सहायता करे
SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

आतंकियों की यौन दासी थीं नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित नादिया मुराद, दर्द भरी है कहानी

नादिया की कहानी बेहद दर्दनाक है। अभी भले ही वह यौन हिंसा के लोगों को जागरूक कर रही हैं लेकिन इससे पहले वह खुद बहुत कुछ झेल चुकी हैं। उनकी कहानी को पढ़कर आपकी आखों में आंसू आ जाएंगे। आपको बता दें कि शांति का नोबेल के लिए इस साल कॉन्गो के डेनिस मुकवेज और नादिया मुराद को चुना गया है। युद्ध के दौरान होने वाले यौन हिंसा की रोकथाम के प्रयास के लिए डेनिस और नादिया को इस अवॉर्ड के लिए चुना गया।

डेनिस और नादिया हैं कौन

कॉन्गो के रहने वाले मुकवेज जाने-माने सर्जन और बुकावु शहर में पनजी अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर हैं। यौन हिंसा पर लगाम लगाने और यौन हिंसा के शिकार लोगों को बचाने के लिए मुकवेज ने काफी संघर्ष किया है। मुराद के बारे में भी बताएंगे, लेकिन इससे पहले हम बता दें कि इस पुरस्कार के बारे में

यह पुरस्कार प्रति वर्ष उस शख्स या व्यक्ति को दिया जाता है जिसने विश्व शांति में अपना योगदान दिया हो या शांति के लिए कोशिश की हो। इस पुरस्कार के लिए कुल 331 लोग नामित किए गए थे। एक बात ध्यान करने की है जिसे शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाता है उसके नाम को गुप्त रखा जाता है। नामांकित किए व्यक्तियों में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और पोप फ्रांसिस जैसी महान हस्तियों के नाम भी शामिल थे।

मुराद उन हजारों यजीदी लड़कियों में से हैं, जिन्हें आईएसआईएस के आतंकियों ने अगवा करके यौन दासी बना दिया था। वे मोसुल के रास्ते किसी तरह अपनी जान बचाकर आतंकियों के कब्जे से बच निकली थीं। 2016 में अमेरिकी कांग्रेस के सामने अपने भाषण में उन्होंने अमेरिका से आईएस को खत्म करने की अपील की थी। नोबेल कमेटी ने उन्हें हजारों महिलाओं की आवाज बनने के लिए बधाई दी।

नादिया मुराद की क्या है कहानी

25 साल की नादिया मुराद उत्तरी इराक के सिंजर के निकट के गांव में शांतिपूर्वक जीवनयापन कर रही थीं। लेकिन साल 2014 में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आंतकवादियों के जड़े जमाने के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए। वह सिंजर के जिस गांव में रह रही थीं, उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है। यह इलाका कभी यजीदी समुदाय का गढ़ भी हुआ करता था।

साल 2014 में ही अगस्त के एक दिन काले झंडे लगे जिहादियों के ट्रक उनके गांव कोचो में धड़धड़ाते हुए घुस आए। क्या पता था कि इस दिन कुछ ऐसा होने वाला है कि यहां के समुदाय को बिखर जाना होगा।

बीबीसी के एक कार्यक्रम में नादिया द्वारा सुनाई आपबीती के अनुसार, नादिया के गांव के अधिकतर लोग खेती पर निर्भर थे। वह तब छठी कक्षा में पढ़ती थीं। गांव में कोई 1700 लोग रहते थे।

3 अगस्त 2014 की बात है, जब आईएस ने यज़ीदी लोगों पर हमला किया था। कुछ लोग माउंट शिंजा पर भाग गए, लेकिन नादिया का गाँव बहुत दूर था। वे कहीं भागकर नहीं जा सकते थे। इसलिए उन्हें 3 से 15 अगस्त तक बंधक बनाए रखा गया।

आतंकवादियों ने तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों का क़त्ल कर दिया। पुरुषों की हत्या की गई थी और लगभग 5,000 महिलाओं और बच्चों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया गया था। इसके बाद इन आतंकवादियों ने बच्चों को लड़ाई सिखाने के लिए और हजारों महिलाओं को यौन दासी बनाने और बल पूर्वक काम कराने के लिए कब्जे में लेकर लगातार प्रयास करते रहे। उन्हें चेतावनी दी गई कि वे दो दिन के अंदर अपना धर्म बदल लें औऱ इस्लाम अपना लें। इसके  लिए एक दिन उन्हें कहा गया जो भी इस्लाम धर्म क़बूल करना चाहते हैं, कमरा छोड़कर चले जाएं।

नादिया के अनुसार उन्हें पता था कि जो कमरा छोड़कर जाएंगे वो भी मारे जाएंगे। क्योंकि वो नहीं मानते कि यज़ीदी से इस्लाम क़बूलने वाले असली मुसलमान हैं। आतंकवादी मानते हैं कि यज़ीदी को इस्लाम क़बूल करना चाहिए और फिर मर जाना चाहिए। महिला होने के नाते उन्हें यक़ीन था कि वे हमें नहीं मारेंगे और हमें ज़िंदा रखेंगे और हमारा इस्तेमाल कुछ और चीज़ों के लिए करेंगे।

बाहर जो भी गए उन्हें गोलियों से मारा गया। जब उन्होंने लोगों को मार दिया तो वे महिलाओं को एक दूसरे गांव में ले गए। तब तक रात हो गई थी और उन्होंने उन्हें वहां स्कूल में रखा। उन्होंने महिलाओं को तीन समूहों में बांट दिया था। पहले समूह में युवा महिलाएं थी,  दूसरे में बच्चे, तीसरे समूह में बाक़ी महिलाएं थीं। बच्चों को वो प्रशिक्षण शिविर में ले गए। जिन महिलाओं को उन्होंने शादी के लायक़ नहीं माना उन्हें क़त्ल कर दिया।  इनमें नादिया की मां भी शामिल थीं।

रात में वो महिलाओं को मोसुल ले गए। बीबीसी की खबर के अनसार नादिया ने बताया कि “हमें दूसरे शहर में ले जाने वाले ये वही लोग थे जिन्होंने मेरे भाइयों और मेरी मां को क़त्ल किया था, वो हमारा उत्पीड़न और बलात्कार कर रहे थे। मैं कुछ भी सोचने समझने की स्थिति में नहीं थी”

“वे हमें मोसुल में इस्लामिक कोर्ट में ले गए जहाँ उन्होंने हर महिला की तस्वीर ली। मैं वहां महिलाओं की हज़ारों तस्वीरें देख सकती थी। हर तस्वीर के साथ एक फ़ोन नंबर होता था। ये फ़ोन नंबर उस लड़ाके का होता था जो उसके लिए जिम्मेदार होता था।”

आईएस लड़ाके इस बीच उन्हें लगातार खरीदते और बेचते रहे। दिन-रात बलात्कार करते रहे। नादिया के साथ कोर्ट में भागने की कोशिश करने के बाद सजा के तौर पर छह सुरक्षा गार्डों के साथ बलात्कार करने को कहा गया।

एक दिन एक पुरुष नादिया को बेचने की तैयारी के लिए कपड़े खरीदने किसी दुकान पर गया। इसी बीच वह खुद को अकेले पाकर वहां से भाग निकलीं और एक मुस्लिम परिवार के पास किसी तरह बचकर निकलीं।

मुराद और मुराद जैसी हजारों औरतें कितना कुछ सह रही हैं और तड़प रही हैं। मुराद मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए फिलहाल संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर हैं। उन्होंने स्वीकार किया था कि आईएस के लड़ाके हमारा (यजीदी महिलाओं का) सम्मान छीनना चाहते थे, लेकिन अब हमारी नजरों में उनका रत्ती भर भी सम्मान नहीं है वो अपना सम्मान खो चुके हैं।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

Be the first to comment on "आतंकियों की यौन दासी थीं नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित नादिया मुराद, दर्द भरी है कहानी"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*