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अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रहे एडहॉक टीचर्स की जिंदगी मौत के है काफी करीब

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) देश की सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार है। यहां के एडहॉक टीचर्स समायोजन को लेकर 9 दिनों से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इनका कहना है कि एडहॉक होने की वजह से इनके साथ कई तरह का भेदभाव हो रहा है। हालात यह हैं कि बीमारी और प्रेग्नेंसी में भी छुट्टी नहीं मिलती है।

डीयू में तकरीबन 5 हजार एडहॉक टीचर्स हैं। इन एडहॉक टीचर्स ने बातचीत के दौरान फोरम4 को बताया कि इनकी जिंदगी नौकरी जाने की आशंका और डर के बीच गुजर रही है। इन्हें हर वक्त नौकरी जाने का डर सताता रहता है। हर 4 महीने पर या तो इन्हें बाहर कर दिया जाता है या फिर उनके कॉन्ट्रैक्ट को बढ़ा दिया जाता है।

कुछ एडहॉक टीचर्स ने बताया कि काम को लेकर उन लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। कभी-कभी एडहॉक होने की वजह से कई बार उनसे वो काम भी कराए जाते हैं, जो उनके दायरे में नहीं आते। पूरी मैटरनिटी लीव तक नहीं मिलती। इस वजह से टीचर्स डर के माहौल में नौकरी तो करते हैं, लेकिन मजबूरी में। क्योंकि ऐसे समय इनके पास दो ही विकल्प होते हैं- या तो वे जॉब छोड़ दें या फिर बच्चा पैदा करें।

विवेकानंद कॉलेज के डॉ. ज्ञान प्रकाश ने अपने एडहॉक होने के दर्द को बयां करते हुए कहा कि एडहॉक की समस्याएं कोई नई नहीं है, इसको लेकर सरकार और डीयू प्रशासन को कई हजार पत्र भेजे जा चुके हैं। इसको लेकर सरकार की तरफ से आश्वासन भी दिया गया था, लेकिन बावजूद इसके कोई कार्यवाई नहीं हुई। हम चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द इस संबंध में पहल करे। अगर ऐसा नहीं होगा तो चुनावी आचार संहिता लागू होते ही यह मामला नई सरकार के आने तक के लिए एक बार फिर से रुक जाएगा।

सत्यवती कॉलेज के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि वह कई सालों से एडहॉक पर पढ़ा रहे हैं। एडहॉक के साथ तरह-तरह का भेदभाव होता है। छुट्टियां नहीं मिलती हैं। हर वक्त नौकरी चले जाने का डर सताता रहता है। उन्होंने बताया कि इसके चलते तो कई शिक्षकों ने सुसाइड कर लिया। इतना ही नहीं आज कई एडहॉक टीचर्स तो अवसाद के शिकार हो गए हैं।

उन्होंने बताया हम बच्चों की क्लास भी ले रहे हैं। इसके बाद आकर यहां भूख हड़ताल पर हम लोग बैठे हैं। अभी तक एक हफ्ता से ज्यादा समय हो गया है लेकिन, अभी तक डीयू प्रशासन या सरकार की ओर से कोई संज्ञान तक नहीं लिया गया। यह बहुत ही दुखद है। सरकार पर दबाव पड़े इसके लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं।

डॉ. देवेश ने बताया कि “एडहॉक होने की वजह से हम लोगों की शादी तय नहीं होती है। लोग फैमिली प्लानिंग नहीं कर पाते हैं। अगर घर में मां-बाप बीमार हैं तो उन्हें टाइम नहीं दे पाते हैं। आपको रेगुलर आना पड़ेगा, चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया कैंसर चाहे जो भी हो जाए। हमारे तीन साथी हैं एक को इस टेंशन में रहते हुए हार्ट अटैक हो गया। म्यूजिक डिपार्टमेंट के अनीस खान को एक साल से निकालने की कोशिश हो रही थी, वो इसी टेंशन में 38 – 40 साल की उम्र में ही मर गए।” अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रहे ऐसे शिक्षक तनावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं।

उनका कहना है कि डीयू के ऐसे शिक्षक 10-15 साल से पढ़ा रहे हैं। ऐसे में आखिर वह कौन सी वजह है कि हमें स्थायी नहीं किया जा सकता है। हमारी मांग है कि जल्द से जल्द हमारे साथ न्याय हो।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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