ललित मोहन बेलवाल
राजनीति विज्ञान के शिक्षक अक्सर अपनी कक्षा में जब किसी सरकार के कार्यकाल का विश्लेषण करते हैं तो वे बताते हैं कि व्यावहारिक तौर पर किसी भी सरकार के पास काम करने के लिए सिर्फ चार साल का ही समय होता है। पांचवें साल यानी अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में तो सरकारें इलेक्शन मोड में आ जाती हैं और इस दौरान काम कम, लोकलुभावन घोषणाएं और उद्घाटन अधिक होते हैं। बहरहाल, युवा वर्ग की उम्मीदों पर सवार होकर केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार चार साल पूरे कर चुकी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि युवा वर्ग के विकास के लिए सबसे जरूरी शिक्षा के मोर्चे पर केंद्र सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा। उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में देश में एक आम राय यह है कि मोदी सरकार ने चार में से तीन साल तो विवादों में ही निकाल दिए। नतीजतन, शिक्षा में सुधार संबंधी कामों की रफ्तार सुस्त रही। हालांकि, चौथे वर्ष में विवादों के बजाय सरकार ने इस दिशा में काम को अधिक तरजीह दी, लेकिन अब भी बचे हुए एक साल में करने के लिए बहुत कुछ बचा है। पहले जानते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार ने चौथे वर्ष में क्या-क्या हासिल किया…
सुधार की चली बयार
केंद्र सरकार ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एक्ट के जरिये आईआईएम को अकादमिक और प्रशासनिक स्वायत्ता प्रदान की, जिसे व्यापक स्तर पर सराहा भी गया। साथ ही प्रदर्शन के आधार पर उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्ता देने का निर्णय लिया गया। शैक्षणिक सत्र 2017-18 से 10वीं में बोर्ड लागू किया गया। इसके अलावा स्वयं नामक वेब पोर्टल की शुरुआत की गई, जिसके तहत छात्र-छात्राओं के लिए आईआईटी, आईआईएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने मुफ्त में ऑनलाइन कोर्स बनाए हैं। वहीं, मोदी सरकार ने सात नये आईआईएम, छह आईआईटी और दो आईआईएसईआर शुरू करने का फैसला लिया। साथ ही केंद्र द्वारा संचालित सर्व शिक्षा अभियान के तहत राज्यों के प्रदर्शन को आंकने के लिए शगुन नामक वेब पोर्टल की शुरुआत की गई।
जिन योजनाओं की राह तकते ही रह गए
चार साल बीत गए, लेकिन नई शिक्षा नीति का मसौदा अब तक अंतिम रूप नहीं ले सका है। हालांकि, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आश्वासन दिया है कि 2019 के चुनावों से पहले यह काम पूरा हो जाएगा। इसके अलावा सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित कराने का जिम्मा किसी एक संस्था को सौंपने के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की परिकल्पना की गई, मगर यह भी अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है। यही हाल हीरा (हायर एजुकेशन एम्पावरमेंट रेगुलेशन एजेंसी) का है, जिसके तहत यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई को खत्म करके एक नियामक संस्था बनाई जानी है।
क्या था वादा और क्या है हकीकत
शिक्षा के मद में जीडीपी का छह प्रतिशत खर्च करने की बात कही गई थी, लेकिन आंकड़े जो तस्वीर पेश कर रहे हैं, वे इससे जुदा हैं।
शिक्षा पर खर्च
वर्ष जीडीपी का फीसद
2012-13 3.1%
2014-15 2.8%
2015-16 2.4%
2016-17 2.6%
स्रोतः आर्थिक सर्वे (2017-18)
इतिहास से छेड़छाड़ करने को लेकर कठघरे में है सरकार
वहीं, शिक्षकों की भर्ती के मामले में भी सरकार की अनदेखी सामने आई है। 41 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 17,106 में से 5,997 शिक्षकों के पद खाली हैं। इसके अलावा कुछ शिक्षण संस्थानों को स्वायत्ता देने के नाम पर उनका निजीकरण करने का आरोप भी सरकार पर लगा है। साथ ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित विवि के शैक्षणिक माहौल को एक खास तरह के सांचे में ढालने की कोशिश करने के आरोप भी मोदी सरकार पर लगे हैं, जिसमें पाठ्यक्रम और इतिहास से छेड़छाड़ के मामले भी सामने आए।
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