश्यक कागजात पूरे होने के बाद भी अचानक ऐसा कैसे एसओ कलवारी ने किया। देर रात तक खबर मिलने के बाद किसी तरह घर से प्रभाकर के पिता डॉ. प्रेम नारायण थाने पर पहुंचे। तब जाकर प्रभाकर ने रोते हुए अपनी आपबीती बताई। पिता के एसओ कलवारी से यह पूछने पर कि ऐसा क्यों किया गया दारोगा ने खुद कहा कि आरटीआई करके पुलिस को परेशान करने की वजह से उन्होंने ऐसा किया। इसकी जानकारी एसपी बस्ती को देने के बाद भी एसओ कलवारी ने पुलिस कस्टडी में प्रभाकर को दूसरे दिन तक रखा रहा।
फोरम4 को मिली जानकारी के मुताबिक प्रभाकर के घर में प्रधान सरोज से पुरानी रंजिश है जिसमें दोनों पक्षों की ओर से कई मुकदमें भी चल रहे हैं। प्रभाकर के पिता का कहना है कि प्रधान सरोज जबरदस्ती गलत तरीके से फर्जी मुकदमा दर्ज करके उनके घर वालों को परेशान करता रहता है। इसी क्रम में थाने से मिलीभगत में इस घटना को भी अंजाम दिया गया।
पुलिस कस्टडी में 18 मार्च को मोटरसाइकिल पर प्रभाकर को बिना हेलमेट दिनदहाड़े मेडिकल भी कराया गया। जिसमें एसओ कलवारी की ओर से मारे गए चोटों से पता चलता है कि किस तरह से प्रभाकर को परेशान किया गया और दारोगा ने अपने शक्ति का इस्तेमाल किया। पुलिस पर सवाल यह भी उठता है कि पुलिस ने प्रभाकर के पास से बरामद सामानों की कोई रसीद भी नहीं दिया और गिरफ्तारी का कोई कारण भी नहीं बताया।
पुलिस के फर्जी केस गढ़ने और छात्र के साथ अमानवीय अत्याचार करने के कारण पूरे परिवार में भय और गुस्सा व्याप्त है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस घटना का होना बहुत ही घटिया उदाहरण है , जब इस घटना से साफ तौर पर जाहिर होता है कि किस तरह से कुछ प्रशासनिक अधिकारी भारतीय सविंधान एवं कानून द्वारा प्रदत्त शक्तियों का गलत इस्तेमाल करते हैं। हमारे जनमानस की रक्षा करने वाले ही जब इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा देश किस तरह की गर्त में समा रहा है।
बेहद ही शर्मनाक और निंदनीय?