दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में वर्ष 2015 में स्नातक में सीबीसीएस पाठ्यक्रम लागू होने के बाद यूजीसी के निर्देशानुसार अब परास्नातक पाठ्यकर्मों (पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स) में सीबीसीएस पाठ्यक्रम लागू हो रहा है।
अकादमी मामले को देखने के लिए स्टैंडिंग कमेटी की 20 और 24 अगस्त को स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में परास्नातक के 30 से अधिक पाठ्यक्रमों को पास किया गया। सीबीसीएस पद्धति के अनुसार ये पाठ्यक्रम वर्ष 2018–19 के प्रथम सेमेस्टर से लागू किये जाएंगे। पाठ्यक्रम एवं प्रश्न पत्रों के प्रारूप तथा अंक-विभाजन में अपेक्षित एवं समुचित परिवर्तन किए गए हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ने बताया है कि सभी विभागों ने परास्नातक पाठ्यक्रमों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा निर्मित एवं दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा चार सेमेस्टर के चयन आधारित क्रेडिट पद्धति (सीबीसीएस) के अंतर्गत सम्पूर्ण पाठ्यक्रम तथा मूल्यांकन पद्धति को तैयार किया गया है। इसे डीयू के नियमों के अनुसार लागू किया जाएगा। इसके अनुसार प्रत्येक छात्र की उत्तीर्ण होने के लिए एमए, एमकॉम और एमएससी उपाधि के अंतर्गत जो विभाग ने क्रेडिट निर्धारित किए हैं अर्जित करने होंगे।
प्रो. सुमन के अनुसार परास्नातक पाठ्यक्रम के अंतर्गत जो क्रेडिट दिए गए हैं उसमें छात्रों को यह विकल्प चुनने का विकल्प होग कि वह किसी भी विषय को पढ़ सकता है। प्रो सुमन ने चिंता जताई है कि विभागों के द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में छात्रों को विकल्प चुनने की सुविधा तो दे दी गई है लेकिन, परास्नातक स्तर पर विश्वविद्यालय को अपने पाठ्यक्रमों में ऐसे विकल्प जरूर तैयार करने चाहिए, जिससे छात्रों को भविष्य में रोजगार के अवसर की संभावनाएं हो क्योंकि आज छात्रों को एमए करने के बाद भी नोकरी नहीं मिलती।
प्रो सुमन का कहना है कि उन्होंने स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी का पाठ्यक्रम देखा है जिसमें अनेक विषयों की विकल्प के तौर पर शामिल करने से रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकती है जैसे अनुवाद, मीडिया, रंगमंच, फोटोग्राफी, सिनेमा, रेडियो और टीवी पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता, सोशल मीडिया, सर्जनात्मक लेखन आदि।
इन विषयों पर होगी गहन चर्चा
प्रो. सुमन ने बताया है कि 28 अगस्त को हो रही एकेडमिक मेटर को देखने वाली स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग में लगभग 35 विषयों को रखा जाएगा।
एमए साइकोलॉजी, एमए हिंदी, एमए इतिहास, एमए राजनीति विज्ञान, एमए फिलॉसफी, एमए इंग्लिश, एमए कम्पेरेटिव इंडियन लिट्रेचर, एमए एप्लाइड साइकोलॉजी, एमए-पंजाबी, एमए बंगाली, एमए इटेलियन स्टडी, एमए फ्रेंच स्टडी, एमए जर्मन स्टडी, एमए रसियन, एमए लायब्रेरी साइंस एंड इंफॉर्मेशन,एमए उर्दू, एमए तमिल, एमए संस्कृत, एमए पर्सियन, एमए सोशल वर्क, एमए बुद्धिस्ट स्टडी, एमए लाइफ लॉन्ग, लर्निंग एंड एक्सटेंशन, एमए ईस्ट असीएन स्टडी, एमए सोशियॉलोजी के अलावा और भी विषय है जिन पर गम्भीर चर्चा होगी।
प्रो सुमन ने बताया है कि स्टैंडिंग कमेटी में वह यह सवाल अवश्य उठाएंगे कि जब बीए ऑनर्स हिंदी व अंग्रेजी पत्रकारिता विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाई जा रही है तो स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी पत्रकारिता का विभाग क्यों नहीं है और इसे क्यों नहीं पढ़ाया जा रहा है? उनका यह भी कहना है कि कॉलेज स्तर पर छात्रों को प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पढ़ाई उस स्तर तक नहीं कराई जाती, जिसकी अपेक्षा छात्रों को रहती है।
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