आए दिन सरकार न्यूनतम आय, न्यूनतम वेतन मानक पेश करती है कि हमारे राज्य में इतना वेतन न्यूनतम मजदूरी के रूप में मिल रहा है। केंद्र सरकार भी समय-समय पर न्यूनतम वेतन पेश करती है कि केंद्र सरकार के मानकों के तहत प्रत्येक नागरिक को इतनी न्यूनतम मजदूरी मिल रही है। लेकिन, क्या कभी सरकार ने जमीनी स्तर पर सर्वे किया? क्या कभी सरकार ने यह जानने की कोशिश की कि क्या वास्तव में न्यूनतम वेतन मजदूरों को दिया जा रहा है या नहीं? या सिर्फ सरकार रिकॉर्ड के आधार पर ही यह फैसला कर लेती है कि सब को न्यूनतम वेतन मिल रहा है।
आज सच्चाई तो यह है कि अगर सरकार 18000 रुपये न्यूनतम वेतन तय करती है तो उसमें से सिर्फ 10000 रुपये मजदूरों तक पहुंचता है, बाकी 8000 रुपये दलाल खुद खा जाते हैं और सरकार को यह दिखाया जाता है कि वास्तव में मजदूरों को 18000 रुपये न्यूनतम वेतन दिया जा रहा है। यह धांधली आज सभी विभागों व प्राइवेट सेक्टरों में अप्रत्यक्ष रूप से हो रही है। इसका शिकार निविदा पर लगे कर्मचारियों भी होते हैं, जिन्हें वास्तविक तनख्वाह नहीं दी जाती। अब बात की जाए यह कैसे होता है। माना किसी कर्मचारी को अगर 18000 रुपये चेक, नगद या उसके खाते में स्थानांतरित किए जाते हैं। इससे सरकार को तो यह लगता है कि 18000 रुपये मजदूर तक पहुंच गए लेकिन, वास्तविकता यह है कि उसमें से दलाल कुछ फीसद जिसमें 4 से 8000 रुपये वापस निकलवा लेते हैं और मजदूर तक वास्तव में 10000 रुपये या उससे कम ही पहुंच पाते हैं। अगर वह इसका विरोध करता है तो मुझसे काम पर से निकालने की धमकियां दी जाती हैं।
आज सरकार को जरूरत है कि वह इस विषय पर गंभीर रूप से कड़े कदम उठाए और ऐसे दलालों को पकड़े और कड़ी से कड़ी सजा उन्हें दी जाए। साथ ही सरकार मजदूरों व निविदा पर लगे कर्मचारियों के साथ न्याय करें, जिससे उन्हें उनका वास्तविक वेतन मिल सके।
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