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नौ दिन तक दिन में पूजा का नाम नवरात्रि क्यों? नवदिन क्यों नहीं? 

हिंदुओं का प्रमुख त्योहार नवरात्रि 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक चलेगा, मां चंद्रघंटा 8 अप्रैल को पूजी जाएंगी। इन पूरे नौ दिनों में हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होगी। माता की पूजा के अलावा चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन को राम जी के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, जिसे राम नवमी भी बोलते हैं। चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। खैर, आज आपके सामने यहां डॉ. राजेंद्र गुप्ता के ब्लॉग ‘डीएनए ऑफ वर्ड्स (शब्दों का डीएनए) के इस पोस्ट को रखते हैं-

नवरात्रि या नव-ज्योतिर?

शरद ऋतु भी समाप्त हो गयी है। मौसम ने अंगड़ाई ली है। प्रकृति ने चारों ओर रंग बिखेर दिए हैं। फूलों के चटख रंगों की ज्योतियों से पौधे और वृक्ष जगमगा रहे हैं। यह मौसम नईज्योति के पर्व मनाने का आह्वान कर रहा हैं, हम भी पीछे नहीं हट रहे। कभी होली के रूप में, कभी बैसाखी के रूप में। कभी नवरात्रि के रूप में हम बारम्बार ज्योति पर्व मनाने में प्रकृति की लय-ताल में साथ देते रहे हैं। लेकिन, इन ज्योति-पर्वों का भी एक पुराना इतिहास है।

कभी अति प्राचीन युग में, हमारे आदिम-युगी-पुरखे पूरी सर्दियाँ गुफाओं में हिमवास (हाइबरनेशन) करते थे। शायद हिमवास के समय वे अपना भोजन नहीं पकाते थे। उस समय तो वे सूखे हुए फल और कन्द-मूल खा कर ही काम चलाते होंगे। वसंत में गुफाओं से निकल कर फिर से पुरखे सक्रिय जीवन में लौटते होंगे। इस समय उनका सबसे पहला काम होता होगा-अग्नि प्रज्ज्वलित करना। पत्थरों या लकड़ियों को आपस में रगड़ कर आग पैदा करना निश्चय ही एक कठिन काम होता होगा। इस काम को बार-बार करने से अच्छा था कि एक बार आग जला कर उसे एक पात्र में बनाये रखना। हर सुबह और शाम इस अग्नि की देखभाल करना उसे पुष्ट करने रहना। यानि अखंड ज्योति का रख-रखाव करना। शायद इसी से संध्यावंदन और अग्निहोत्र प्रथा का आरम्भ हुआ होगा। पुरुष तो दिन भर शिकार और कन्दमूल फल की खोज में भटकते थे। पीछे बच्चों के साथ रह गयी माताओं पर ही अग्निहोत्र की रक्षा और रख-रखाव का दायित्व रहता होगा। शायद कोई महा माँ सर्दियों में भी अग्निहोत्र में अखण्ड अग्नि  ज्योतित रखती होगी। सभी लोग अपने लिए अग्नि की आपूर्ति के लिए, स्थायी रूप से अग्नि जलाये रखने वाली इसी माँ पर निर्भर रहते होंगे। वसंत के बाद चैत्र में माता के अग्निहोत्र से ज्योति लाकर अपने-अपने घर में जोत जलाते होगे। शायद हम आज भी उसी प्रथा का जीवंत रूप देखते हैं।

आज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन है। आज के दिन माता के प्रमुख मंदिरों से जोत लेकर, अनेक श्रद्धालु अपने स्थानीय मंदिरों में ले जा रहे हैं और स्थानीय माता-मंदिरों से जोत ले कर श्रद्धालु अपने घरों में नयी जोत जगा रहें हैं। और यह जोत से जोत जगाने का काम हम दिन में कर रहें है। बहुत साफ है कि हम दिन में अन्धकार का नाश करने के जोत नहीं जला रहे। वास्तव में, पहले नवरात्र को मंदिर से जोत ला कर हम, पुरखों की उस पुरानी रीत का स्मरण कर रहें हैं, जब वे  समूह की बड़ी माँ के घर से ज्योति ला कर अपने घर में ज्योति जलाते थे।

‘नवरात्रि’ का शाब्दिक अर्थ हैं नौ रातें। अगर हम नवरात्रों में दिन में जोत जलाते हैं, और नौ दिन तक दिन में ही दुर्गा माँ के नौ रूपों की सारी पूजा करते हैं, तो फिर इस पर्व को ‘नवरात्रि’ को क्यों कहते हैं? पर्व के नाम में ‘रात्रि’ शब्द कहाँ से आया? इसका रहस्य आप समझ ही गए होंगे। जी हाँ। पुरखों के समय से अभी तक शब्दों में उच्चारण में आये बदलाव के कारण!

 

नव ज्योतिर

नवज्योतिर

नवय्योतिर (ज > य )

नवयोतिर

नवरोतिर (य > र )

नवरोत्रि

नवरात्रि

और यह —
सूर्य > जूर्य > रूज्य (सूर्य का उल्टा) > रोज
ज्वल > ज्वर > ज्यर > रयज (ज्यार का उल्टा) > रोज.
रोज का प्राचीन अर्थ प्रकाश या ज्योति है।

नव + रोज = नवरोज (पारसी नववर्ष का उत्सव जो नौ दिन मनाया जाता है)

 

यह भी –

ज्योति (प्र)चंड

ज्योति चंड

च्योती चंड (ज > च)

चेती चंड (सिन्धी नववर्ष का पहला दिन)

 

और यह भी –

 

अग्नि+ज्योतिर

अग्निज्योतिर

अग्निह्योतिर (ज > ह)

अग्निहोत्र

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

राजेंद्र गुप्ता
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान में पूर्व में प्रोफेसर रह चुके हैं। शब्दों की उत्पत्ति और उद्विकास के रहस्य को बेहतरीन ढंग से अपने ब्लॉग 'शब्दों का डीएनए' में सुलझाने की कोशिश करते हैं।

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