विभिन्न विश्वविद्यालयों और संबद्ध कॉलेजों में अध्यापन कार्य में लगे अतिथि शिक्षकों (गेस्ट टीचर्स) को जो वेतन और सुविधाएं मिल रही हैं, वह उनके जीवन यापन के लिए काफी नहीं है। अतिथि शिक्षकों की संख्या पर अगर ध्यान दें तो अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कॉलेजों में 500 से अधिक विभिन्न विषयों में वे ही पढ़ा रहे हैं। वहीं, देश में 813 विश्वविद्यालय और लगभग 40 हजार कॉलेज हैं, जिसमें लाखों अतिथि शिक्षक अलग -अलग विभागों में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। यानी कि अध्यापन कार्य के ज्यादातर हिस्सें में इनकी ही संलिप्तता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर उनके साथ इस तरह से भेदभाव क्यों किया जा रहा है?
क्या है पूरा मामला
ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजेज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन के नेशनल चेयरमैन व दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने फोरम4 से हुई बातचीत में बताया है कि एडहॉक शिक्षकों (तदर्थ शिक्षकों) को पूरा वेतन मिल रहा है, उन्हें छुट्टी के दिन का वेतन भी मिलता है। जबकि अतिथि शिक्षकों को अधिकतम वेतन 6 या 8 महीने से अधिक का वेतन नहीं मिलता। अगर मिलता भी है तो छुट्टी के दिन को छोड़कर। ऐसे में उनके साथ यह बहुत बड़ी नाइंसाफी हो रही है।
प्रो. सुमन ने एमएचआरडी मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर और यूजीसी के चेयरमैन प्रो. डीपी सिंह को पत्र लिखकर देशभर के केंद्रीय, राज्य और मानद विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य करने वाले अतिथि शिक्षकों का वेतन भी स्थायी शिक्षकों की तरह सातवें वेतन आयोग के अनुसार दिए जाने की मांग की है। एमएचआरडी और यूजीसी को भेजे गए पत्र में उन्होंने लिखा है कि अतिथि शिक्षकों का मानदेय प्रति लेक्चर 1000 रुपये की जगह 2000 रुपये किया जाए। साथ ही जहां उन्हें महीने में अधिकतम 25000 रुपये दिए जाते हैं, उसे बढ़ाकर 50000 किया जाए। पत्र में उन्होंने यह लिखकर स्पष्ट किया है कि ये शिक्षक भी स्थायी, तदर्थ शिक्षकों के समान योग्यता रखते हैं। एमए /एमकॉम/एमएससी के साथ-साथ राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा(नेट) जेआरएफ उत्तीर्ण, एमफिल, पीएचडी के बाद ही उन्हें इस पद के योग्य माना जाता है। इनका भी विश्वविद्यालय के विभागों में पैनल बनता है ,कॉलेजों की मांग के आधार पर इनकी भी नियुक्ति तदर्थ, अस्थायी ही की जाती है।
डीयू की यह है स्थिति
दिल्ली विश्वविद्यालय में हजारों अतिथि शिक्षक विभिन्न कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं । इसके अलावा एसओएल में पर्सनल कॉन्ट्रेक्ट प्रोग्राम (पीसीपी)के अंतर्गत 5000 शिक्षक कक्षाएं ले रहे हैं। इसी तरह नॉन कॉलेजिएट वोमेंस बोर्ड के 26 केंद्रों पर लगभग 1200 शिक्षक विभिन्न विषयों के हैं जो शनिवार व रविवार तथा छुट्टी के दिनों में कक्षाएं लेते हैं। दिल्ली के कॉलेजों व अन्य स्थानों पर इग्नू के सेंटर चल रहे हैं, यहां पर भी 200 से अधिक एकेडेमिक काउंसलर, पीसीपी के माध्यम से कक्षाएं ले रहे हैं। इसके अलावा देशभर में चल रहे मुक्त विश्वविद्यालयों में पीसीपी के माध्यम से कक्षाएं ली जाती हैं। इसी तरह से कॉलेजों में अतिथि शिक्षक रखे जाते हैं। कुल मिलाकर लाखों ऐसे शिक्षक विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रति लेक्चर 1000 रुपये के हिसाब से पढ़ा रहे हैं, जिन्हें दो से अधिक लेक्चर नही दिए जाते हैं और 25000 रुपये से अधिक महीने में वेतन नहीं दिए जाते।
शिक्षकों का हो रहा शोषण
अतिथि शिक्षकों के साथ वेतन को लेकर ही केवल भेदभाव नहीं किया जा रहा है, बल्कि शिक्षणेत्तर गतिविधियों जैसे-परीक्षा मूल्यांकन के अतिरिक्त तमाम ऐसे कार्यक्रमों में भी इन शिक्षकों की सेवाएं ली जाती हैं, जिसके लिए इन्हें किसी भी तरह का भुगतान नहीं किया जाता। उन्होंने यह भी बताया है कि उन्हें किसी तरह की स्वास्थ्य सेवाएं, हाउस रेंट, दैनिक भत्ते आदि सुविधाएं भी नहीं दी जाती।
नहीं मिला बढ़ा हुआ वेतन
इस महीने स्थायी शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार बढ़ा हुआ वेतन मिल गया है, एडहॉक टीचर्स को भी मिला, लेकिन जो वर्षो से अतिथि शिक्षक के रूप में जो कॉलेजों को सेवाएं दे रहे हैं उनके वेतन में किसी प्रकार की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
क्या है मांग
प्रो. सुमन ने अतिथि शिक्षकों को लेकर मांग की है कि उन्हें भी 1 जनवरी 2016 से बढ़े हुए वेतन के अनुसार बकाया भत्तों का भुगतान किया जाए ताकि इनके साथ भी न्याय हो सके। उनका यह भी कहना है कि तदर्थ शिक्षकों की उन्हें अनुभव व छुट्टी की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, साथ ही देशभर के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में एक सर्वे के जरिए पता लगाया जाएं कि एक ही कॉलेज/यूनिवर्सिटी में कितने ऐसे शिक्षक पढ़ा रहे हैं। उन्हें अभी तक तदर्थ या स्थायी क्यों नहीं किया गया।
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