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क्या धरती से कीट गायब होने वाले हैं? इस गंभीर संकट में बारे में जानिए  

साभारः प्रभाकर

वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले तीन साल के आंकड़े के अनुसार हर साल इनकी संख्या 2.5 फीसदी तक कम हो रही है। दुनिया में जिस नाटकीय ढंग से कीटों की संख्या में कमी हो रही है, उससे ऐसा माना जा रहा है कि 100 सालों में ये पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे।


आपको पता है कि अगर कीट न हों तो आप भूखे मरने लगेंगे। ये 75 फीसद फसलों में परागण के जिम्मेदार होते हैं अगर ऐसा नहीं होगा तो अनाज भी नहीं मिल पाएगा यानी पूरा चक्र ही टूट जाएगा। कीट ही हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से रक्षा भी करते हैं। मिट्टी पानी को शुद्ध भी यही रखते हैं। करोड़ों साल से धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने में ये कीड़े-मकोड़े बेहद अहम भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब इस धरती से सभी कीड़े ग़ायब ही हो जाएंगे और हमारा अस्तित्व बचा रहना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए ज़िम्मेदार होंगी मानव की गतिविधियां जो सबसे पहले इन्हें संकट में डाल रही हैं और खुद को भी।

बायोलॉजिकल कंज़र्वेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित पत्र में पिछले 13 वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई है। शोध रिपोर्ट को फ्रैंसिसको संचेज और क्रिस एजी वायकुयस नाम के दो वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इन्हें खोज में पता चला है कि 40 फीसदी से अधिक कीट प्रजातियां अगले कुछ दशकों में विलुप्त हो सकती हैं।

1 फीसद वर्टीब्रेट्स की तुलना में 10 फीसद कीटों की प्रजातियां पहले से ही विलुप्त हो चुकी हैं। जितनी कीटों की प्रजातियां है उनमें से 41 फीसद प्रजातियों में (वर्टीब्रेट्स की तुलना में 2 गुना ज्यादा) लगातार कमी आ रही है।

 

शोध/समीक्षा प्रपत्र में क्या है?

Worldwide decline of the entomofauna: A review of its drivers नाम के इस रिव्यू में वैज्ञानिकों ने जो कुछ कहा है वह एक बड़े संकट की ओर ले जाता है। पारिस्थिकी तंत्र के लिए ये सब किसी विपत्ति से कम नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी जीवविज्ञानी को डरा देने वाला है। अगर सभी कीट मिट जाएंगे तो हम भी मिट जाएंगे। पूरा कृषि क्षेत्र की कीटों पर निर्भर है। 

पेड़ों की कटाई है कीटों में कमी का कारणः तस्वीर साभार गूगल

शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की एक तिहाई प्रजातियां ख़तरे में घोषित की गई हैं। कीटों की प्रजातियां Lepidoptera, Hymenoptera and dung beetles (Coleoptera) को सबसे ज्यादा खतरा है। 4 जलीय कीटों की प्रजातियां (Odonata, Plecoptera, Trichoptera and Ephemeroptera) तो लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। सिडनी विश्वविद्यालय से संबंध रखने वाले मुख्य लेखक डॉक्टर फ्रैंसिस्को सैंशेज़-बायो के अनुसार इसके पीछे की मुख्य वजह आवास को नुक़सान पहुंचना, खेती-बाड़ी, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और वनों के कटाव हैं।

प्रदूषण से हो रही कीटों की प्रजातियों में कमी- तस्वीर साभार गूगल

अध्ययन बताता है कि मधुमक्खियां, चींटियां और बीटल (गुबरैले) अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं। मगर शोधकर्ता कहते हैं कि कुछ प्रजातियों, जैसे कि मक्खियों और कॉकरोच (तिलचट्टों) की संख्या बढ़ने की संभावना है।

हानिकारक कीड़ों में होगी बढ़ोतरी

चिंता इस बात की है कि कीटों की संख्या में कमी आने से आहार श्रृंखला प्रभावित हो रही है। पक्षियों, सरीसृपों और मछलियों की कई प्रजातियां खाने के लिए इन कीटों पर निर्भर हैं। नतीजा यह रहेगा कि कीटों के विलुप्त होने से इनकी प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट आ जाएगा।

रिव्यू जर्नल्स में यह कहा गया है कि जो कीड़े विलुप्त हो रहे हैं उनकी जगह पर प्रदूषण आदि के अनुकूल कीड़े पनप रहे हैं। गरम जलवायु के कारण तेज़ी से प्रजनन करने वाले कीटों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि उनके शत्रु कीट, जो धीमे प्रजनन करते हैं, विलुप्त हो जाएंगे।

ऐसा भी हो सकता है कि हानिकारक कीट-पतंगों की संख्या बढ़ जाए मगर उपयोगी कीट-पतंगे ख़त्म हो जाएंगे। इनमें मधुमक्खियां, तितलियां और गुबरैले भी शामिल हैं। इससे मक्खियों, कॉकरोच जैसी प्रजातियां बढ़ जाएंगी क्योंकि वे बदलते हालात के हिसाब से ख़ुद को ढाल लेती हैं और कीटनाशकों को लेकर उनमें प्रतिरोधक क्षमता भी है।

इस खतरे से उबरने के लिए लोगों को अपने बागीचों को कीटों के अनुकूल बनाना चाहिए और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के लिए पूरे विश्व को एक साथ आकर इससे निपटने के उपाय खोजे जाने चाहिए। साथ ही प्रदूषित जल को साफ करने के लिए प्रभावी हल ढूंढ़ने चाहिए जिससे महत्वपूर्ण कीटों को बचाया जा सके।

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रभात
लेखक फोरम4 के संपादक हैं।

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